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जब तक कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड का गठन नहीं होता, हमारा विरोध जारी रहेगा: पन्नीरसेल्वम

कावेरी जल बंटवारे को लेकर सियासत तेज हो गई है। कावेरी जल बंटवारे को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के....
जब तक कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड का गठन नहीं होता, हमारा विरोध जारी रहेगा: पन्नीरसेल्वम

कावेरी जल बंटवारे को लेकर सियासत तेज हो गई है। कावेरी जल बंटवारे को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी और उप-मुख्यमंत्री ओ.पन्नीरसेल्वम आज से भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। इस मौके पर उप-मुख्यमंत्री पन्नीसेल्वम ने कहा, 'जब तक कावेरी मैनेजमेंट बोर्ड नहीं बन जाता, हमारा प्रदर्शन खत्म नहीं होगा। न्याय मिलने तक प्रदर्शन जारी रहेगा।'

 कावेरी जल विवाद को लेकर खुद तमिलनाडु के गर्वनर बनवारीलाल पुरोहित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे। राज्यपाल पुरोहित आज दिल्ली में कावेरी विवाद को लेकर दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात कर तमिलनाडु में चल रही सियासत की जानकारी देंगे। और उनसे किसी बीच का रास्ता निकालने की सिफारिश भी करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में तमिलनाडु को मिलने वाले 192 टीएमसी से घटाकर 177.25 टीएमसी कर दिया था। जिसे लेकर तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर  असहमति जताई है। जिसे लेकर तमिलनाडु के सांसद समय समय पर संसद में विरोध प्रदर्शन भी करते रहे है।  

क्या है कावेरी जल विवाद?

आपको बता दें कि कावेरी जल विवाद मुख्यत तमिलनाडु और कर्नाटक दो राज्यों के बीच चल रहा 120 साल पुराना विवाद है। सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल बटवारे में अपने एक अहम फैसले में कावेरी नदी से तमिलनाडु को मिलने वाले पानी के हिस्से में कटौती कर दी थी।

इस मामले पर कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल ने फरवरी 2007 के कावेरी ट्रिब्यूनल के अवार्ड को चुनौती दी थी. वहीं, कर्नाटक चाहता था कि तमिलनाडु को जल आबंटन कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट आदेश जारी करे, जबकि तमिलनाडु का कहना था कि कर्नाटक को जल आवंटन कम किया जाए।

ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडु में 192 टीएमसी फीट (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) को कर्नाटक द्वारा मेटटूर बांध में छोड़ने के आदेश दिए थे। जबकि कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट, केरल को 30 टीएमसी आवंटित किया गया था और पुडुचेरी को 6 टीएमसी आवंटित किया गया था।

सभी राज्यों का आधार है कि उनके हिस्से में कम आबंटन दिया गया है. अंतिम सुनवाई 11 जुलाई को शुरू हुई और बहस दो महीने तक चली थी। कर्नाटक ने तर्क दिया कि 1894 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के साथ जल साझाकरण समझौता किया गया था और इसलिए 1956 में नए राज्य की स्थापना के बाद इन करारों को बाध्य नहीं किया जा सकता।

कर्नाटक ने आगे तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडु को पानी के हिस्से को आबंटित करने में इन समझौतों की वैधता को मान्यता दी है, जो गलत है। राज्य चाहता है कि अदालत कर्नाटक को तमिलनाडु को केवल 132 टीएमसी फीट पानी छोड़ने की अनुमति दे।

वहीं, तमिलनाडु ने इन तर्कों का खंडन किया और कहा कि कर्नाटक ने कभी भी दो समझौतों को लागू नहीं किया और हर बार राज्य को अपने अधिकार के पानी के दावे के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगानी पड़ती है.

तमिलनाडु का कहना है कि ट्रिब्यूनल ने ग़लती से कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट पानी आबंटित किया था, जिसे कम कर 55 टीएमसी किया जाना चाहिए और तमिलनाडु को और अधिक जल दिया जाना चाहिए.

वहीं केंद्र ने कावेरी प्रबंधन बोर्ड की स्थापना और ट्रिब्यूनल फैसले को लागू करने के लिए एक योजना तैयार करने के लिए अपनी कार्रवाई को उचित ठहराया।  केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा कि कई स्पष्टीकरण याचिकाएं ट्रिब्यूनल के सामने लंबित हैं और इसलिए ये उन पर अंतिम निर्णय का इंतजार कर रहा है।

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