रांची। दो दिवसीय जनजातीय महोत्सव के मौके पर झारखंड में देश के विभिन्न हिस्सों से कलाकारों, जनजातीय समाज के प्रतिनिधियों का जुटान रहा। मौके पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का दर्द जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का दर्द छलका। वहीं उन्होंने जनजातीय समाज के लोगों का आह्वान किया कि महंगे ब्याज पर कर्ज देने वाले महाजनों को उनका पैसा न लौटायें। साथ ही भोज के कारण कर्ज को देखते हुए उन्होंने मृत्यु या विवाह के मौके पर एक सौ किलो चावल और दस किलो दाल देने का एलान किया और केंद्र सरकार से विश्व आदिवासी दिवस पर अवकाश घोषित करने की मांग की।
मंगलवार को रांची के मोरहाबादी मैदान में सभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अदिवासी वीर नायकों को नमन करते हुए कहा कि हम आदिवासियों की कहानी लम्बे संघर्ष एवं कुर्बानियों की कहानी है। मेरे लिए मेरी आदिवासी पहचान सबसे महत्वपूर्ण है, यही मेरी सच्चाई है। आज हम एक ढंग से अपने समाज के पंचायत में खड़े होकर बोल रहे हैं। यह सच है कि संविधान के माध्यम से अनेकों प्रावधान किये गए हैं जिससे कि आदिवासी समाज के जीवन स्तर में बदलाव आ सके। परन्तु, बाद के नीति निर्माताओं की बेरुखी का नतीजा है कि आज भी देश का सबसे गरीब, अशिक्षित, प्रताड़ित, विस्थापित एवं शोषित वर्ग आदिवासी वर्ग है। आज आदिवासी समाज के समक्ष अपनी पहचान को लेकर संकट खड़ा हो गया है। क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं है? संवैधानिक प्रावधान सिर्फ चर्चा का विषय बन के रह गये हैं। विभिन्न जनजातीय भाषा बोलने वालों के पास न तो संख्या बल और न ही धन बल। उदाहरण के लिए हिन्दू संस्कृति के लिए असुर हम आदिवासी ही हैं। जिसके बारे में बहुसंख्यक संस्कृति में घृणा का भाव लिखा गया है, मूर्तियों के माध्यम से द्वेष दर्शाया गया है, आखिर उसका बचाव कैसे सुनिश्चित होगा इस पर हमें सोचना होगा। धन बल भी होता तो जैन/पारसी समुदाय जैसा अपनी संस्कृति को बचा पाते हम। ऐसे में विविधता से भरे इस समूह पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
जिस जंगल-जमीन की उसने रक्षा की आज उसे छीनने का बहुत तेज प्रयास हो रहा है। जानवर बचाओ, जंगल बचाओ सब बोलते हैं पर आदिवासी बचाओ कोई नहीं बोलता। अरे आदिवासी बचाओ जंगल जीव -जंतु सब बच जाएगा। भाजपा पर कटाक्ष करते हुए हेमन्त सोरेन ने कहा कि कुछ लोगों को तो आदिवासी शब्द से भी चिढ़ है। वे हमें वनवासी कह कर पुकारना चाहते हैं। आज देश का आदिवासी समाज बिखरा हुआ है। हमें जाति-धर्म क्षेत्र के आधार पर बांट कर बताया जाता है। हमें अपने आप को पहचानने की जरुरत है। जातिवाद पार्टी वाद क्षेत्रवाद से ऊपर उठना होगा।
भोज के लिए 100 किलो चावल तथा 10 किलो दाल
मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी परिवार में किसी की भी शादी के अवसर पर एवं मृत्यु होने पर उन्हें 100 किलोग्राम चावल तथा 10 किलो दाल दिया जाएगा। इससे सामूहिक भोज के लिए अब उन्हें कर्ज नहीं लेना पडेगा। मेरी अपील होगी कि सामूहिक भोज करने के लिए कर्ज लेने से बचें। कर्ज लेना भी हो तो बैंक से लें। महाजनों से मंहगे ब्याज पर लिया गया कर्ज अब आपको वापस नहीं करना है। इसकी शिकायत मिलने पर महाजन पर कार्रवाई होगी।
मैं भी लोन लेने जाऊं तो उसे पहली दफा नकार देंगे
मुख्यमंत्री ने कहा कि छात्र-छात्राओं को पढने के लिए राशि उपलब्ध करवाने हेतु 'गुरुजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना लेकर आ रहे हैं। मिशन मोड में कार्यक्रम चलाकर हम किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवा रहे हैं। मुझे पता है कि बैंकों से कर्ज लेना कितना कठिन है। बैंकों की स्थिति तो यह है कि हेमन्त सोरेन भी लोन लेने जाए तो उसे पहली दफा नकार देंगे। कहेंगे की आपकी जमीन सीएनटी-एसपीटी के अंतर्गत आती है। हमारे युवा हुनरमंद होते हुए भी मजदूरी करने को विवश हैं। हमने स्थिति को बदलने की ठानी। हम अपने आदिवासी लोगों को साहूकारों महाजनों के भरोसे नहीं छोड़ सकते हैं। मिशन मोड में कार्यक्रम चलाकर हम किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध करवा रहे हैं। नए साथियों को व्यापार के गुर सिखाने का भी व्यवस्था कर रहे हैं। लोन भी उपलब्ध करवाएंगे। वन अधिकार के जो पट्टे खारिज किये गए हैं हम फिर से इसका रिव्यू करेंगे एवं जो भी लंबित हैं उसे 3 महीने के अन्दर पूरा करेंगे।
9 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित हो
मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं इस मंच से भारत सरकार से मांग करता हूँ कि पूरे देश में इस दिन 9 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश घोषित करनी चाहिए। आदिवासी मुख्यमंत्री होने के अपने मायने हैं। झारखण्ड ही नहीं देश के दूसरे हिस्से के आदिवासियों का भी जो प्यार मुझे मिलता है, जो उम्मीद मुझसे है उससे में भली-भांति परिचित हूं। मौके पर झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने कहा कि राज्य के गठन के बाद पहली बार भव्य तरीके से यह आयोजन हुआ है। सामाजिक शक्तियां समाज के अंदर समाज के प्रति सदैव सकारात्मक सोच के साथ विकास के लिए काम करें। देश में जनजातीय समाज की अलग पहचान है। अपनी पहचान और विरासत को संरक्षित करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है। माहोत्सव के मौके पर जनजाती कलाकृतियों, वस्त्र, आभूषण की प्रदर्शनी लगाई गई। इनके व्यंजन के स्टॉल लगे तो जनजातीय शोध संस्थान की ओर से सेमिनार का आयोजन किया गया।