मछुआरों के मामले में तमिलनाडु की जयललिता सरकार और केंद्र सरकार में टकराव बढ़ रहा है। जयलिलता सरकार ने साफ कह दिया है कि केंद्र सरकार के गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए मछुआरों को भारतीय कोस्ट गार्ड से हर बार मंजूरी लेने संबंधी निर्देश उसे मान्य नहीं है। केंद्र के इस दिशानिर्देश से तमिलनाडु में राजनीति गरम हो गई है क्योंकि मछुआरे जयललिता का वोटबैंक माने जाते हैं। साथ ही, जयललिता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक करीबी पहले से चर्चा में है। इस वजह से जयलिलता पर केंद्र का पक्षधर होने का आरोप भी लगता रहा है।
लिहाजा, इस मामले में जयललिता सरकार के लिए मछुआरों के पक्ष में मजबूती से खड़ा होना राजनीतिक मजबूरी है। अगर साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। मैकेनाइज्ड बोट पर मछली के बड़े कारोबारियों का धन लगा हुआ है और वे अपने बिजनेस में कोई नुकसान बर्दाश्त नहीं कर सकते।
चेन्नै के बंदरगाह रोयापुरम में मैकेनाइज्ड बड़ी नावों से गहरे समुद्र में मछली पकड़ने जाने वाले सथन ने बताया, ‘केंद्र सरकार का यह निर्देश हमें मारने वाला है। इससे हम बर्बाद हो जाएंगे, हमने अम्मा (जयललिता) को चुना है। वह हमारी नेता है और वही हमें बचाएंगीं।’ यह दबाव जयललिता सरकार पर बहुत तगड़ा है। केंद्र सरकार ने दिशानिर्देश जारी किया है कि लंबाई में 15 मीटर से लंबी मछुआरों की नाव को समुद्र में हर ट्रिप से पहले कोस्ट गार्ड से स्वीकृति लेनी होगी। इससे मछुआरों में जबर्दस्त आक्रोश है।
राज्य सरकार ने इस निर्देश का लागू करने में हाथ खड़े कर दिए हैं और इसे अव्यवहारिक बताया है। गौरतलब है कि तमिलनाडु में बड़ी संख्या में मैकेनाइज्ड बोट हैं, जो गहरे समुद्र में जाती है। तमिलनाडु सरकार का कहना है कि राज्य में 5,500 मैकेनाइज्ड नावें हैं, जिनमें से 80 फीसदी 15 मीटर से लंबी हैं। हालांकि मछुआरों का कहना है कि राज्य में दस हजार से अधिक मैकेनाइज्ड बोट हैं। यानी अधिकांश मछुआरों को रोज मंजूरी लेनी पड़ेगी और इससे उनका कारोबार प्रभावित होगा। इस पर लाखों मछुआरों की रोजी-रोटी टिकी हुई है। इस बाबत जयललिता सरकार ने मद्रास उच्च न्यायालय में अपना हलफनामा भी दिया है।