गोरखपुर। पीएम मोदी और सीएम योगी के वोकल फॉर लोकल के मंत्र को सिद्ध करने में गोरखपुर में वन विभाग की पहल पर बनवाई जा रही बाँस की राखियाँ भी योगदान देंगी। ईको फ्रेंडली ये राखियाँ महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन का भी आधार बन रही हैं। एक नवाचार के रूप में प्रदेश में पहली बार बाँस की राखियाँ बनवाई जा रही हैं। नेशनल बम्बू मिशन के तहत कैम्पियरगंज के लक्ष्मीपुर में स्थापित सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) से संबद्ध स्वयंसेवी समूह की महिलाओं द्वारा इस रक्षाबंधन पर्व के पहले एक लाख रुपये की कीमत की राखियों को बनाकर बिक्री हेतु उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया गया है।
महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना केंद्र व प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में शुमार है। इसके लिए सरकार कई तरह के कार्यक्रमों व योजनाओं से महिलाओं को जोड़ रही है। ऐसी ही एक योजना नेशनल बम्बू मिशन भी है। यह मिशन ग्रामीण महिलाओं को बाँस के उत्पाद बनाने के कार्य से जोड़कर उन्हें रोजगार का मंच उपलब्ध करा रहा है। नेशनल बम्बू मिशन के तहत कैम्पियरगंज के लक्ष्मीपुर में एक सामान्य सुविधा केंद्र (सीएफसी) की स्थापना की गई है। यहां महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें बाँस के खिलौनों, गिफ्ट आइटम्स, ज्वेलरी आदि बनाने में पारंगत किया गया है। अब सीएफसी से संबद्ध स्वयंसेवी समूह से जुड़ी महिलाओं द्वारा तैयार बाँस के उत्पादों को बेहतर बाजार भी मिलने लगा है।
बाँस की राखियाँ बनाने का अभिनव प्रयोग :
गोरखपुर के प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) विकास यादव बताते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रायः कुछ नया करने को प्रेरित करते हैं। नवाचार को लेकर ही यह ख्याल आया कि बम्बू मिशन की सीएफसी में बांस की ईको फ्रेंडली राखियाँ बनवाई जा सकती हैं। इससे लोगों को पर्यावरण के अनुकूल राखियों का विकल्प मिलेगा और बनाने वाली महिलाओं की आमदनी भी बढ़ेगी। समूह की महिलाओं से बात हुई तो वह डीएफओ के विचार पर अमल करने को तैयार हो गईं। उन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराया गया और शुरू हो गया बाँस की राखियों को बनाने का सिलसिला।
महिलाओं ने खुद तय किए डिजाइन :
महिलाओं को बाँस के सजावटी सामान बनाने का प्रशिक्षण तो मिला है लेकिन प्रदेश में पहली बार बन रही बाँस की राखियों की डिजाइन उनकी खुद की है। लक्ष्मीपुर सीएफसी पर राखी बनाने के काम में जुटी बिंदु देवी, राजमती, झिनकी, मीना, मीरा, शीला, संजू और अंजू बताती हैं कि मोबाइल पर राखियों की डिजाइन देखने के बाद उन्होंने कुछ परिवर्तन कर बाँस से बनने वाली राखियों के लिए डिजाइन तैयार की। दर्जन भर से अधिक राखियों की डिजाइन तय की गई और उसके अनुरूप लगातार काम जारी है। महिलाओं के उत्साह को देखते हुए इस रक्षाबंधन के पहले तक कुल एक लाख रुपये की कीमत की राखियों को बिक्री हेतु उपलब्ध कराने की तैयारी है।
पूरे साल प्रदर्शित होंगी बाँस की राखियाँ :
डीएफओ विकास यादव बताते हैं कि बाँस की राखियाँ चिड़ियाघर में नेशनल बम्बू मिशन के स्टाल पर प्रदर्शनी व बिक्री के लिए रखी जाएगी। इसके साथ ही 29 जुलाई को 'विश्व बाघ दिवस' पर योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में आयोजित होने वाले इंटरनेशनल सेमिनार में भी इसकी प्रदर्शनी लगाई जाएगी। चिड़ियाघर के स्टाल में ये राखियाँ रक्षाबंधन के बाद भी अवलोकन के लिए उपलब्ध रहेंगी ताकि अगले साल के पर्व के पूर्व तक इसकी खासी मांग उपलब्ध हो सके। बाँस की राखियों के बाजार में आने से पूर्व बाँस के गहनें, श्रृंगारदान, नाइटलैंप, परदे, नेकलेस, ईयर रिंग, फ्लावर स्टैंड, खिलौने आदि बनाने पूरी दक्षता हासिल करने वाली महिलाओं का समूह चिड़ियाघर के आउटलेट से प्रतिमाह 30-35 हजार रुपये प्रतिमाह की कमाई कर रहा है।