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झारखंडः शिक्षा मंत्री क्यों नहीं चाहते धनबाद व बोकारो में चले भोजपुरी और मगही, मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

रांची। झारखंड की सरकारी नौकरियों के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में भोजपुरी, मगही, अंगिका आदि को लेकर...
झारखंडः शिक्षा मंत्री क्यों  नहीं चाहते धनबाद व बोकारो में चले भोजपुरी और मगही,  मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

रांची। झारखंड की सरकारी नौकरियों के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में भोजपुरी, मगही, अंगिका आदि को लेकर विवाद थमने के करीब था कि शिक्षा मंत्री ने एक नया बम फोड़ दिया है। झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन को पत्र लिखकर धनबाद और बोकारो जिला से मगही और भोजपुरी को क्षेत्रीय भाषा की श्रेणी से हटाने का आग्रह किया है।  धनबाद में आरा, बलिया और छपरा के लोगों का बोलबाला है जिनकी बोली भोजपुरी है। इसी वजह से धनबाद को एबीसी वालों का शहर कहा जाता है। मगही भाषी तो हैं ही। कम-ज्‍यादा यही स्थिति करीब के बोकारो शहर की है।

गिरिडीह जिला के डुमारी विधानसभा क्षेत्र से पिछले चार टर्म से निर्वाचित शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन के काफी करीबी हैं। कोरोना के कारण इनकी तबीयत गंभीर हो गई थी। लोग उम्‍मीद छोड़ रहे थे। हेमन्‍त सोरेन की पहल पर एयर एंबुलेंस से चेन्‍नई भेजकर इनका इलाज हुआ। नौ माह तक चेन्‍नई में रहे। काफी दिनों कोमा में रहे, लंग्‍स ट्रांसप्‍लांट कराया गया। मुख्‍यमंत्री की इस मेहरबानी के कारण उनकी आस्‍था उनके प्रति और बढ़ गई है। जनजातीय और स्‍थानीय लोगों के सवाल पर हेमन्‍त सोरेन मगही, भोजपुरी आदि के विरोधी रहे हैं। यह अपने परंपरागत वोट के प्रति मोह की वजह से भी हो सकता है। वे कहते रहे हैं कि यहां की नौकरियों पर बाहर वाले कब्‍जा करते रहे हैं। अभी राज्‍यकर्मचारी चयन आयोग के माध्‍यम हो होने वाली राज्‍यस्‍तरीय नियुक्तियों में क्षेत्रीय और जनजातीय भाषा की सूची से उन्‍होंने भोजपुरी, मगही और अंगिका जैसी भाषाओं को बाहर कर दिया। हाल के दिनों में कांग्रेस का इस मोर्चे पर दबाव का बगावती सुर बढ़ा। बीते विधानमंडल सत्र के दौरान सहयोगी दलों के लिए आयोजित भोज से कांग्रेस के सभी विधायक गायब रहे तब जिला स्‍तरीय नियुक्तियों में चयनित कुछ जिलों में भोजपुरी, मगही और अंगिका को स्‍थान दिया गया। भोज के बहिष्‍कार के बाद जिला स्‍तरीय नियुक्ति के लिए जारी क्षेत्रीय भाषा की सूची में लातेहार में मगही, पलामू में मगही और भोजपुरी, गढ़वा में मगही और भोजपुरी, दुमका, साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, देवघर और जामताड़ा में अंगिका, चतरा में मगही, बोकारों में भोजपुरी और मगही, धनबाद में भोजपुरी और मगही को मंजूरी मिली।

एक हद तक मामला सुलझ ही गया था कि शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने नया राग छेड़ दिया। ऐसे में लोग कयास लगा रहे हैं कि बोल शिक्षा मंत्री भले रहे हैं मगर इशारा कहीं और से तो नहीं है। यह किसी राजनीति का हिस्‍सा तो नहीं। इस तरह की भाषा सत्‍ताधारी झामुमो के लिए अनुकूल है।

जब कर्मचारी चयन आयोग की राज्‍यस्‍तरीय नौकरियों की सूची से हिंदी, अंग्रेजी और संस्‍कृत के साथ भोजपुरी और मगही को भी किनारे किया गया तो भाजपा के साथ कांग्रेसी भी बहुत आक्राम हो गये थे। सब को अपने वोट की चिंता थी। प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष राजेश ठाकुर और प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह ने भी माना था कि नियवमाली में त्रुटियां रह गई हैं उनमें सुधार कराया जायेगा।

स्‍मरण रहे कि कि 5 अगस्‍त 2021 को राज्‍य मंत्रिमंडल की बैठक में राज्‍य कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं के लिए 12 क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं को मंजूरी दी थी। उसके अगले दिन ही हेमन्‍त कैबिनेट के सदस्‍य पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने मुख्‍यमंत्री को पत्र लिखकर 12 भाषाओं की सूची में भोजपुरी और मगही नहीं होने पर असंतोष जाहिर करते हुए मुख्‍यमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में शामिल नहीं किये जाने से पलामू प्रमंडल के तीनों जिले यानी पलामू, गढ़वा और लातेहार तथा चतरा के उम्‍मीदवारों को चयन में समान अवसर नहीं मिल सकेगा। पलामू के तीनों जिलों और चतरा में भोजपुरी और मगही का प्रमुखता से इस्‍तेमाल किया जाता है। यह भी कहा था कि हजारीबाग, बोकारो, धनबाद और कोडरमा में भी भोजपुरी और मगही का प्रमुखता से प्रचलन है। उन्‍होंने दलील भी दी थी कि  राज्‍य सरकार के फैसले के अनुसार  झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में झारखंड से मैट्रिक एवं इंटर पास ही शामिल हो सकते हैं। ऐसे में बिहार, उत्‍तर प्रदेश के लोगों के शामिल होने की संभावना नहीं बनती है। जैसे क्षेत्रीय भाषा की सूची में बांग्‍ल और उड़‍िया शामिल रहने के बावजूद बंगाल और ओडिशा के उम्‍मीदवार इन परीक्षाओं में शामिल होने के योग्‍य नहीं है। दरअसल मिथिलेश ठाकुर गढ़वा से विधायक हैं जो भोजपुरी और मगही बोलने वालों का गढ़ है।

क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी और मगही को किनारे करने के बाद मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन ने एक मीडिया हाउस के साक्ष साक्षात्‍कार में कहा था कि झारखंड का बिहारीकरण नहीं होने देंगे। मगही और भोजपुरी यहां की क्षेत्रीय भाषा न होकर बाहरी भाषा है। झारखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की छाती पर पैर रखकर महिलाओं की इज्‍जत लूटते समय भोजपुरी भाषा में ही गाली दी जाती थी। आदिवासियों ने अलग राज्‍य की लड़ाई क्षेत्रीय भाषा के बूते लड़ी गई, भोजपुरी और  हिंदी के बूते नहीं। अब देखना है कि शिक्षा मंत्री के पत्र के बाद सरकार क्‍या फैसला लेती है और उसका क्‍या असर होता है।

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