उत्तर प्रदेश सरकार ने चौतरफा दबाव के बाद फैक्टरियों और कंपनियों में श्रमिकों से 12 घंटे तक काम कराने वाले श्रम संशोधन अधिसूचना को रद्द कर दिया है। अब श्रमिक पहले की तरह आठ घंटे ही काम करेंगे। इस पर मजदूर संगठनों ने संतोष जताया है। प्रमुख सचिव सुरेश चंद्रा ने शुक्रवार को ही एक आदेश के जरिए पुरानी अधिसूचना को रद्द करते हुए नई अधिसूचना जारी कर दी। इसके साथ ही श्रमिकों के लिए 12 घंटे तक काम करने की बाध्यता को समाप्त करने वाले कठोर नियम को समाप्त कर दिया गया। अधिकतर श्रमिक संगठनों ने इस संशोधन का विरोध करते हुए इसे मजदूर विरोधी बताया था। विरोधी दलों ने भी इसको लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चेबंदी तेज कर दी थी। उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी इस मसले पर विरोधी दलों पर जवाबी हमला बोला था। लेकिन हाईकोर्ट में इस बारे में एक याचिका का जवाब देने से पहले सरकार ने इसे वापस लेकर इस मामले में यू टर्न ले लिया है।
भारतीय मजदूर संघ ने भी किया था विरोध
गौरतलब है कि आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने भी इस श्रम संशोधन का विरोध किया था। भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सजी नारायण ने इसकी तुलना जंगलराज से करते हुए इसे शोषणकारी बताया। उन्होंने इसके खिलाफ मोर्चा खोलने के संकेत दिए थे। कई मजदूर संगठन इस फैसले का तीखा विरोध कर रहे थे और उनका कहना था कि इसे लागू किया गया तो देश मजदूर शोषण के 150 साल पुराने दौर में पहुंच जाएगा।
सात राजनीतिक दलों ने राष्ट्रपति को लिखा था पत्र
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस कानून संशोधन का विरोध करते हुए कहा था कि कोवि़ड 19 की लड़ाई मजदूरों के शोषण और उनकी आवाज दबाने का बहाना नहीं बन सकती। माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी की अगुआई में सात राजनीतिक दलों ने भी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से इस मामले में दखल देने के लिए पत्र लिखा था। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस संशोधन का विरोध करते हुए कहा कि इससे भाजपा का मजदूर विरोधी चेहरा उजागर हो गया है। उन्होंने कहा कि श्रमिक-क़ानून’ को 3 साल के लिए स्थगित करते समय सरकार तर्क दे रही है कि इससे निवेश आकर्षित होगा; जबकि इससे श्रमिक-शोषण बढ़ेगा तथा साथ में श्रम असंतोष औद्योगिक वातावरण को अशांति की ओर ले जाएगा। उन्होंने कहा कि ‘औद्योगिक-शांति’ निवेश की सबसे आकर्षक शर्त होती है।