रांची। योगी कथामृत के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव स्वामी ईश्वरानन्द जी ने अपने ऑनलाइन व्याख्यान का आरम्भ एक सुंदर प्रार्थना से किया – “हे अनंत ईश्वर! मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञानता से ज्ञान की ओर, इच्छाओं से संतुष्टि की ओर तथा मृत्यु से अमरत्व की ओर अग्रसर करें।“
इस प्रार्थना के प्रत्युत्तर में गढ़ी इस पुस्तक के विषय में स्वामीजी ने बताया कि आज से 75 साल पहले, मानव जाति को एक अलौकिक आध्यात्मिक उपहार मिला, जब परमहंस योगानंदजी की जीवन-कथा: ‘योगी कथामृत’ दिसंबर 1946 में प्रकाशित हुई थी।
तब से, यह पुस्तक एक आध्यात्मिक गौरव ग्रंथ बन गई है। इसे लाखों लोगों ने पढ़ा है;इसने असंख्य हृदयों को प्रेरित किया है। वास्तव में यह कहना अनुचित न होगा कि इस पुस्तक ने लाखों लोगों को अध्यात्म से परिचित कराया है। जैसा कि इस पुस्तक के एक समीक्षक ने लिखा है: "हमें इस महत्वपूर्ण जीवनी को आध्यात्मिक क्रांति लाने की सामर्थ्य का श्रेय देना होगा।"
कोई आश्चर्य नहीं कि जो लोग ग्रहणशील हृदय से इसे पढ़ते हैं वे अत्यंत प्रभावित होते हैं। पुस्तक का प्रत्येक शब्द और वाक्य उसी पवित्र प्रेम के स्पंदन से ओत-प्रोत है जो इस पुस्तक को लिखते समय योगानंदजी को घेरे हुए था।
संसार भर में इसकी उत्कृष्टता पर टिप्पणी करते हुए स्वामीजी ने कुछ प्रेरणास्पद उदाहरण पढ़ कर सुनाये "योग की इस प्रस्तुति के समान अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में पहले कभी कुछ भी नहीं लिखा गया है।" - कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस
"योगानंद की आत्मकथा शरीर की नहीं अपितु आत्मा की आत्मकथा है।" - न्यूजवीक
"योगीकथामृत नए युग का उपनिषद माना जाता है ...इसने दुनिया भर में सैकड़ों हजारों सत्यान्वेषियों की आध्यात्मिक प्यास को संतुष्ट किया है। हमने भारत में आश्चर्य और विमोहन के साथ भारत के संतों और दर्शन के बारे में इस पुस्तक के अभूतपूर्व प्रसार को देखा है। । हमें अत्यंत संतोष और गर्व है कि भारत के सनातन धर्म का शाश्वत अमृत, सत्य के शाश्वत नियम योगी कथामृत के सुनहरे प्याले में संग्रहित किये गयेहैं।”- डॉ. आशुतोष दास, एम.ए., पीएच.डी., डी. लिट।, प्रोफेसर, कलकत्ता विश्वविद्यालय
"योगी कथामृत को, अब तक लिखी गई सबसे मनोरंजक और ज्ञानवर्धक आध्यात्मिक पुस्तकों में से एक के रूप में मानना न्यायसंगत है।"— टॉम बटलर-बोडॉन, लेखक
"हमारे वर्तमान समय के पाठक को योगी कथामृत जैसी मनोरम, गहन और सच्ची पुस्तक शायद ही कभी मिलेगी...ज्ञान से भरपूर और व्यक्तिगत अनुभवों से भरपूर..."। - ला पाज़, बोलीविया
"हजारों पुस्तकें जो हर साल प्रकाशित होती हैं उनमें से कुछ मनोरंजक होती हैं, कुछ शिक्षा प्रदान करती हैं, जो ज्ञान वर्धन करती हैं। एक पाठक अपने को भाग्यशाली मान सकता है यदि उसे ऐसी पुस्तक मिले जो ये तीनों काम कर दे। योगी कथामृत इन सबसे और भी अधिक अनुपम है - यह एक ऐसी पुस्तक है जो मन और आत्मा के द्वार खोल देती है।"— इंडिया जर्नल
स्वामीजी ने इसके अनुवाद और प्रकाशनों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 7 मार्च 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाईएसएस की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक विशेष डाक टिकट जारी किया। उस अवसर पर, योगी कथामृत का जिक्र करते हुए, मोदी ने कहा: “दुनिया की 95% आबादी योगी कथामृत को अपनी मातृभाषा में पढ़ सकती है। क्या कारण हो सकता है कि किसी व्यक्ति के मन में इस पुस्तक का अपनी मातृ भाषा में अनुवाद करने का मन करे ताकि वह इसे दूसरों को भी उपलब्ध करा सके? यह उस आध्यात्मिक चेतना के अनुभव का ही परिणाम है कि हर व्यक्ति सोचता है कि उसे कुछ 'प्रसाद' दूसरों के साथ बांटना चाहिए।”
न केवल विभिन्न भाषाओं में, यह पुस्तक अब विभिन्न स्वरूपों में भी उपलब्ध है; एक मुद्रित पुस्तक के रूप में, एक डिजिटल ईबुक के रूप में, और यहां तक कि ऑडियोबुक के रूप में भी। ये ऑडियोबुक वाईएसएस वेबसाइट से मुफ्त डाउनलोड के लिए उपलब्ध हैं।
यह पुस्तक न केवल आध्यात्मिकता और संतों में रुचि रखने वालों द्वारा पढ़ी जाती है, बल्कि पूर्व के दर्शन और धर्म से लेकर अंग्रेजी साहित्य, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, मानव-विज्ञान, इतिहास जैसे पाठ्यक्रमों के लिए संसार भर के कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भी और यहां तक कि व्यवसाय प्रबंधन में भी इसका उपयोग किया जा रहा है। यह स्पष्ट है कि इस पुस्तक में वर्णित आध्यात्मिक सिद्धांत अब अधिक व्यापक रूप से लागू हो रहे हैं - न केवल आध्यात्मिक अवधारणाओं को समझने के लिए बल्कि भौतिक अस्तित्व की दिन-प्रतिदिन की सांसारिक समस्याओं का उत्तर देने के लिए भी।
50 से अधिक भाषाओँ में अनुवादित यह पुस्तक गृहस्थ और संन्यासी दोनों प्रकार के योगियों के जीवन का वर्णन करती है - विशेष रूप से क्रिया योगी। हालांकि इस तरह के कालातीत ग्रंथ के बारे में कुछ भी सामान्य रूप से संक्षेप में कहना कठिन है, यह कहना अनुचित नहीं होगा कि योगानंदजी की योगी कथामृत, उन परम सत्यों के लिए आध्यात्मिक रूप से प्यासी आत्माओं की खोज पर केंद्रित है - उन प्रश्नों के उत्तर की खोज जो अपने अस्तित्व के आरम्भ से ही मनुष्य को भ्रमित करते रहते हैं। वह आध्यात्मिक रूप से प्यासी आत्मा वे स्वयं हैं। और ईश्वर और सत्य के लिए उनकी तीव्र भक्ति और लालसा ने उन्हें विभिन्न महान आत्माओं की ओर अग्रसर किया, जिनके जीवन और आध्यात्मिक उपलब्धियों का उन्होंने वर्णन किया है, जैसे: दि्वशरीर संत, गंध बाबा, प्लवन शील संत, बाघ स्वामी और अन्य अनेक। आखिरकार, उनकी खोज उन्हें उनके गुरु, स्वामी श्री युक्तेश्वर के आश्रम तक ले जाती है, जिनका कोलकाता के पास एक आश्रम है। कई वर्षों के प्रशिक्षण के बाद, योगानंदजी को अंततः समाधि-सत्य का परम अनुभव प्रदान किया जाता है। एक सम्पूर्ण अध्याय में इस सर्वोच्च अनुभव का वर्णन है जो एक दीप्तिमान शिष्य को, जब वह उसके लिए तैयार होता है, उसके गुरु द्वारा प्रदान किया जाता है। समाधि का इतना विस्तारित वर्णन संभवतः किसी अन्य ग्रंथ में नहीं किया गया है।
इस पुस्तक में परमहंसजी योगियों की अलौकिक शक्तियों और चमत्कारों के नियम के बारे में बात करते हैं। उन्होंने क्रिया योग के विज्ञान पर एक पूरा एक अध्याय लिखाहै। यह योग की वैज्ञानिक तकनीक है जो महावतार बाबाजी ने 19वीं शताब्दी में बनारस के अपने प्रमुख शिष्य लाहिड़ी महाशय के माध्यम से दुनिया को दी थी। परमहंसजी को उनके गुरु द्वारा दिए गए मुख्य कार्यों में से एक क्रिया योग के इस संदेश को पूरी दुनिया में फैलाना था। इस अध्याय में क्रिया योग के वैज्ञानिक सिद्धांतों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
और फिर हम उनके गुरु के पुनरुत्थान के अध्याय पर आते हैं। यह एक अद्भुत वृत्तांत है कि कैसे उनके गुरु मृत्यु के बाद अपने दुखी शिष्य को सांत्वना देने के लिए सशरीर वापस आते हैं,और यह ब्रह्मांडीय ज्ञान प्रदान करते हैं कि मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होती है तथा इस भौतिक संसार से परे विद्यमान कई लोक हैं। जब कोई इस अध्याय को पढ़ता है, तो मृत्यु का सारा भय गायब हो जाता है, और उसका गुप्त रहस्य प्रत्यक्ष हो जाता है। अनेकों बार, यह पुस्तक आध्यात्मिक पथ के लिए आत्मा की प्रार्थना का प्रत्युत्तर बन जाती है। कई भक्त बताते हैं कि कैसे वे अपने जीवन में एक लक्ष्य, अथवा अपनी समस्याओं का समाधान खोज रहे थे, और अकस्मात उन्हें यह पुस्तक या तो किताबों की दुकान में मिल जाती है, या कोई मित्र उन्हें उपहार में देता है, या वे इसे किसी पुस्तकालय में पा लेते हैं।
एकगुप्त चुंबकीय आकर्षण आज भी सच्चे साधकों को इस पुस्तक की ओर खींचता रहता है। मैं इसके एक पाठक का अनुभव बताता हूं: "पहली बार जब मुझे इस आत्मकथा के बारे में पता चला तब मैं लगभग 21 वर्ष का था। वास्तव में मैं एक उपयुक्त पुस्तक की तलाश में था जब मैंने एक भारतीय उद्यमी दादी बलसारा के साक्षात्कार को सुना था कि वह 'मध्यरात्रि में ब्रह्मांड को छूती' थी! जब मैं अपने घर पर ढेर सारी किताबों में से एक किताब ढूंढ रहा था, एक किताब मेरे हाथ में बार बार आती और मैं उसे एक तरफ रख देता क्योंकि मुझे किसी योगी या उसके जीवन के बारे में पढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, अपितु एक ऐसी पुस्तक जो 'ब्रह्मांड को छूने'! के निर्देश बता सके। मुझे नहीं पता था कि मैं ठीक इसी पुस्तक में वह और बहुत सी अन्य चीजें पा सकता हूं! और अपनी आत्मकथा लिखने का योगानंदजी का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक पाठक को यह अनुभव करने के लिए प्रोत्साहित करना था कि ईश्वर को हर आत्मा द्वारा अनुभूत किया जा सकता है और एक मार्ग है जो उन तक ले कर जाता है - क्रिया योग का मार्ग। पुस्तक के अंत में वे यही लिखते हैं:
"ईश्वर प्रेम है; इसलिए सृजन की उनकी योजना प्रेम पर ही आधारित हो सकती है। पांडित्यपूर्ण स्पष्टीकरण की अपेक्षा क्या यह सीधा सरल विचार मानव हृदय को सांत्वना प्रदान नहीं करता? सत्य के मर्म तक पहुँचने वाले प्रत्येक संत ने यही कहा है कि ईश्वर ने सृष्टि की पूरी योजना बनाई है और वह योजना अत्यंत सुंदर है और आनंद से भरपूर है।"
"पूर्व और पश्चिम में क्रिया योग का उदात्त कार्य अभी तो केवल शुरू ही हुआ है। ईश्वर करे कि सभी लोगों को यह ज्ञात हो जाए कि सभी मानवीय दुखों को मिटा देने के लिए आत्म-ज्ञान की एक निश्चित वैज्ञानिक प्रविधि विद्यमान है!
अपने व्याख्यान के अंत में स्वामीजी ने प्रारम्भ में कही प्रार्थना का हवाला देते हुए कहा कि इस आध्यात्मिक गौरव ग्रन्थ के 75 वर्ष पूरे होने का उत्सव मनाते हुए, हम वास्तव में असत्य पर सत्य की, अंधकार पर प्रकाश की, और नश्वर शरीर पर अमर आत्मा की विजय का उत्सव मना रहे हैं। और जैसे-जैसे समय बीतेगा, सत्य का यह प्रकाश लाखों लोगों के हृदयों में ज्ञान के दीप जलाएगा और उन्हें अमरता के मार्ग पर ले जाएगा। इस पुस्तक के लिए उत्सव मनाने का सबसे अच्छा उपाय है इसे पढ़ना। और यदि आप इसे पहले ही पढ़ चुके हैं, तो इसे पुनः पढ़ना।