लोकसभा में सोमवार को ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर जैसे ही अपने बयान के दौरान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावे को खारिज करने लगे, विपक्षी सांसदों ने टोका-टोकी शुरू कर दी। इससे नाराज होकर गृह मंत्री अमित शाह ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए विपक्ष से कहा, “आप अपने विदेश मंत्री की बात पर विश्वास नहीं कर सकते? इसलिए आप 20 साल तक वहीं बैठेंगे।” अमित शाह के इस बयान पर सत्ता पक्ष की ओर से तालियां बजीं, जबकि विपक्ष ने इसका विरोध किया।
अमित शाह ने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वे बार-बार विदेशी बयानों का हवाला दे रहे हैं, लेकिन संसद में दिए गए भारत सरकार के आधिकारिक बयान को नजरअंदाज कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब कोई बात भारत की संसद में कही जाती है, तो वह सर्वोच्च होती है, न कि किसी विदेशी नेता का बयान। उन्होंने कहा कि विपक्ष को देश की संस्थाओं और नेताओं पर भरोसा करना चाहिए।
इस दौरान एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि 22 अप्रैल से 17 जून के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच कोई फोन कॉल नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि ट्रंप द्वारा किए गए ‘मध्यस्थता’ के दावों में कोई सच्चाई नहीं है। जयशंकर ने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर आतंक के खिलाफ भारत की नीति में एक नया अध्याय है, और यह स्पष्ट संदेश था कि भारत अपनी संप्रभुता से किसी तरह का समझौता नहीं करेगा।
विपक्ष ने हालांकि इस बयान को लेकर कई सवाल उठाए। कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने पूछा कि अगर कोई विदेशी राष्ट्रपति ऐसा दावा करता है, तो प्रधानमंत्री ने खुद स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया? उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को अधूरा करार देते हुए कहा कि जब लक्ष्य पूरा ही नहीं हुआ, तो सरकार उसे सफलता क्यों बता रही है?
वहीं, प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि विदेश मंत्री ने सिर्फ कॉल की बात खंडित की, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि अमेरिका की कोई भूमिका थी या नहीं। उन्होंने सरकार पर पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया।
संसद में इस बहस ने यह दिखा दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और राजनीतिक विश्वास को लेकर सत्ता और विपक्ष के बीच कितनी गहरी खाई बन चुकी है।