उत्तर प्रदेश में विकास दुबे की कहानियों ने अपराध और सियासत के गठजोड़ के सभी पुराने किस्सों को फीका कर दिया है। कानपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर बिकरू गांव अब जानी-पहचानी जगह बन गई है, जहां से हर रोज नेताओं, पुलिसतंत्र और अपराधियों के संगठित अपराध की नई कहानियां निकल कर आ रही हैं। वैसे तो अपराध की दुनिया में नाम कमा चुके कई चेहरे प्रदेश की विधानसभा की चौखट पारकर ‘माननीय’ का खिताब पा चुके हैं, लेकिन महज एक गांव की पंचायत में अपने सियासी रसूख की बदौलत विकास दुबे ने पूरे प्रदेश के बड़े माफियाओं को हैरान कर दिया है।
एक मंत्री की हत्या के आरोपों से बरी, एक प्रिंसिपल की हत्या में उम्रकैद का सजायाफ्ता कैदी और 60 से अधिक संगीन अपराध में शामिल विकास एक सीओ, एक थाना प्रभारी, दो सब इंस्पेक्टर समेत आठ पुलिसवालों को मौत के जाल में फंसा कर नया बाहुबली बनकर उभरा है। यह चुनौती है योगी सरकार के उस दावे को, जिसमें अपराधमुक्त प्रदेश बनाने का वादा शामिल है। उत्तर प्रदेश पुलिस की साठ से अधिक टीमें उसकी तलाश में हैं, लेकिन सियासत के बड़े चेहरे उससे रिश्ते छिपाने के फेर में जुटे हैं।
बुधवार, 8 जुलाई को हमीरपुर जिले में पुलिस ने एनकाउंटर में विकास के साथी शूटर अमर दुबे को मार गिराया। उसे विकास का दाहिना हाथ कहा जाता था और जिस मुठभेड़ में आठ पुलिसवालों की मौत हुई, उसमें वह भी आरोपी था। विकास के एक और साथी श्यामू बाजपेयी को कानपुर में एनकाउंटर के बाद पकड़ा गया। हरियाणा के फरीदाबाद से भी उसके कुछ साथी पकड़े गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने विकास दुबे पर इनाम 50 हजार से बढ़ाकर पहले एक लाख, फिर ढाई लाख और फिर पांच लाख रुपये कर दिया है। इस बीच, प्रदेश के मंत्री और तमाम रसूखदार नेताओं के साथ उसकी तसवीरें सोशल मीडिया पर शेयर और लाइक के नए रिकॉर्ड बना रही हैं। उसका एक वीडियो भी सामने आया है, जो साल 2006 का है। इसमें वह बता रहा है कि अपराध उसका रास्ता नहीं, वह ग्रेजुएट और स्कॉलर है, जो सियासत में भविष्य देख रहा है। वह बताता है कि उसे प्रदेश में कई बार मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हरिकिशन श्रीवास्तव का आशीर्वाद प्राप्त था।
यहा बताना जरूरी है कि हरिकिशन श्रीवास्तव का निधन 2001 में ही हो गया। फिलहाल, प्रदेश की सियासत में कम ही लोग उनके बारे में जानते हैं। इमरजेंसी में जेल काटने वाले हरिकिशन श्रीवास्तव बनारसी दास, मायावती और कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। जनता पार्टी से शुरू हुई उनकी राजनैतिक यात्रा जनता दल, भाजपा होते हुए बसपा तक पहुंची थी और 1990-91 में मुलायम सिंह की सरकार के समय वह डेढ़ साल विधानसभा अध्यक्ष रहे। उनकी सरपरस्ती में विकास दुबे भी अपनी पार्टी बदलता रहा और फिलहाल वह भाजपा के साथ रिश्तों की डोर को मजबूती देने पर काम कर रहा था। भाजपा के कई नेताओं के साथ उसकी तसवीरों के अलावा एक वीडियो में वह मौजूदा दो विधायकों को अपना खैरख्वाह बता रहा है। वे हैं, बिल्हौर के भाजपा विधायक भगवती प्रसाद सागर और कानपुर की बिठूर विधानसभा सीट से विधायक अभिजीत सिंह सांगा।
बहरहाल, विकास दुबे के कारनामों की कुंडली खंगाली जा रही है। जो जानकारी आ रही है उसके मुताबिक पहली बार वह सुर्खियों में तब आया जब उसने 2001 में कानपुर देहात के शिवली थाने के भीतर दिनदहाड़े राजनाथ सिंह की सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री संतोष शुक्ला की हत्या कर दी। इसी घटना के बाद उसके ऊंचे सियासी संपर्कों का खुलासा हो गया। थाने के भीतर हत्या करने वाले अपराधी को भी पुलिस पकड़ नहीं पाई और घटना के चार महीने बाद उसने अदालत में खुद समर्पण किया। इस मामले में वह अदालत से इसलिए बच निकला, क्योंकि हत्या के चश्मदीद गवाह 25 पुलिसवाले अदालत में गवाही से कन्नी काट गए। इतना ही नहीं, इस वीभत्स हत्याकांड का जांच अधिकारी भी अदालत में अपने बयान से मुकर गया। धीरे-धीरे वह सियासी दलों की जरूरत बन गया। पत्नी ऋचा दुबे को बिकरू की पंचायत में प्रधान या सदस्य बनाए रखने के लिए सभी दलों के साथ साठगांठ करता रहा। पिछले 15 साल से प्रधानी कर रही विकास की पत्नी ऋचा और उसका बेटा भी घटना के बाद से फरार हैं। जानकारी आ रही है कि जिस वक्त पुलिस के साथ मुठभेड़ चल रही थी, वह सीसीटीवी के जरिए मोबाइल पर सब देख रही थी।
आज भी विकास दुबे और स्थानीय पुलिस की साठगांठ सवालों के घेरे में है। चौबेपुर थाना के एसओ विनय तिवारी समेत चार पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया गया है। विकास के खैरख्वाह 68 पुलिसवाले लाइन हाजिर किए गए हैं। पुलिसवालों पर कार्रवाई तो ड्यूटी में लापरवाही के नाम पर हुई है, लेकिन महकमे में सभी जानते हैं कि ये सब विकास और उसके गैंग की राह आसान बनाने को हर पल तैयार रहते थे। आरोप है कि इनमें से कुछ विकास के संपर्क में थे और उसे पुलिस एक्शन की जानकारी दे रहे थे। इसी वजह से विकास दुबे ने थाने की दबिश से पहले ही बड़ी तैयारी कर ली और आठ पुलिसवालों को शहादत देनी पड़ी। पुलिस ने उसके स्थानीय कनेक्शन को खंगालना तो शुरू कर दिया है, लेकिन बड़े सियासी आका अभी जांच की आंच से दूर ही हैं।
इस बीच, इस घटना में शहीद सीओ देवेंद्र मिश्र की मार्च में एसएसपी को लिखी गई एक चिट्ठी को लेकर भी महकमे में खासा बवाल मचा है। इस चिट्ठी में देवेंद्र मिश्र ने विकास दुबे के आपराधिक इतिहास का कच्चा चिट्ठा संलग्न करते हुए लिखा था कि किस तरह इलाके के थानाध्यक्ष उसके साथ सहानुभूति रखते हैं। इसी चिट्ठी को आधार बनाते हुए आइपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर ने डीजीपी एचसी अवस्थी को पत्र लिखकर एसएसपी के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग रखी। आरोप है कि विकास दुबे को लेकर देवेंद्र मिश्र की चिट्ठी के बावजूद तत्कालीन एसएसपी अनंत देव ने कोई कार्रवाई नहीं की। मामले ने तूल पकड़ा, तो अनंत देव की भूमिका को लेकर विभागीय जांच शुरू हुई और उन्हें एसटीएफ में मौजूदा नियुक्ति से हटाकर पीएसी मुरादाबाद भेज दिया गया।
दरअसल, विकास दुबे राजनीतिक संपर्कों की वजह से पुलिस महकमे पर दबाव बनाने में कामयाब हो जाता था। इलाके के छोटे-बड़े झगड़े उसकी निगरानी में ही सुलझाए जाते थे। इसमें स्थानीय पुलिस उसे खुलकर मदद करती थी। उसकी कार्यशैली यूपी के दूसरे माफिया से अलग रही, इसलिए उसका किसी से गैंगवार नहीं हुआ। वह अपने गांव और गृह जिले तक ही सीमित रहा। इन सबके बीच विपक्षी दल यूपी को अपराधमुक्त करने के योगी सरकार के दावों पर सवाल उठा रहे हैं। हकीकत तो यही है कि विकास दुबे पुलिस की तमाम चुस्ती और ताकत को झुठलाकर फरार है।