18 नवंबर को शाही ईदगाह का भविष्य तय हो सकता है। इस दिन सत्र न्यायालय मे खारिज याचिका को एक बार फिर से जिला न्यायालय के सामने दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होनी है। सत्र न्यायालय ने ये कहते हुये इसे निरस्त किया था की अदालत ने साल 1991 में पास हुए प्लेसेज़ ऑफ़ वरशिप एक्ट का भी ज़िक्र किया। इसे साल 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम पारित करवाया था। ये कानून कहता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थान जिस स्वरूप में था, वह उसी स्वरूप में रहेगा। इस मामले में अयोध्या विवाद को छूट दी गई थी। जो कानुनी रूप से अहम हो सकता है। जो बना हुआ है क्या उसको हटाया जा सकता है इसको लेकर के रंजना अग्निहोत्री, विष्णु शंकर जैन, हरिशंकर जैन समेत तीन अन्य लोगों ने मथुरा के एक कोर्ट में एक सिविल सूट 13 अक्टूबर को दाखिल किया था।
इतिहास का हवाला दिया गया की पहले मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। जिसमें इतिहास के कुछ पन्नों का भी हवाला देकर के एक याचिका सत्र न्यायालय में दी गई थी लेकिन जिसे बाद में खारिज कर दिया था। याचिका पर खारिज होने के बाद इसे डिस्टिक जज के रिवीजन के लिए डाला गया था जिसे स्वीकार भी किया गया और 18 नवंबर को इसकी सुनवाई भी की जानी है हरि शंकर जान कहते हैं की 1991 का जो एक्ट बनाया गया था कि 1947 के बाद जो पूजा स्थल जिस स्थिति में है उनको वैसा ही रखा जाएगा अयोध्या को उस वक्त छोड़ दिया गया था ऐसे में इस तरह की याचिका का किया जाना सत्र न्यायालय ने इसी आधार पर खारिज किया।
लेकिन हर शंकर जैन का कहना है कि उनकी याचिका में इन सब बिंदुओं के साथ-साथ उसे 1947 के मूल ढांचे में लाने का एक वजह अतिक्रमण हुए हैं उनको हटाया जाए, अतिक्रमण को समाप्त किया जाए जिससे मंदिर पूर्ण रूप से बन सके ऐसे ही कुछ याचिकाएं हाई कोर्ट में भी डाली गई है जिनकी सुनवाई अभी तय नहीं है ।अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद हिंदू संगठनों से यह आवाज उठने लगी थी कि अब मथुरा और काशी के भी विवाद को हल करने की बात है कि जाएगी। मथुरा को लेकर के रंजना अग्निहोत्री, विष्णु शंकर जैन, हरिशंकर जैन समेत तीन अन्य लोगों की याचिका महत्वपूर्ण हो गया है और 1991 के कानून के बाद इस्का डीजे कोर्ट का जो भी निर्णय है बहुत खास हो जयेगा और इसकी 18 नवम्बर की तरीख इस के कानून के लडाई के लिये आगे के रास्ते को भी तय करेगा ।