भीलवाड़ा की मोहिनी के जिस्म पर चस्पा ज्यादती के निशान हालात की भयावहता की गवाही देते है। उसे पिछले माह गांव में डायन बताकर सरेआम यातनाएं दी गईं। लेकिन जब वो इंसाफ की गुहार लेकर पुलिस तक गई तो पुलिस ने नए कानून के बजाय भारतीय दंड सहिंता में कारवाही करना ही ठीक समझा।
साठ साल की मोहिनी ऐसी अकेली नहीं है जो अंधविश्वास से भरी इस ज्यादती से गुजरी है। भीलवाड़ा जिले की ही बलाई देवी [65] की भी यही दास्तां है। ये दोनों औरतें महिला संगठनो के साथ जयपुर आईं और अपना दर्द बयान किया। भीलवाड़ा में सक्रिय बाल और महिला चेतना समिति की तारा अहलूवालिया दुःख के साथ कहती है पुलिस अब भी प्रचलित तरीके और कानून के तहत मामूली कारवाही कर पल्ला झाड़ रही है। हैरत की बात है कि पुलिस कर्मचारी इस नए कानून से पूरी तरह बेखबर हैं। ऐसे में किसी पीड़ित को कैसे न्याय मिलेगा।
राजस्थान में डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम तब वजूद में आया जब गत 24 अप्रैल, 2015 को राज्यपाल ने इस पर अपने हस्ताक्षर कर दिए। मगर यह तब बेअसर दिखाई दिया जब पीड़ित महिलाएं फरियाद लेकर पुलिस थानों तक पहुंची। महिला अधिकार संगठनों का कहना है कि यह कानून एक लंबी लड़ाई के बाद हासिल हुआ है। इसके लिए महिलाओं ने अरसे तक सड़कों पर लड़ाई लड़ी और अदालतों तक गईं। इस कानून में डायन प्रताड़ना रोकने के कड़े उपाय किए गए हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव कहती है ''हाल में दंड सहिंता की धारा 161 में प्रावधान किया गया है कि अगर पुलिस किसी कानून की पालना में कोताही बरते या अपने कर्तव्य में लापरवाही बरते तो उनके खिलाफ कारवाही हो सकती है। इसमें छ माह से लेकर दो साल तक की सजा हो सकती है। भीलवाड़ा में जो पीड़िताओं के साथ हुआ है, वह इस धारा के तहत पुलिस के विरुद्ध कारवाही करने के लिए लिए पर्याप्त है।''
महिला संघठनों के मुताबिक, राजस्थान में पिछले डेढ़ दशक में कोई एक हजार ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं जब किसी महिला को डायन बताकर सरे राह यातनाएं दी गईं। तारा अहलूवालिया कहती हैं एक दशक में भीलवाड़ा में 55 महिलाओं को डायन निरूपित कर जुल्मो सितम का निशाना बनाया गया। ताजा घटना की शिकार मोहिनी दलित है। उसने जब आपबीती सुनाई तो गला रुंध गया और आंखे भर आई। कहने लगी 'मुझे सरे आम गांव में गत 25 मई को डायन बताकर बुरी तरह मारा पीटा गया। मेरे पति अपाहिज है, वे बचाने आए तो उनको भी लाठियों से पीटा गया। मोहिनी का परिवार सामाजिक बहिष्कार के हालात में रह रहा है। मोहिनी की 13 साल की पोती इस घटना से इतनी अपमानित और आतंकित है कि स्कूल जाना बंद कर दिया है।
महिला संघठनों के स्वर मुखरित करने के बाद पुलिस की आंख खुली और नए कानून को लेकर पुलिस हरकत में आई है।