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हरितक्रान्ति की विधवाएं

हरितक्रान्ति के गवाह पंजाब में बैसाखी के बाद किसान ढोल-नगाड़े तो अब वैसे भी नहीं बजाते। लेकिन कृषि प्रधान देश के लिए यह बात शर्म की है कि इस मौके पर आत्महत्या करने वाले किसानों की विधवाएं अपने हक के लिए चौखट से बाहर निकल सडक़ों पर आ गई हों। खेतों से मंडियों में पहुंचे गेंहू के सुनहरे दाने और इन दिनों रोपे जा रही धान की पौध इन्हें खुश नहीं कर रहीं। इनके हमनिवाज कर्ज के चलते आत्महत्या कर चुका है, जमीन इनके पास है नहीं, कर्जा जस के तस है, बैंक और आढ़ती इन्हें जलील करने से बाज नहीं आ रहे, जमींदारों के घरों का गोबर उठाकर बच्चे पाल रही हैं या लोगों के फटे लीड़े सिलती हैं ये।
हरितक्रान्ति की विधवाएं

हरितक्रान्ति के गवाह पंजाब में बैसाखी के बाद किसान ढोल-नगाड़े तो अब वैसे भी नहीं बजाते। लेकिन कृषि प्रधान देश के लिए यह बात शर्म की है कि इस मौके पर आत्महत्या करने वाले किसानों की विधवाएं अपने हक के लिए चौखट से बाहर निकल सडक़ों पर आ गई हों। खेतों से मंडियों में पहुंचे गेंहू के सुनहरे दाने और इन दिनों रोपे जा रही धान की पौध इन्हें खुश नहीं कर रहीं। इनके हमनिवाज कर्ज के चलते आत्महत्या कर चुका है, जमीन इनके पास है नहीं, कर्जा जस के तस है, बैंक और आढ़ती इन्हें जलील करने से बाज नहीं आ रहे, जमींदारों के घरों का गोबर उठाकर बच्चे पाल रही हैं या लोगों के फटे लीड़े सिलती हैं ये। बरनाला (पंजाब) के गांव फतेहगढ़छन्ना में राज्य की विभिन्न किसान यूनियनों के आह्वान पर हजारों की तादाद में ये विधवाएं इक्ट्ठा हुईं। हर गीली आंख हाथ जोड़े ,अपनी कहानी बताने को बेताब थी। कुछ तो इसी में धन्य हैं कि पहली दफा किसी ने उनकी दास्तां दर्द सुन ली। इन्हें अपने खाविंद की आत्महत्या पर राजनीति या उनकी लाश के सौदे नहीं करने हैं। चाहिए तो सिर्फ इतना कि किसी तरह कर्जा निपट जाए और इज्जत से दो वक्त चूल्हा जलता रहे। अहम बात की अब आत्महत्या करने वालों में सिर्फ किसान नहीं हैं बल्कि खेती मजदूर भी शामिल हैं।  

भागण का सिर्फ नाम ही भागण है। बरनाला के गांव बड़ेचहाणके की रहने वाली 32 वर्षीय भागण के पति ने दो साल पहले आत्महत्या की थी। 50,000 रुपये कर्ज तले दबा भागण का पति खेत मजदूर था। वह बताती है‘कर्जा चुकाने के लिए हमारे पास जमीन या ट्रेक्टर तो था नहीं।‘ भागण गांव के दो घरों में जानवरों का मल उठाकर महीने का 600 रुपया कमाती है। जिससे अपना और अपने तीन बच्चों का पेट पालती है।

कुछ ऐसे भी किसान हैं जिन्होंने जलालत से बचने के लिए जमीन बेचकर कर्जा तो चुका दिया लेकिन जमीन हाथ से जाने का गम सहन नहीं कर सके। संगरूर के गांव छाजली के प्रितपाल सिंह की विधवा परमजीत कौर बताती है कि ‘हमारे पास चार कीले जमीन थी। पति पर सहकारी बैंक का 70 लाख रुपये कर्जा था। गांव में बदनामी और कुर्की के डर से मेरे पति ने जमीन बेचकर सारा कर्जा चुका दिया। आढ़तियों ने सारे कागजों पर उनके अंगूठे का निशान ले लिया और खाली हाथ उन्हें घर भेेज दिया। पति को लगा कि उनके पास अब कुछ भी नहीं रहा। कोई नौकरी नहीं, बच्चे छोटे-छोटे हैं और दो इंच भी जमीन नहीं रही। घर आकर उसने स्प्रे पीकर आत्महत्या कर ली।’ परमजीत कौर के अनुसार अभी भी आढ़ती का डेढ़ लाख रुपया कर्ज बकाया है। जात से ब्राह्ण परमजीत लोगों के घरों में रोटी पकाकर 400-500 रुपये कमा लेती है। जिससे वह चार बच्चों को पाल रही है। उसके पास न जमीन है न बच्चों को नौकरी।

 इसी गांव की लागकौर की कहानी तो रोंगटे खड़े कर देती है। उम्र के 70 पार कर चुकी लागकौर खुद भी विधवा है और अपनी दो विधवा बहुंओं के साथ रहती है। लागकौर के पति ने कर्ज से तंग आकर 13 वर्ष पहले आत्महत्या कर ली थी। वह बताती है कि मेरे पति हरिसिंह पर 7 लाख रुपये कर्ज था। बैंक वाले तंग करते थे। तंग आकर मेरे पति ने स्प्रे पीकर आत्महत्या कर ली। उनकी मौत के बाद मेरा बड़ा बेटा मानसिक तौर पर परेशान हो गया कि वह बाप का कर्ज कैसे उतारेगा। एक दिन उसने कहा कि वह दवा लेने जा रहा है। वह वापिस नहीं आया, उसने भी आत्महत्या कर ली। घर और कर्ज उतारने की जिम्मेदारी अब सबसे छोटे बेटे पर आ गई। पर उसने भी स्प्रे पीकर आत्महत्या कर ली। हम तीन विधवा औरतें घर में अकेली रहती हैं। दोनों बहुएं किसी तरह अपने-अपने बच्चों को पाल रही हैं। लागकौर कहती है कभी सोचा नहीं था कि जट्टों के यह दिन आ जाएंगे कि दाने-दाने पर मोहताज होंगे। ये महिलाएं बताती हैं कि कर्ज देने वाले आढ़ती किसानों से खाली परनोट पर पहले ही अंगूठा लगवा लेते हैं। फसल होने के साथ ही आढ़ती दरवाजे पर आ जाता है। खाने लायक फसल रख किसान को सारी फसल आढ़ती के हवाले करनी पड़ती है क्योंकि उसे अगले सीजन के लिए उधार पर बीज और कीटनाशक चाहिए। कर्ज पर कर्ज का चक्र चलता रहता है। जिसकी कीमत किसान को अपनी जमीन बेचकर या आत्महत्या करके चुकानी पड़ती है।

बरनाला की सुखदेव कौर बताती है कि मरने वाला तो मर गया लेकिन जो जिंदा पीछे रह गए हैं वे कहां जाएं। सुखदेव कौर के आंसू रुकते नहीं हैं। वह कहती है‘मेरे पति ने सहकारी बैंक दि पंजाब शेड्यूल कास्ट लैंड डवलपमेंट एंड फाइनेंस कॉरपोरेशन से एक लाख 70 हजार रुपये लोन लिया। जिसमें से 70,000 रुपया भर दिया था। रसीदें दिखाते हुए जार-जार रोते हुए वह कहती है ‘देखो रसीदें।’ लेकिन बैंक वालों का कहना था कि तुम्हारा कर्जा उतने का उतना ही है। मेरे पति ने उन्हें रसीदें दिखाईं, वे नहीं मानें। एक दिन बैंक वाले उन्हें घर से उठा कर ले गए और कहने लगे कि हम तुम्हें जेल में डाल देंगे। मेरे पति ने घर आते-आते सोचा कि अगर मुझे जेल में डाल दिया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा, गांव में बेईज्जती हो जाएगी। मेरे पति ने शराब में जहर मिला कर पी ली। मेरे दो बेटियां और तीन बेटे हैं। बेटों ने पढ़ाई अधूरी छोड़ दी तीनों कपड़े की दुकान पर काम करते हैं। यहां कई सौ विधवाएं आई हुई हैं। अपनी कहानी बताने के लिए एक-दूसरे के ऊपर गिर रही हैं। किसी को लगता है कि नाम भी अखबार में छप जाने से शायद उनकी रोजीरोटी का ठिकाना हो जाएगा। हमारा नाम लिख लो..हमारा नाम लिख लो...। जबकि ये जानती ही नहीं हैं कि जिन्हें चुनकर इन्होंने विधानसभा में भेजा है उन्हें इनकी कोई चिंता नहीं और विपक्ष को अपने झगड़ों से ही फुरसत नहीं है।

वीरपाल बठिंडा के गांव पिथो की रहने वाली है। इस जवान लडक़ी के ससुर ने बैंक से 4 लाख रुपये लोन लिया था। वह बताती है कि कर्जा तो ससुर ने लिया था उनसे उतारा नहीं गया तो मेरे पति के सिर आ गया लेकिन उनसे भी कर्ज नहीं उतारा गया तो उन्होंने आत्महत्या कर ली। संगरूर के गांव उगराहां की सीतो बताती है कि उसके 18 वर्षीय बेटे ने स्प्रे पीकर आत्महत्य कर ली। उसपर 5 लाख रुपये कर्जा था। बरनाला के सीनियाकलां गांव की हरकिशन कौर के पति ने बैंक से एक लाख रुपये कर्जा लिया था। पति की मौत हो गई बेटा कर्ज नहीं चुका पाया।

 जागीरदारों की सरकार है

भारतीय किसान यूनियन के सचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां कहते हैं कि यह  शुरुआत है। इसका अंत हमें भी नहीं पता। सरकार हमें घरों से निकाल-निकाल कर जेलों में डाल रही है। पंजाब सरकार और हमारे बीच संघर्ष लगातार बढ़ रहा है। राज्य में किसानों पर 4500-4600 करोड़ आढ़तियों का और 12000 करोड़ सहकारी बैंकों का कर्ज है। वर्ष 2006 में एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में 6700 किसानों ने आत्महत्याएं की। लेकिन किसान जत्थेबंदियों के अनुसार यह संख्या 40,000 से ज्यादा है। कोकरीकलां का कहना है कि सरकार ने हमसे वादा किया था कि आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को 2-2 लाख रुपया, सरकारी नौकरी और जमीन दी जाएगी। सत्ता में आने के बाद सरकार मुकर गई। जब हमने रैलियां और धरने किए तो सरकार ने इन परिवारों को एक-एक लाख रुपए देने की घोषणा की है लेकिन हमें वो सब चाहिए जिसका वादा सरकार ने किया था। इसी वादे पर सरकार ने हमसे वोट मांगे थे। यही नहीं सरकार ने किसानों के साथ एक और छल किया है कि पहले किसान की जमीन कुर्क करने के लिए तहसीलदार गांव में आता था, बोली लगती थी लेकिन अब तहसीलदार ऑफिस में बैठे-बैठे ही जमीन कुर्क कर रहा है। यह किसानों की नहीं जागीरदारों की सरकार है। मनीलैंडर एक्ट अभी तक लागू नहीं हुआ। आढ़ती किसानों से 22 फीसदी से लेकर 60 फीसदी तक सूद ले वसूल रहे हैं।

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