क्या पंचायतों की सक्रिय भूमिका से घटते लिंग अनुपात को रोका जा सकता है, क्या कन्या भ्रूण हत्या में पंचायत स्तर की सक्रियता से असर पड़ सकता है ? ये तमाम सवाल दिमाग में चल रहे थे, जब राजस्थान के जयपुर और जोधपुर के छह जिलों के पंचायत तथा आगंनबाड़ी स्तर के कार्यकर्ता अपनी-अपनी बातें रख रहे थे। उनकी रिपोर्ट बताती है कि पिछले तीन सालों से इन छह जिलों में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) के प्रयासों से कन्या भ्रूण हत्या में कमी आई है।
दौसा जिले के भावता भावती ग्राम पंचायत की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरला गुप्ता, जो पहले सरपंच भी रह चुकी हैं, आउटलुक को बताया कि पूरे राज्य में लड़कियों के खिलाफ बहुत तगड़ा माहौल है। और यह जल्दी टूटने वाला भी नहीं है। संस्था से जुड़ने के बाद ही उन्होंने इस समस्या की गंभीरता को जाना। इसके बाद से लगातार वह लोगों को समझा रही हैं कि इस तरह के भेदभाव से समाज का संतुलन ही बिगड़ जाएगा।
जयपुर जिले की भाभभोरी पंचायत की अनीता शर्मा ने बताया कि पहले की तुलना में अब स्थिति थोड़ी ठीक हुई है। इस साल 30 लड़के और 35 लड़कियों का जन्म दर्ज किया गया है। यह अपने आप में बड़े बदलाव का सूचक है।
दौसा जिले के लालपुरा के सरपंच ओम प्रकाश भैरवा का कहना है कि अब स्वास्थ्य कर्मी धीरे-धीरे इन तमाम सवालों पर सीधे-सीधे बात करने लगे हैं। अब गांवों में पहली बार बेटियों के जन्म पर जश्न बनाया जा रहा है। इन कार्यकर्ताओं ने बताया अब जिन घरों मेंबेटियां पैदा होती हैं, वहां जाकर सब लोग खुशियां मनाते हैं, बेटियों के नाम पर बैंक का खाता खोलते हैं।
जयपुर की संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज की शोभिता राजागोपाल ने बताया कि बेटियों की हत्याएं रोकने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। लेकिन पंचायतों के जरिए इस पहल ने वह मंच मुहैया कराया है जो अभी तक महिला विमर्श से अछूता था।
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