सर्वेक्षण और मौत के आंकड़े पर उठ रहे सवालों का जवाब देते हुए स्वराज अभियान ने कहा है कि यह सर्वेक्षण एक वैज्ञानिक पद्धति से किया गया था। इसमें बुंदेलखंड के सभी सातों जिले की सभी 27 तहसीलों से 108 गांव चुने गए थे। गांवों का चयन 'रैंडम पद्धति' से हुआ था और इनके चयन में सर्वेक्षणकर्ताओं की पसंद-नापसंद की कोई भूमिका नहीं थी। हर गांव में जिन 12 परिवारों का इंटरव्यू किया उसमें भी सर्वेक्षणकर्ताओं की अपनी पसंद-नापसंद की कोई भूमिका नहीं थी। सर्वेक्षण के नतीजे इन 1206 परिवारों के द्वारा दिए गए उत्तरों पर अधारित हैं जिसकी स्वतंत्र जांच नहीं की गई है।
स्वराज अभियान की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, सर्वेक्षण की इस पद्धति में हम लोगों द्वारा दिए गए उत्तरों की स्वतंत्र जांच नहीं करते हैं। इस तरह सर्वेक्षण की रिपोर्ट बुंदेलखंड के एक प्रतिनिधि समूह द्वारा दिए गए उत्तरों का संकलन है, सर्वेक्षणकर्ताओं के अपने मत की अभिव्यक्ति नहीं है। गौरतलब है कि यह सर्वेक्षण योगेंद्र यादव, संजय सिंह (परमार्थ औरई), अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और रीतिका खेड़ा (दिल्ली) की देखरेख में कराया था।
गौरतलब है कि सूखे की भंयकर मार झेल रहे बुंदेलखंड में कराए गए इस सर्वे में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई थीं। 108 गांव में से 38% गांव से खबर है कि वहां होली से लेकर अब तक भूखमरी या कुपोषण की वजह से कोई मौत हुई है। स्वराज अभियान का कहना है कि हमने इसकी स्वतंत्र जांच नहीं की है। इसी तरह जिन परिवारों से बात हुई उनमें से 14% ने यह कहा कि पिछले 8 मास में (होली के बाद) कभी ना कभी ऐसी स्थिति रही है कि उन्हें फिकारा (घास की रोटी) खाने पर मजबूर होना पड़ा।
सर्वेक्षण पर सफाई देते हुए स्वराज अभियान ने कहा है कि जनमत सर्वेक्षण की विधा में सर्वेक्षणकर्ताओं से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह उत्तरदाताओं की बात की स्वतंत्र पुष्टि करें यह काम मीडिया प्रशासन का है। हमारी उम्मीद है कि इन आंकड़ों के आधार पर आगे छानबीन होगी जांच होगी और हमें मिले इन उत्तरों की स्वतंत्र जांच की जा सकेगी। सर्वेक्षण का उद्देश्य ही यही था कि राज्य में सूखे से पैदा हुई गंभीर स्थिति के बारे में चर्चा शुरू हो।
स्वराज अभियान ने जिन 108 गांवों में सर्वेक्षण हुआ था उसकी सूची भी जारी की है। लेकिन परिवारों का सर्वेक्षण हुआ था उनके नाम गोपनीय रखे गए हैं। यह भी स्पष्ट किया है कि सर्वेक्षण किसी सरकारी या गैर सरकारी ग्रांट पर अधारित नहीं था। स्वराज अभियान और इस सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले सभी सर्वेक्षणकर्ताओं ने अपने चंदे और अपनी मेहनत से यह सर्वेक्षण पूरा किया था।