वर्ष भर भले ही हम वेलेंटाइंस-डे और लव-जेहाद के नाम पर छाती-माथा कूटते रहे और डंडा लेकर प्रेमियों को होटलों, बारों, बाग-बगीचों से भगाते रहे, किंतु कमबख्त वसंत ऋतु आते ही हमारे हाथ से डंडा छूटने लगता है। मन ढोल की थाप देने को मचलने लगता है। पांव अपने आप थिरकने लगते हैं। यह करामात होती है कामदेव की कृपा से - इंद्रदेव स्वर्ग का अपना राजपाट इस मौसम में कामदेव जी के सुपुर्द कर देते हैं। स्वर्ग से लेकर पृथ्वी तक कामदेव उन्मुक्त विचरण करने लगते हैं। उनके सामने आम आदमी की क्या बिसात, बड़े-बड़े संत-महात्मा भी उनके चक्कर में फंस जाते हैं जैसे हमारे संत आसाराम जी अभी जेल के सींखचों में बंद चल रहे हैं। द्वापर में जब कामदेव अपने बाण लेकर निकले तो भगवान कृष्ण की रानियों को उनका शिकार बनना पड़ा और शापवश कलयुग में देवदासियां बनकर रहना पड़ा। कहते हैं ब्रज की गोपियों को बाबा देवर लगने लगते हैं और बाबा लोग भी चंग पर गाने लगते हैं, 'रंग बरसे और गोरी का यार...।’
आटे-दाल के चक्कर में, आज जब दाल 200 रुपये तक पहुंच गई है, कौन उल्लू का पट्ठा प्रेम-व्रेम के चक्कर में पड़ता है। जब पेट भरा न हो तो अगला गश खाकर अस्पताल पहुंच सकता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि मस्तिष्क से जब एक रसायन निकलता है तो प्रेम होने लगता है, जो क्षणिक होता है। शायद इसी कारण दुष्यंत अपनी शकुंतला को भूल गए थे। इन दिनों आधुनिक शकुंतलाएं बनी अनुष्का जी और कैटरीना जी अपने फ्लैट में विरह का विलाप कर रही हैं।
इन दिनों यदि प्रेम देखना हो तो रीयल लाइफ में नहीं, रील-लाइफ में देखा जा सकता है वह भी हिंदी फिल्मों में उपलब्ध है। इधर पर्दे पर खुल्लम-खुल्ला प्रेम दिखाने के लिए हमारे संस्कारी सेंसर-बोर्ड भी कुछ अधिक ही कड़ा हो गया है। वह शरीर के प्रेम को असंस्कारी मानता है। उसे चिंता है कि कहीं नई पीढ़ी भटक न जाए। भले ही वह देर रात को पोर्न-साइट खोलकर देखता रहे, लेकिन दिन में आदर्शवादी बना रहे।
खजुराहो के मंदिर में और कामशास्त्र के ग्रंथ में प्रेम और काम का खूब वर्णन किया गया हो लेकिन यह रीयल लाइफ में क्या, रील-लाइफ में भी नहीं चलेगा। इससे देशद्रोह की भावना फैलने का भय रहता है जो इन दिनों विश्वविद्यालयों में भी दिख रहा है। अधिक से अधिक दो झाड़ों को हिलाकर या फूलों का चुंबन दिखाकर प्रतीक में प्रेम दिखाने की इजाजत दी जा सकती है। यदि प्रेम दिखाना भी हो तो वह योद्धाओं का दिखाया जाए जिनके एक हाथ में तलवार हो और दूसरे हाथ में प्रेयसी। इससे चरित्र भी खराब नहीं होगा।
इसलिए प्रेम-कहानियों में गड़बड़ी चल रही है। बाजीराव-मस्तानी में योद्धा बाजीराव को अपनी प्रेमिका और पत्नी के संग-संग सैकड़ों नृत्यांगनाओं के साथ नाचना पड़ता है। शिरस्त्राण धारण कर, जिरह-बख्तर पहनकर नृत्य करना कला है जो हमारे फिल्मकार जानते हैं। सम्राट अशोक पर बनी फिल्म में शाहरुख को गाना-नाचना भी पड़ता है। जोधा-अकबर में ग्रेट अकबर को जोधा से तलवार भी लड़ाना और इश्क भी फरमाना पड़ता है। मजेदार बात यह है कि क्षत्राणी जोधा बाई को ऐश्वर्या के ड्रेस डिजाइनर की पारदर्शी ड्रेस भी पहननी पड़ती है। यही गड़बड़ प्रेम-कहानियां हैं जो हमें देशभक्ति के नाम देखनी पड़ती हैं। युद्ध प्रेम कथाएं तो अब पुस्तकों में ही पढ़ी जा सकती हैं। डर भी लगता है कहीं रानी लक्ष्मीबाई को भी किसी अंग्रेज से लव-हेट एवं वार एक साथ न करना पड़ जाए।
देशप्रेमियों और देशद्रोहियों के नारे भी खूब लग रहे हैं, हाथ में झंडा लेकर उसके डंडे से कथित देशद्रोही को कोर्ट रूम में कूटा जाता है। पुलिस तमाशबीन बनी रहती है। इसे लेकर भी लव-सीन डालकर कोई फिल्म बनाई जा सकती है। कब तक हमें हड़बड़ प्रेम की ये गड़बड़ प्रेम-कहानियां देखनी पड़ेंगी? प्रेम कहानी में 'ट्विस्ट’ लाना जरूरी है।