कृषि सुधार के नाम पर लाए गए तीन नए कानूनों के विरोध में देश भर में लाखों किसान सड़कों पर हैं। उन्हें डर है कि ये कानून उन्हें कॉरपोरेट का गुलाम बना देंगे। यह भी आशंका है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और कृषि उपज मंडियों की व्यवस्था को खत्म करने की तैयारी कर रही है। विपक्ष भी हड़बड़ी में पारित कराए इन कानूनों पर सवाल उठा रहा है। इन तमाम मुद्दों पर आउटलुक के प्रशांत श्रीवास्तव ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से सरकार की सोच और आगे के एजेंडे पर राय जानने की कोशिश की। केंद्रीय मंत्री के जवाबों के प्रमुख अंशः
कृषि क्षेत्र के लिए लाए गए तीनों कानून क्यों जरूरी थे और इनसे किसानों की हालत में कैसे फर्क पड़ेगा? क्या इससे किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने में मदद मिलेगी?
कृषि क्षेत्र में सुधार और किसानों की आय दोगुना करने का संकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए सरकार के प्रथम कार्यकाल में 2014 में ही ले लिया था और तभी से यह सिलसिला लगातार जारी है। कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 किसानों को उनकी उपज के विक्रय की स्वतंत्रता प्रदान करता है। आजादी के 70 साल बाद भी किसान ही एकमात्र ऐसा उत्पादक है, जो अपने उत्पाद को सिर्फ स्थानीय मंडी में बेचने के लिए बाध्य था। इस कानून से उसे मंडी से आजादी मिल गई है, अब किसान अपनी फसल देश में किसी भी स्थान और किसी भी माध्यम से बेच सकता है। इससे किसानों को उसकी फसल के उचित मूल्य तो मिलेंगे ही, परिवहन लागत कम होने और मंडी टैक्स बचने से उसकी आय भी बढ़ेगी। मंडिया और एपीएमसी एक्ट पूर्व की तरह कार्य करते रहेंगे। अब मंडिया भी अपने अधोसरंचना विकास के लिए प्रोत्साहित होंगी।
इसी तरह कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण ) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020 का उद्देश्य किसानों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ना है। कृषि करार के माध्यम से बुआई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज के दाम निर्धारित हो जाने से किसानों को प्रत्येक परिस्थिति में लाभकारी मूल्य मिलेंगे। यहां यह भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि दाम बढ़ने पर किसान को इस कानून के तहत न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ भी मिलेगा। इसी तरह आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 के तहत अनाज, दलहन तिलहन, प्याज और आलू आदि को अत्यावश्यक वस्तु की सूची से हटाने का प्रावधान किया गया है। इससे भंडारण और प्रसंस्करण की क्षमता में वृद्धि होगी और किसान बाजार में उचित मूल्य आने पर अपनी फसल को बाजार में बेंच सकेगा। तीनों ही कानून किसानों की आय को बढ़ाने की दिशा में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में लिए गए क्रांतिकारी कदम हैं। इनके सुखद परिणाम भविष्य में दिखना तय है।
आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी से अनाज को हटाने से जमाखोरी की चिंता किसान और विशेषज्ञ जता रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो सरकार कैसे हस्तक्षेप करेगी?
आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, 2020 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि अपवाद स्थिति, जिसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा मूल्य वृद्धि शामिल है, को छोड़कर इन उत्पादों को स्टॉक लिमिट से मुक्त किया गया है। जाहिर है कि एक सीमा से ज्यादा कीमत बढ़ने और अन्य परिस्थितियों में सरकार के पास पूर्व की तरह नियंत्रण की सभी शक्तियां मौजूद रहेंगी। ऐसे में कालाबाजारी और जमाखोरी रोकने के न केवल प्रावधान हैं, बल्कि सरकारी हस्तक्षेप भी इस कानून में रखा गया है।
विपक्ष का आरोप है कि नए कानून से किसानों को नहीं, बल्कि बड़ी कंपनियों और निजी क्षेत्र को फायदा मिलेगा?
कृषि क्षेत्र में सुधार के उद्देश्य से बनाए गए नए कानूनों में सिर्फ और सिर्फ किसानों के हित ही निहित हैं। यह शंका निर्मूल है कि इससे बड़ी कंपनियों और निजी क्षेत्र को फायदा होगा। हमारा उद्देश्य यह है कि निजी निवेश भी गांव और किसान तक पहुंचे, इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा खड़ी होगी और उसका प्रत्यक्ष लाभ किसान को मिलेगा। दोनों विधेयकों में केवल किसानों के हितों के सरंक्षण पर ही ध्यान दिया गया है।
कृषि उपज वाले कानून में एग्री प्रोड्यूस के बदले एग्री प्रोडक्ट की बात है। इस पर आशंका जताई जा रही है कि आगे चलकर कृषि को उद्योग का दर्जा दिया जाएगा और उस पर कर थोप दिया जाएगा। यह आशंका कितनी सही है?
कुछ राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए इस तरह की बातें कर रहे हैं। किसान पहले की तरह स्वतंत्र हैं, सिर्फ उन्हें उपज के उचित दाम दिलाने के लिए अतिरिक्त व्यवस्थाएं की गई हैं। नए प्रावधानों से सप्लाई चेन मजबूत होगी। कटाई के बाद अनाज, फल, सब्जियों का जो नुकसान होता था, वह कम होगा। सप्लाई चेन छोटी एवं व्यवस्थित होने से किसान और उपभोक्ताओं का फायदा होगा ।
इसी तरह खेती में करार वाले विधेयक में विवाद निपटारे की व्यवस्था पेचीदी बताई जा रही है और उसे दीवानी अदालत से दूर रखने पर विपक्ष सवाल उठा रहा है, सरकार कैसे भरोसा दिलाएगी?
कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून के तहत विवाद की स्थिति में सिर्फ 30 दिन में उसके निपटारे का प्रावधान स्थानीय स्तर पर ही रखा गया है। इसके पीछे उद्देश्य यही है कि कोर्ट-कचहरी के चक्कर किसान को न काटने पड़े और एक तय अवधि में ही उसके विवाद का हल हो जाए। यहां मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि यह व्यवस्था पेचीदी नहीं, बल्कि विवाद को सरलता से हल करने वाली है। किसानों को इस पर भरोसा है। जो लोग प्रश्न उठा रहे हैं, उनके पीछे उनके राजनीतिक स्वार्थ हैं। यही प्रावधान कांग्रेस अपने घोषणा-पत्र में लेकर आई थी, लेकिन किसी दबाव और इच्छाशक्ति की कमी के कारण लागू नहीं कर पाई। 3 दिन के भीतर किसान को भुगतान का प्रावधान पहले किसी कानून में नहीं था।
एमएसपी को लेकर आशंका जताई जा रही है। विपक्ष और अलग-अलग राज्यों में चल रहे किसान आंदोलनों की मांग है कि एमएसपी से नीचे खरीद पर प्रतिबंध के लिए कानून लाया जाए। क्या इस पर कोई विचार सरकार कर रही है?
मैं पुनः स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि एमएसपी की व्यवस्था जारी थी, जारी है और भविष्य में भी जारी रहेगी। इन कानूनों का एमएसपी से कोई संबंध नहीं है। किसान को अब स्वतंत्रता है कि वह मंडी में एमएसपी पर अपना अनाज बेचे या बाजार में। फल-सब्जी वाला किसान केवल मंडी जाकर ही अपनी उपज बेचने को क्यों विवश हो? इन कानूनों से फार्म टु फोर्क व्यवस्था भी प्रोत्साहित होगी।
एमएसपी अभी भी स्वामीनाथन फॉर्मूले के मुताबिक सी2 से 50 फीसदी अधिक नहीं दी जा सकी है। सरकार अभी भी ए2 और एफएल से ऊपर ही उसे दे रही है। क्या इसमें बदलाव की कोई सोच है?
हाल ही में हमारी सरकार ने आगामी रबी फसलों की बुआई के पहले ही 6 उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किए हैं। गेंहू की एमएसपी 1975 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित की गई है। यह लागत मूल्य से 106 प्रतिशत ज्यादा है। इसी प्रकार जौ, चना, मूसर, सरसों एवं कुसुम्भ की एमएसपी पर भी किसानों को लागत मूल्य से 50 से 93 प्रतिशत तक लाभ मिल रहा है। जहां तक स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों का विषय है, यूपीए की सरकार ने उन्हें लागू ही नहीं किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ही स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू कर रही है। अब लागत मूल्य पर कम से कम 50% मुनाफा जोड़ कर ही एमएसपी तय की जा रही है ।
आपका सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल एनडीए से अलग हो गया। बीजू जनता दल, एआइडीएमके जैसे दलों ने भी अलग रवैया अपनाया। तो, इसके राजनैतिक नतीजे क्या होने वाले हैं?
किसानों के हित में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो निर्णय लिए हैं वे राजनैतिक नतीजों को ध्यान में रखकर कतई नहीं लिए है। सभी दलों से मेरा आग्रह है कि किसानों के नाम पर राजनैतिक स्वार्थ न साधें। खेती के क्षेत्र में जो सुधार वर्षों से लंबित थे, मोदी जी के नेतृत्व में उन्हें लागू किया गया है । देश और किसानों के हित में सभी को इस का समर्थन करना चाहिए।