जो जॉन्सन से बातचीत के कुछ अंश
क्या भारत-ब्रिटेन शैक्षिक परिदृश्य बदल रहा है ?
ब्रिटिश विश्वविद्यालयों के बेहतरीन लोग यहां भारत में मेरे साथ यह प्रदर्शित करने के लिए हैं कि अगर आप उच्च शिक्षा पाना चाहते हैं तो ब्रिटेन वह जगह है। उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन से ज्यादा अच्छी जगह दुनिया में कहीं और नहीं है। अगर आप वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए कौशल हासिल करना चाहते हैं तो ब्रिटिश विश्वविद्यालय तैयार हैं और मदद करना चाहते हैं।
लेकिन वीजा मुद्दे और भारतीय छात्रों को मना करने के बारे में बहुत चर्चा है।
उन भारतीय छात्रों की संख्या की कोई सीमा नहीं है जिनका हम गर्मजोशी से स्वागत करेंगे। हर साल हम चाहते हैं कि अधिकाधिक भारतीय छात्र आएं और ब्रिटेन में अध्ययन करें। हम चाहते हैं कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह यहां रहें और स्नातकों को मिलने वाले रोजगार खोजें, हमारी व्यवस्था में इसकी अनुमति है। भारतीय छात्र पढ़ाई के बाद इंग्लैंड में नौकरी भी कर सकते हैं। मैं यह बहुत साफ करना चाहता हूं कि भारतीय छात्रों का ब्रिटेन में हार्दिक स्वागत है।
हमारे देशों की शिक्षा प्रणालियों में कितना तालमेल है ?
यह सुनिश्चित करने के लिए कि उच्च शिक्षा की हमारी प्रणालियां, हमारे विश्वविद्यालय और हमारे वैज्ञानिक परस्पर लाभ के लिए समन्वय कर सकें, हम भारत सरकार के साथ मिल कर काम कर रहे हैं ।
भारत और ब्रिटेन के बीच विज्ञान में सहयोग की क्या स्थिति है ?
हम ब्रिटेन और भारत के बीच विज्ञान के लिए अपार संभावनाएं देखते हैं और मुझे इसमें सहयोग के असीमित अवसर देख कर हैरत है। बीते छह साल में हमने हमारे वैज्ञानिक अनुसंधान में सहयोग के महत्व को देखा जो वर्ष 2008 में केवल दस लाख पाउंड था पर आज 20 करोड़ पाउंड हो गया है। हम विकास की इस दर को जारी देखना चाहते हैं। इसलिए, ब्रिटेन के विश्वविद्यालय कई तरह के सहयोग को बढ़ाने के लिए भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ काम करना चाहते हैं।
भारत-ब्रिटेन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग की मुख्य बातें क्या हैं ?
इस सप्ताह न्यूटन कार्यक्रम को नया मोड़ मिला जो भारत के साथ वैज्ञानिक सहयोग के लिए 5 करोड़ पाउंड का हमारा सहयोग मंच है। कुल मिला कर न्यूटन कार्यक्रम 2021 तक चलेगा। इसका भारतीय तत्व यह है कि 5 करोड़ पाउंड की लागत वाला न्यूटन भाभा कार्यक्रम बहुत सफल रहा है। हमारे विज्ञान सहयोग का मुख्य लक्ष्य हमारे वैज्ञानिकों को एक साथ लाना होगा। ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड के समीप रदरफोर्ड एनलटन लेबोरेटरी में फिजिकल एंड लाइफ साइंसेज में अनुसंधान के लिए दुनिया का प्रमुख केंद्र आईएसआईएस मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के साथ सहयोग कर रहा है और यह उत्साहजनक भागीदारी तथा लंबे समय तक चलने वाला सहयोग है। आईएसआईएस के न्यूटॉन एवं न्यूऑन संबंधी पहलों ने आणविक स्केल पर तत्वों के गुणों पर रोशनी डाली है। नया न्यूटन कार्यक्रम टेम्स नदी की सफाई के अनुभवों के आधार पर गंगा की सफाई करने जैसे मुद्दों का भी समाधान करेगा। ब्रिटेन वायु प्रदूषण के क्षेत्र में भी विशेषज्ञ है और दोनों देश इस क्षेत्र में भी सहयोग कर सकते हैं। भारत के साथ बहुपक्षीय सहयोग अन्य देशों की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत है।
अंतर-विश्वविद्यालयी सहयोग के बारे में कुछ बताएं।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हाल ही में विश्वविद्यालयों की वैश्विक रैंकिंग के शीर्ष में विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ाए जाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया था। इस संबंध में अनुसंधान में सहयोग का प्रभाव, रैंकिंग आंकने संबंधी प्रक्रिया का अहम हिस्सा हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिकों के साथ अधिक सहयोग से भारतीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग को ऊपर उठाने तथा मुखर्जी का उद्देश्य पूरा करने में मदद मिलेगी।
आपने भी हाल ही में कहा था कि ब्रिटेन में अध्यापन निराशाजनक है तो फिर क्यों भारतीय छात्रों को अध्ययन के लिए ब्रिटेन जाना चाहिए ?
नहीं, नहीं। ब्रिटिश संस्थान विश्व स्तरीय हैं। टॉप 10 में हमारे चार विश्वविद्यालय और टॉप 100 में 38 विश्वविद्यालय हैं। हमारी व्यवस्था विश्व स्तरीय है यह इस बात से जाहिर होता है कि हमारे यहां हजारों ऐसे छात्र हैं जो पढ़ने के लिए दुनिया के अलग अलग हिस्सों से ब्रिटेन आए और दुनिया में किसी भी शिक्षा प्रणाली की तुलना में हमारे यहां की दरें सर्वाधिक संतोषजनक हैं।
ब्रिटेन जाना भारतीय छात्रों के लिए बहुत महंगा है जबकि अन्य स्थान सस्ते हैं।
दुनिया में ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली से अच्छी कोई दूसरी प्रणाली नहीं है जहां खर्च किए गए धन का वास्तविक प्रतिफल मिल सके। यह एक बेहतर निवेश है और लोगों को इससे संतोष भी होता है।
कई लोगों को लगता है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने भारत की नवाचार की क्षमता खत्म कर दी।
मुझे लगता है कि भारत एक अतुल्य नवोन्मेषी समाज और अर्थव्यवस्था है। वह प्रौद्योगिकी आधारित समाधान प्रभावकारी है जो भारत ने हर तरह की समस्याओं के हल के लिए निकाला है। जब आप इंटरनेट के दौर में योगदान देने वाले देशों के बारे में सोचते हैं तो कोई भी सबसे पहले भारत की ओर संकेत करेगा।