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व्यापार की राह पर खेती

विकास के तमाम दावों और चकाचौंध के बीच खेती और किसानी चर्चा के पाएदान पर ही रहती है। केंद्र सरकार के एक साल पूरे होने पर जहां तमाम दूसरे क्षेत्रों की सघन पड़ताल हो रही है, वहीं कृषि पर तवज्जो कम रही। वह भी तब जब पिछले तीन-चार महीने से मौसम की मार की वजह से फसल बर्बाद होने और किसानों की आत्महत्या ने देश का ध्यान बरबस ही गहराते कृषि संकट की ओर खींचा था। नरेंद्र मोदी सरकार को एक साल में किसानों की आत्महत्या, मुआवजा, भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दे पर विपक्षी दलों ने घेरने की लगातार कोशिश की और इसी पर केंद्र सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा। इन तमाम ज्वलंत सवालों और संकट से बाहर निकलने की सरकार की रणनीति पर बिहार के मोतिहारी से पांच बार से सांसद और केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह से बातचीत के प्रमुख अंश
व्यापार की राह पर खेती

 

नरेंद्र मोदी की सरकार को एक साल हो चुका है। किसान और खेती संकट में हैं। इसके लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?

सरकार बनते ही पहला संकट सूखे को लेकर हुआ। औसत से कम बारिश हुई,  पैदावार पर असर पड़ा, जिस वजह से संकट बढ़ गया। लेकिन सरकार ने किसानों के लिए कई लाभकारी कदम उठाए। मौसम की मार कम करने के लिए हमने आपात योजना बनाई। प्रधानमंत्री ने डीजल पर सब्सिडी, खाद-चारे पर सहायता,  राज्य सरकारों ने भी मदद की,  हमारे वैज्ञानिकों ने मदद की और किसानों ने मदद की और इसकी परिणाम सामने आया। मात्र दो फीसदी कम बुआई हुई और मात्र तीन फीसदी कम उत्पादन हुआ। हम 580 जिलों की आपात योजना बनाकर भेज चुके हैं, जबकि पिछली बार 500 जिलों का बनाया था। अगर सूखा पड़ता है तो  हम तैयार हैं।

 

लेकिन अभी बेमौसम मार से किसान तबाह है, आत्महत्या कर रहे हैं। इससे कैसे निपटेंगे?

अभी जो आपदा आई थी, उसका जो आकलन आया है उससे लगता है कि उत्पादन में 4-5 फीसदी कमी आएगी। सबसे पहले जो किसानों को नुकसान हुआ है, उससे निपटने के लिए हमने तीन-चार उपाय किए हैं। राज्य आपदा कोष डेढ़ गुना कर दिया गया। दूसरा जो किसानों का नुकसान होता था, वह राष्ट्रीय आपदा में नहीं आता था, हमने राज्यों से कहा है कि राज्य आपदा कोष है उसमें 10 फीसदी स्थानीय आपदा को राष्ट्रीय आपदा मानकर खर्च करें। राष्ट्रीय आपदा में मरने वाले को एक लाख की जगह चार लाख रुपये का मुआवजा कर दिया है। खराब फसल के मापदंड को बदलकर किसान को मदद पहुंचाने की कोशिश की गई है। गेहूं खराब भी हो गया तो राज्यों से कहा है कि हम उसे पूरा समर्थन मूल्य देकर खरीदेंगे।

 

इस पर राज्यों की प्रतिक्रिया कैसी है?

यह तो राज्यों पर है। हमने मानदंड बदले हैं। कई राज्यों ने, जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में हुआ है।

 

उत्तर प्रदेश और बिहार?

वहां कोई काम नहीं होता। हमारा काम है नीति बनाना, लागू करना राज्य का काम है।

 

किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए कोई ठोस पहल?

आत्महत्या के कई कारण होते हैं। कारण जो भी हो आत्महत्या दुखद है। एक समय था जब सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का 55 फीसद योगदान था लेकिन यह घटकर 14-15 फीसद हो गया है। इतनी भारी गिरावट का असर तो पड़ेगा न। खेती की चिंता कम की गई। किसान को क्या बोना है, कौन सी खाद देना है उसे पता नहीं। पानी नहीं है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या की थी, जबकि वहां कर्ज माफी के लिए भारी पैसा गया था। किसान की लागत कम हो, मुनाफा बढ़े। इस बारे में हम काम कर रहे हैं। देश के चार खाद कारखाने बंद हैं, हम उसे शुरू करने जा रहे हैं। हमने तमाम योजनाएं गरीब और किसानों को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है।

 

कृषि में निवेश नहीं आ रहा, क्या यह भी संकट का एक कारण हैं?

यह सही नहीं है। खेती अब व्यापार का रूप ले रही है। ग्रीन हाउस बनाकर बड़े पैमाने पर उद्योगपति खेती में जा रहे हैं। शहर का पैसा वाला आदमी पहले ठेकेदारी करके, इंडस्ट्री लगाता था, अब वह 10 एकड़ जमीन लेकर ग्रीनहाउस बना कर खेती करता है।  

 

लेकिन वह तो किसान नहीं है?

निवेश वह करेगा, जिसके पास पैसा होगा। लघु और सीमांत किसान के पास कहां इतना पैसा है। लेकिन इस तरह से किसान को भी फायदा होता है। मध्य वर्ग के लोग सप्ताह में दो-दिन खेत पर रह कर काम कर रहे हैं। हमारी नई योजनाओं से देश भर के छोटे किसानों को फायदा होगा। प्रधानमंत्री सड़क योजना, बीमा योजना, मंडी बनने से फायदा होगा।

 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, रोज दो हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं। क्या यह अच्छा है?

यह तो अच्छा ही है न। एक किसान के चार बेटे हैं तो वह चाहता है कि एक बेटा खेती करे और बाकी तीन दूसरे काम।

 

देश में असंतुलित रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण हजारों एकड़ जमीन बेकार होती जा रही है। इसके लिए सरकार क्या कर रही है?

मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सरकार पूरे देश में मृदा जांच प्रयोगशालएं उर्वरक जांच प्रयोगशालाएं और जैविक खेती परियोजनाएं लागू करने के लिए राज्य सरकारों को सहायता देती है। अब राज्य सरकारों को इसको प्रभावी तरीके से लागू करना चाहिए। सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए 200 करोड़ रुपये का आवंटन किया है और जैविक खेती संवर्धन के लिए अलग से निधि उपलब्ध कराई गई है।

 

आप बिहार के हैं। इस साल राज्य में चुनाव होने वाले है। भाजपा के लिए क्या चुनौतियां होगी?

कोई चुनौती नहीं है। मौजूदा सरकार के कामकाज से जनता खुश नहीं है। राज्य की जनता विकास चाहती है। भाजपा अपने सहयोगी दलों के साथ इस बार सरकार बनाएगी।   

 

बिहार की राजनीति में दिल्ली में राज्य और केंद्र सरकार के बीच की खींचतान का असर पड़ेगा क्या?

खूब पड़ेगा। दिल्ली के लोग तो अब अफसोस कर रहे हैं कि क्यों नहीं भाजपा की सरकार बनाई। इसे बिहार सहित देश भर में लोग देख रहे हैं।

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