एक साल के कार्यकाल में सरकार के पास शो केस में क्या है?
सरकार का इकबाल, सरकार की छवि, भारत की गरिमा, दुनिया में भारत का महत्व, देश में पूंजी निवेश, महंगाई में कमी। हमारी बात छोड़िए, दुनिया में जो रेटिंग कंपनियां भारत को पहले नीचे गिरा रही थीं अब उनका उत्साह भरा समर्थन भी सब देख रहे है।
सोनिया गांधी सरकार से साल भर की पारदर्शिता का हिसाब चाहती हैं?
पहले सोनिया गांधी पहले अपने दस साल की पारदर्शिता का हिसाब दें। मोदी सरकार में एक साल से भ्रष्टाचार बंद है। ईमानदारी और प्रामाणिकता से फैसले होते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मैं हूं। जहां मैं बैठा हूं वहीं से बात करते हैं। पहले स्पेक्ट्रम में घोटाला था। एक लाख दस हजार करोड़ रुपये की ऐतिहासिक नीलामी बोली लगाई गई। ईमानदार पारदर्शिता के साथ, जिसमें किसी को कोई शिकायत नहीं है। टू जी घोटाला और कोयला घोटाला तो कोई भूला नहीं होगा।
राहुल गांधी के हमले को सरकार कैसे देख रही है?
हमें खुशी है कि आखिरकार राहुल बोल रहे हैं। वैसे उन्हें 55 दिन के अज्ञातवास के बाद पहला विचार यह करना चाहिए कि उनकी पार्टी 44 पर कैसे आ गई। उन्होंने जहां-जहां प्रचार किया वहां कांग्रेस हारी। देश की राजनीति गंभीर समर्पण का विषय है। ऐसा नहीं हो सकता कि जब सदन चल रहा हो तब आप छुट्टी पर चले जाएं। उन्होंने टू जी या कोयला घोटाले पर क्यों कुछ नहीं कहा, पहले उनसे यह पूछा जाए।
बहुत सी बातें हैं जिन पर सरकार को कदम पीछे खींचने पड़ रहे हैं?
व्यापक चर्चा का मतलब कदम पीछे खींचना नहीं है। प्रधानमंत्री ने स्वयं कहा है कि यदि कोई सार्थक सुझाव आएगा तो मैं सबकी सुनूंगा। यह कड़वी सच्चाई है, लेकिन जहां हमें लोकसभा में निर्णायक और प्रभावी बहुमत है वहीं कांग्रेस पार्टी हर चीज में गतिरोध पैदा करने की कोशिश कर रही है।
लेकिन जो बातें आप लोगों ने भूमि अधिग्रहण बिल में विपक्ष में रहते हुए करवाईं अब आप उन्हें ही हटाना चाहते हैं।
सिंचाई, प्रधानमंत्री सड़क योजना, ग्रामीण ढांचा सुधार, दलित-आदिवासी छात्रों के लिए छात्रावास, नहरों के लिए जमीन चाहिए कि नहीं चाहिए। जिस प्रकार का कानून बना था, उसमें तो वर्षों लग जाते जमीन लेने में। मध्यप्रदेश में कृषि विकास दर 19 प्रतिशत तक बढ़ी है। देश में यह सबसे ज्यादा है। शिवराज सिंह चौहान ने नहरों का जो जाल बिछाया है यह उसके कारण है। मोदी जी ने स्वयं कहा है किसी भी कॉरपोर्रेट के लिए जमीन नए कानून से नहीं ली जाएगी। पुराने कानून से ली जाएगी। नए कानून से केवल नहरों, कृषि, ग्रामीण सुविधा, राष्ट्रीय राजमार्ग, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ही जमीन ली जाएगी और चार गुना मुआवजा दिया जाएगा। पहले बंजर जमीन ली जाएगी, फिर अनुत्पादक, उसके बाद जरूरत होगी तो दूसरी जमीन पर बात की जाएगी। बंजर जमीन की सूची बनाई जा रही है।
प्रधानमंत्री की स्वप्न योजना डिजिटल इंडिया की क्या स्थिति है?
यह मूलत: डिजिटल खाई को पाटने के लिए है। इस देश में 123 करोड़ की आबादी में साढ़े सत्तानवे करोड़ मोबाइल फोन हैं। जल्द ही यह संख्या 100 करोड़ हो जाएगी। भारत में 30 करोड़ इंटरनेट हैं। मेरा लक्ष्य आने वाले दो वर्षों में इसे 50 करोड़ करना है। स्मार्ट फोन की खपत अमेरिका के बाद हिंदुस्तान में सबसे अधिक है। हम ऐसा ढांचा विकसित करना चाहते हैं जिसमें कुम्हार, बढ़ई, बिजली वाला, पंचर बनाने वाला, मिस्त्री ये सभी तकनीक का इस्तेमाल कर अपने लिए व्यापक संभावनाएं तलाश सकें।
मैं इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग को बहुत बढ़ावा दे रहा हूं। लगभग सौ अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद हम निर्यात करते हैं। बीस हजार करोड़ रुपये के प्रस्ताव आ चुके हैं, 6 हजार करोड़ के प्रस्तावों की मैंने अनुशंसा कर दी है। देश में लगभग नौ राज्यों में इलेक्ट्रॉनिक क्लस्टर की स्वीकृति मिल चुकी है।
कब तक आप इस लक्ष्य को पा लेने की उम्मीद है?
नोफन (नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क) बड़ी योजना है। भारत दुनिया के ब्रॉडबैंड पेनेट्रेशन में रुचि रखता है। नोफन की योजना पहले भी बनी थी पर इसकी प्रगति कमजोर थी। हमने इसकी प्रगति को 300 गुना बढ़ाया है। ढाई लाख पंचायतों को हम आने वाले तीन साल में जोड़ने वाले हैं। उसके ढांचे में कमियां थीं। प्रधानमंत्री ने इसके लिए एक उच्च समिति बनाई है। उसकी रिपोर्ट आ गई है। जब हम देश को ब्रॉडबैंड से जोड़ते हैं तो देश के विकास दर में सीधी वृद्धि होती है। इसलिए ई-एजुकेशन, ई-स्वास्थ्य, ई-कॉमर्स पर जोर है। भारत में ई-कॉमर्स का व्यापार 70 हजार करोड़ रुपये का हो गया है। मेरा पोस्टल विभाग भी बहुत अच्छा काम कर रहा है। मैं इसे और बेहतर बनाने में लगा हुआ हूं। पोस्टल विभाग भी सैकड़ों करोड़ रुपये की कमाई कर रहा है। आगे हमारा लक्ष्य डिजिटल साक्षरता है।
डिजिटल साक्षरता क्या है?
इसका नाम ही है दिशा। भारतीय भाषाओं में कार्यक्रम बनें। लोग इन्हें देखे, समझें और डिजिटली साक्षर हों। ये कार्यक्रम 22 भारतीय भाषाओं में बनाए जाएंगे ताकि सभी राज्यों के लोग इससे जुड़ सकें। बाइस भारतीय भाषाओं में डिजिटल डोमेन भी बन गया है। आपने कॉमन सर्विस सेंटर का नाम सुना है? जो हमारा आइटी विभाग चलाता है। जहां रेलवे की ई-टिकेटिंग वगैरह जैसे और भी कई काम होते है। हम ऐसे कॉमन सर्विस सेंटर छोटी-छोटी जगहों पर भी चाहते हैं। हमारा लक्ष्य है, महादलित गांव में महादलित महिला कंप्यूटर साक्षर हो कर कॉमन सर्विस सेंटर चलाए। यह हो रहा है, बिहार के गया में। कुछ काम मैं मौन रह कर करता हूं।
दूसरा एक काम कर रहा हूं। छोटे शहरों में बीपीओ खोलना। इससे संबंधित नीति पर निर्णय लिया है। कुल 48 हजार सीटों को मैंने स्वीकृति दी है। अभी देश के डिजिटल भूगोल को देखें तो यह बहुत संकुचित है। दिल्ली, नोएडा, गुडग़ांव, मुंबई, पुणे, चेन्नै, विजयवाडा, हैदराबाद, बेंगलूरु, मैंगलूर। बस यही सब कुछ है। मेरी इच्छा है देवरिया, गोरखपुर, भागलपुर, जैसलमेर, जबलपुर, सिवनी ऐसी जगहों पर बीपीओ खुलें। सारे प्रदेशों में ये 48 हजार सीटें प्रदेश की आबादी के अनुरूप बांटी हैं। एक कॉल सेंटर में 100 लोग हों और यदि 3 शिक्रट में काम हुआ तो 300 लोगों को काम मिलेगा। हम सब्सिडी भी देंगे। कुछ नामी कंपनियां भी मदद करेंगी। इतना सरकारी और गैर सरकारी डेटा उपलब्ध है, इंदिरा आवास का, मनरेगा का कि हर कॉल सेंटर को काम मिलेगा। यह नई डिजिटल क्रांति होगी छोटे शहरों में। इसमें एक नई बात भी जोड़ रहा हूं, एक लाख 35 हजार ग्रामीण पोस्ट ऑफिस हैं। उन्हें मोबाइल के माध्यम से कंप्यूटर से जोड़ रहा हूं। पोस्टल बैंक की योजना भी है। इसके माध्यम से पोस्टल विभाग को प्रभावी कर रहा हूं।
डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी इन सब के बीच भारत संचार निगम लिमिटेड की हालत इतनी खस्ता क्यों है?
सन 2004 में बीएसएनएल 10 हजार करोड़ रुपये के फायदे में था। पिछले साल 8000 करोड़ रुपये के घाटे में है। मई 2004 तक किसकी सरकार थी, यह बताने की जरूरत नहीं है। मंथन होना चाहिए कि ऐसा क्या हो गया कि इसका घाटा इतना बढ़ गया। जितना दस साल में सहयोग मिलना चाहिए था, जिस तरह से निर्बाध काम करने देना चाहिए था वह नहीं हुआ। हम लोगों के निर्देश पर नेपाल में भूकंप आने पर बीएसएनएल ने स्थानीय कॉल दरों पर फोन की सुविधा दी या नहीं। कश्मीर की बाढ़ और आंध्र में हुदहुद के वक्त भी महीना भर मुफ्त या सस्ती कॉल दरें दी या नहीं। मैं उन लोगों को यही समझाता हूं कि जब आपात स्थिति में अच्छा काम कर सकते हो तो सामान्य में क्यों नहीं।
पार्टी की अगली अग्नि परीक्षा बिहार चुनाव है? मुख्यमंत्री कौन होगा? जनता परिवार के विलय को पार्टी कैसे देख रही है? किसके साथ जाएंगे?
कौन साथ आएगा, कौन चेहरा होगा यह सब मिल कर ही तय किया जाएगा। जंगल राज की विरासत पर नीतीश कुमार कुछ नहीं कर सकते। बिहार के नतीजे हमारे पक्ष में होंगे। चंद थके-हारे हुए लोगों का विलय क्या चिंता का विषय होना चाहिए, जिनका अपना कोई चेहरा भी नहीं है।
नेट तटस्थता अभी बड़ा मुद्दा है?
यह हमारी सरकार की प्रतिबद्धता है कि देश में इंटरनेट निर्बाध रूप से चलता रहे। इसके लिए कोई परेशानी नहीं आएगी। इस पर किसी का ग्रहण नहीं लगेगा। ट्राइ की रिपोर्ट आने वाली है फिर इस पर फैसला होगा। सरकार उचित निर्णय ही लेगी।