आपके मंत्रालय ने गाय पर बड़ा सेमिनार किया था, इसकी वजह?
केवल हमारे मंत्रालय ने नहीं किया था। हमारे साथ पशु कल्याण विभाग जो कि कृषि मंत्रालय के अधीन आता है वह भी था। दरअसल देश में दुनिया के 14 फीसदी पशु भारत में होते हैं। उसमें गाय-भैंस प्रमख हैं। उन पर ठीक तरह से का हो इसके लिए यह सेमीनार था।
सेमीनार में क्या बात निकल कर आई?
पशुओं से जुड़ी उत्पादकता बहुत कम है। हमारी उत्पादकता दुनिया की तुलना में बढ़नी चाहिए। जब उत्पादकता बढ़ेगी तो ही कोई किसान अपने पशु को मृत्यु तक किसान पालने में सक्षम हो पाएगा। उत्पादकता कैसे बढ़े इस पर चर्चा हुई। कई क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ, पशु पालको ने हिस्सा लिया। अच्छे सुझाव आए और हम इस पर काम कर रहे हैं।
पशुओं के आहार-चारे की समस्या भी बहुत है? सूखे की स्थिति में हालात और खराब हो जाते हैं?
बिलकुल मैं मानता हूं पशु किसी भी पालक के लिए बड़ी जिम्मेदारी होता है। भोजन-चारे की कमी और उनके अनुपयोगी खासकर दुधारू पशुओं के अनुपयोगी होने से उन्हें कत्लखाने भेजा जाता है। कई बार उनका अवैध कत्ल भी होता है। कत्ल का मुद्दा देखना पशु कल्याण बोर्ड देखता है। जैसे अभी गाय के प्रति अत्याचार के लिए कोई कानून नहीं है। हम कोशिश कर रहे हैं कि गाय भी इसमें शामिल हो। फिर चारे के लिए हमारे विशेषज्ञों ने कई सुझाव दिए हैं। जैसे कोशिश की जा रही है कि जंगल के आसपास रहने वाले चारागाहों से चारा पालकों तक पहुंचे। यानी कोई भी जंगल में अपने पशु चरने के लिए न छोड़े।
फिर अनुपयोगी पशुओं का क्या होगा?
हमारे यहां लगभग सभी राज्यों में गौ हत्या पर पाबंदी है। इसलिए गायों की स्थति ज्यादा खराब होती है जब वह दूध देना बंद कर देती है। हम कोशिश कर रहे हैं कि पशु पालक उसके मूत्र और गोबर से कैसे अपना भरण पोषण करे, इस बारे में चेतना लाई जाए। कई गौशालाएं हैं जो अच्छा काम कर रही हैं। वैसी और गौशालाएं बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
पशु कल्याण बोर्ड के नियमों में बदलाव की जरूरत है?
एकदम तुरंत तो नहीं है। लेकिन कुछ अच्छे सुझाव आए तो इस पर जरूर गौर करेंगे।
पिछले दो साल में आपके मंत्रालय की सबसे बड़ी सफलता क्या है?
प्रदूषण नियंत्रण के लिए अच्छी योजनाएं और उन पर अमल। अब हमें पल-पल की खबर मिलती है। हमारी टीम तुरंत जाती है, बैठक करती है और जो फैक्ट्रीयां या संस्थान प्रदूषण फैला रहे हैं उन्हें समझाती है। इससे प्रदूषण में कमी आ रही है। यदि कोई नहीं समझता तो जुर्माना लगाया जाता है या बंद भी कर दिया जाता है। अभी कुछ ऐसे संस्थान बंद किए हैं।
लेकिन अभी भी कचरे के निस्तारण की कोई ठोस योजना नहीं है?
नहीं हमने हर तरह के कचरे के लिए अलग योजना बनाई है। स्थानीय स्तर तक पर हम इसके लिए पहुंच रहे हैं। प्लास्टिक, कांच, इमारत बनने के दौरान निकलने वाला मलबा, हर तरह के कचरे के लिए काम हो रहा है। देखिए चेतना धीरे आती है और उसके बाद परिणाम।
फिर भी लोग कचरा फेंकने के बारे में जागरूक नहीं हो रहे है?
यही वजह है कि हम नियमों के उल्लंघन पर सख्त हो रहे हैं। किस तरह का उल्लंघन किया गया है इसकी गंभीरता देखते हुए भारी जुर्माने का प्रावधान करने जा रहे हैं।