यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है और यह ऐसे समय में आई है जब आप अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मुख्य सतर्कता अधिकारी के पद से हटाए जाने के बाद लगभग खाली बैठे हुए हैं। कई लोगों का कहना है कि यह पुरस्कार नरेंद्र मोदी सरकार के लिए शर्मिंदगी की बात है जो कई मोर्चों पर आपके पीछे पड़ी हुई है....?
कई लोगों की तरह ही मैंने भी प्रधानमंत्री के नारे, ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा को गंभीरता से लिया और वास्तव में उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ उस मसीहा के तौर पर समझ रहा था जिसका हम इंतजार कर रहे थे। मैं बहुत बुरी तरह निराश हुआ। इस सरकार में ईमानदारी कतई बर्दाश्त नहीं है।
ऐसा क्या हुआ जिससे आप को ऐसा कहना पड़ रहा है ?
पिछले साल अगस्त में भ्रष्टाचार में लिप्त प्रभावशाली लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की शुरुआत करने के कारण जब मुझे एम्स के मुख्य सतर्कता अधिकारी के पद से हटाया गया था तो उस समय अच्छा खासा शोरगुल मचा था। बाद में एक आरटीआई के जरिये मुझे पता चला कि 23 आगस्त को प्रधानमंत्री ने मुझे हटाए जाने के संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से एक रिपोर्ट मांगी थी। उसकी एक कॉपी मैंने भी हासिल कर ली और यह जान कर अचंभित हुआ कि इसमें मेरी नियुक्ति के संबंध में सफेद झूठ बोले गए। इसके अनुसार मुझे इसलिए हटाया गया कि मेरी नियुक्ति को गवर्निंग बॉडी या एम्स की इंस्टीट्यूट बॉडी से पारित नहीं थी। यह जानने के बाद मैंने प्रधानमंत्री को पूरे कागजात और सबूतों के साथ एम्स में चल रहे गिरोहों में शामिल राजनीतिज्ञों और अधिकारियों की उनके इरादों और तथ्यों के साथ विस्तृत प्रतिवाद रिपोर्ट भेजी और मामले की ईमानदारी से जांच के लिए प्रार्थना की। अक्टूबर में पीएमओ ने उनसे किए गए मेरे पत्राचारों पर स्वास्थ्य मंत्रालय से जवाब मांगा, फिर फरवरी में उसके लिए एक स्मृति-पत्र भी भेजा गया। क्या हुआ है, यह जानने के लिए अगर प्रधानमंत्री ने निजी रुचि दिखाई होती तो मुझे पूरी उम्मीद थी कि इस मामले का अब तक उचित हल निकल जाता। या तो मैं गलत हूं या वह गिरोह दोषी है जिसका पर्दाफाश करने की मैंने कोशिश की।
उसके बाद क्या हुआ ?
मुझे किस तरह प्रताड़ित किया गया था, मैंने इसकी जानकारी प्रधानमंत्री को आधिकारिक रूप से दी। पिछले वर्ष सितंबर में मैंने प्रधानमंत्री को वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा के(स्वास्थ्य मंत्री बनने से पूर्व) लिखे वे पत्र भेज दिए जो उन्होंने मुझे हटाने और मेरे द्वारा शुरू की गई जांच को खत्म करने की मांग करते हुए लिखा था। कोई कार्रवाई करने के बदले उन्हें मेरे विभाग का मंत्री बना दिया गया, जिससे पद के अधिकार में होने के कारण वह न सिर्फ मेरी वार्षिक गुप्त रिपोर्ट की निगरानी करते हैं बल्कि जिन केसों को बंद करने की वह मांग करते रहे थे उन्हीं मामलों में अब वह अनुशासनात्मक प्राधिकार हो गए। यह न्याय की एक विकृत समझ है। इन परिस्थितियों में मेरे साथ जो हो रहा है वह होना ही था।
अब आप के साथ क्या हो रहा है ?हरियाणा सरकार ने इस पुरस्कार के मिलने के बाद आपको पदोन्नति दी है ?
मुझे यह पदोन्नति सम्मान की वजह से नहीं बल्कि इसलिए मिली है कि 13 वर्ष की सेवा पर नियमित मिलने वाली टाइम-स्केल पदोन्नति के लिए मैं केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधीकरण (कैट) गया था। मेरे बैच के लोगों को यह पदोन्नति जनवरी में ही मिल गई थी। क्या इन सबसे मेरे यह समझने में कोई गलती है कि हरियाणा सरकार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की संयुक्त प्रताड़ना को उच्च स्तर से आशीर्वाद प्राप्त है।
अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने के बाद आप की जिंदगी में किस प्रकार का बदलाव आया है?
निजी तौर पर कोई बदलाव नहीं आया है। एम्स के किसी अधिकारी ने मुझे बधाई नहीं दी, न ही निदेशक और न स्वास्थ्य मंत्रालय से किसी ने मुझे बधाई दी। मुझे फोन कर बधाई देने वाले दो लोगों में, हरियाणा के एक मंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं। लेकिन मेरे कर्मचारियों और बहुत से आम लोगों ने, जिन्हें मैं जानता भी नहीं हूं, इस पुरस्कार का जश्न मनाकर बधाई दी।
आप के ताकतवर विरोधी सत्ता में बैठे हैं,अब तक आप ने संघर्ष कैसे जारी रखा?
सरकार के विरुद्ध अपने संघर्ष में मुझे बहुत सारे अनपेक्षित जगहों और लोगों से सहायता मिली है। यह सिर्फ इस तरह कि अपने डेस्क पर परिश्रम करने वाला एक ईमानदार शख्स सरकार द्वारा मेरे विरुद्ध की जाने वाली कारवाई की जानकारी मुझे दे दे। या मुझे उचित सलाह देकर मेरी मदद करे। मुख्य बात यह है कि एक भ्रष्ट व्यक्ति भी भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण चाहता है। मैंने पुरस्कार पाने की इच्छा में कुछ भी नहीं किया। जब भी मैंने किसी पहुंच वाले व्यक्ति की फाइल खोली तो मुझे उसके परिणाम पता थे।
आप एम्स में उप सचिव पद पर हैं, जहां आपके लिए कोई खास काम नहीं है। फरवरी में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने ओएसडी के तौर पर आपकी सेवा की मांग की थी। इसमें क्या अड़चन है ?
सरकार जिस तरह से इस मामले में काम कर रही है, वह इस बात का एक शानदार उदाहरण है कि जब सरकार कोई निर्णय नहीं लेना चाहती है तो फाइलें किस प्रकार से आगे बढ़ती हैं। जब उन्होंने मुझे एम्स के ओएसडी के पद से हटाना चाहा तो फाइल पर 20 लोगों के साइन होने में सिर्फ 24 घंटे का समय लगा। अब जबकि मंत्रालय के अधिकारियों ने सरकार को बता दिया है कि मैं डेपुटेशन पर जाने की सभी शर्तें पूरी करता हूं, उसके बाद भी अब तक 6 महीने गुजर चुके हैं और कोई फैसला नहीं लिया गया है।
आज के समय भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा क्या है ?
हम जैसे अधिकारियों के लिए समस्या है कि जब राजनीतिक प्रतिष्ठान में ऊंची पहुंच रखने वालों के साथ आप संघर्ष करेंगे तो स्थानांतरण करने, हमारा एसीआर और चार्जशीट लिखने के सारे अनुशासनात्मक कार्रवाई के जिन्हें अधिकार प्राप्त हैं वे पीछे पड़ जाएंगे। अखिल भारतीय सेवा तो अब भी कुछ संरक्षण प्रदान करती है, लेकिन छोटे अधिकारियों जैसे, राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों, की स्थिति बहुत ही कष्टदायक है ।
राज्यों में अभी के समय दो चीजें धराशायी हो गई हैं। पहली, नियुक्तियों में पारदर्शिता, जिसका उदाहरण व्यापमं घोटाले की अनियमितताओं से मिलता है। इसके कारण युवाओं में गहरा असंतोष पनप रहा है। दूसरी, राज्यों की भ्रष्टाचार निरोधक मशीनरी पूरी तरह निष्क्रिय हो चुकी हैं। आम आदमी निम्न स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा प्रभावित है।
अपने कनिष्ठों के बारे में क्या कहेंगे जो आप की राह पर हो सकता है चलना चाहें ?
यह एक बहुत कठिन राह है लेकिन मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई लड़नी होगी। यह पूरी तरह फिर से स्वतंत्रता आंदोलन की तरह होनी चाहिए। इसे समाप्त करने के लिए बहुत सारे लोगों को कुर्बानी देनी होगी। भ्रष्टाचार अब सिर्फ घूसखोरी, और नाजायज पैसों तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि इसने अब आम आदमी के आत्मसम्मान, उसकी आशाओं और सपनों पर प्रहार करना शुरू कर दिया है।
क्या भ्रष्टाचार मुक्त भारत संभव है ?
कभी-कभी मैं निराश हो जाता हूं। लेकिन तब सोचता हूं कि यह वह यात्रा है जो अन्य विकसित देशों ने पहले ही पूरी कर ली है। जात और धर्म से ऊपर उठ कर हर तबके से ईमानदार राजनीतिज्ञों को जो समर्थन मिल रहा है वह हमें कुछ कह रहा है। आजकल एक भ्रष्ट व्यक्ति भी एक स्वच्छ प्रत्याशी चाहता है। पर सरकार में मौजूद भ्रष्टाचारी अधिकारियों की संख्या ईमानदार अधिकारियों से कम है। अगर हम किसी तरह इनकी संख्या को 30 प्रतिशत तक ले आएं तो सरकार के लिए तब हमारी आवाज दबानी मुश्किल हो जाएगी।
आपकी अगली योजना क्या है ?
व्यवस्था के अंदर ही कुछ ऐसा किया जाए जो सफल हो। उसके लिए मैं समान विचार के लोगों से संपर्क कर रहा हूं। इसमें स्कूली छात्रों और प्रोबेशन के अधीन अधिकारियों के बीच काम करने जैसा कुछ हो सकता है। मुझे सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से बल मिला है, जिसके अनुसार, हालांकि एक सरकारी अधिकारी सेवा शर्तों से बंधा होता है फिर भी वह नागरिक अधिकारों से वंचित नहीं होता है और जनहित के मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है।