डाइवम वेलनेस द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में रहने वाली 41 फीसदी आबादी हैवी मैटल टॉक्सिसिटी से पीड़ित है। चौंकाने वाले निष्कर्ष बताते हैं कि इस क्षेत्र में हवा और मिट्टी, दूषित खाने, प्लास्टिक के ज्यादा उपयोग आदि का प्रदूषण उच्च स्तर पर है।
165 रोगियों में से, 68 रोगी में किसी न किसी प्रकार की गंभीर मैटल टॉक्सिसिटी पाई गई। इन रोगियों में बसे अधिक पाई जाने वाली धातुओं में एल्युमिनियम, पारा, लेड, आर्सेनिक और कैडमियम थे।
मानव अंग हो सकते हैं क्षतिग्रस्त
मानव शरीर में धातु के विषाक्तता को बढ़ाने के लिए एपोकैलिक प्रदूषण को प्रमुख कारण के रूप में देखा जाता है। यही वजह है कि ये निष्कर्ष चिंता का कारण हैं क्योंकि इनकी वजह से कई अंग क्षतिग्रस्त हो सकते हैं और ये कई गंभीर स्वास्थ्य मुद्दों को जन्म दे सकते हैं। मई 2019 से अक्टूबर 2019 तक 6 महीने की अवधि के लिए किए गए सर्वेक्षण में 20 से 65 साल के लोगों को शामिल किया गया था।
स्वास्थ्य के लिए सबसे भयावह कैंसर जैसी बीमारी भी इसके कारण हो सकती है। यहां तक कि इसके कारण बच्चे में जन्मजात दोष और गर्भधारण में दिक्कत भी हो सकती है। मानव शरीर में धातुओं के इस तरह के उच्च स्तर से क्रोनिक किडनी रोग, मल्टीपल स्केलेरोसिस, गठिया, हृदय रोग, बांझपन और मिर्गी भी हो सकती है।
परिणाम के आंकड़ों ने चौंकाया
डाइवम वेलनेस के चिकित्सा निदेशक डॉ. आलोक चोपड़ा ने कहा, “दूषित भोजन, दवाओं, प्लास्टिक के बर्तन, पर्यावरण प्रदूषण के उच्च स्तर के साथ हवा, मिट्टी और पानी के साथ हैवी मैटल के संपर्क ने इन बीमारियों में वृद्धि की है। डॉ. चोपड़ा का कहना है कि परीक्षण से पहले ही, हम जानते थे कि दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले लोगों में हैवी मैटल टॉक्सिसिटी का अंदेशा था। लेकिन अंतिम परिणाम ने हमें आश्चर्यचकित कर दिया। 41 प्रतिशत एक तरह से उच्च आंकड़ा है। निश्चित रूप से यह आंकड़ा आपातकालीन उपायों की ओर संकेत करता है।”