इस मौके पर उन्होंने कहा कि पत्रकारीय लेखों को साहित्य बनने में समय लगता है, क्योंकि अखबारी लेख उसी दिन ख़त्म हो जाता है और उसे लोग भूल जाते हैं। इन पुस्तकों में भारत का समकालीन इतिहास लिखा गया है, जिसमें राष्ट्र सर्वोपरि है। इसीलिए यह लेखन शाश्वत हो गया है। अपने लेखों के माध्यम से बल्देव भाई ने समकालीन भारत और जीवन के हर आयाम को छुआ है। इससे समाज और राष्ट्र को दिशा मिलेगी।
दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने कहा कि मैं अरब सागर के तट से यमुना तट पर बल्देव भाई जैसे भाई को आशीर्वाद देने आई हूं। ‘मेरे समय का भारत’ सिर्फ आपके समय का भारत नहीं है, बल्कि हमारे समय का भारत है। लोक संस्कृति के माध्यम से भारतीय संस्कृति को जाना जाता है। इन पुस्तकों के माध्यम से बल्देव भाई ने युवाओं को जागृत किया है।
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के उपाध्यक्ष डॉ. कमल किशोर गोयनका ने कहा कि बल्देव भाई ने राष्ट्र प्रेम को एक दिशा दी है। उन्होंने भारतीय आत्मा की रक्षा अपने लेखों के जरिए की है। बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि हम ज्ञानी हो सकते हैं लेकिन मन का संस्कार ठीक नहीं हो तो हम राक्षस बन जाते हैं। संघ की दृष्टि ने मुझे संस्कार दिया। मेरी जिंदगी बदलती गई और मेरे लेखों का संग्रह मेरी पत्नी ने किया। शहर बदलते रहे, सामान छूटते रहे लेकिन पत्नी ने हमारे लिखे लेखों को छूटने नहीं दिया। मुझे संघ ने मनुष्यता और राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया।
इस अवसर पर श्रीराम कथा मर्मज्ञ पूज्य संत विजय कौशल जी महाराज ने कहा कि क्रिया की सिद्धि कर्म से होती है। बल्देव और हम दोनों बचपन से ही सखा रहे हैं। वे अच्छे लेखक के साथ ही गायक भी बहुत अच्छे हैं। उन्होंने उनके साथ बचपन में हाथरस और अलीगढ़ में बिताए क्षणों को याद किया। इससे पहले कार्यक्रम के आरंभ में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. राजीव रंजन गिरि दोनों पुस्तकों की विवेचना की। मंच संचालन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार भगत ने किया। इस मौके पर नील-नारायण प्रकाशन के राकेश कुमार झा, अनुज्ञा बुक्स के सुधीर वत्स सहित अनेक गणमान्य लोग भी मौजूद थे।