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क्या वाकई ब्रिटिश प्रधानमंत्री की मुश्किलें कम हुई हैं?

ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अपने ही सांसदों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव भले ही जीत गए हों...
क्या वाकई ब्रिटिश प्रधानमंत्री की मुश्किलें कम हुई हैं?

ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अपने ही सांसदों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव भले ही जीत गए हों लेकिन उनकी मुश्किलें कम हो गई हैं ऐसा नहीं लग रहा है। सोमवार को ब्रिटेन की संसद में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई और उसमें बोरिस ने अपना पद बचा लिया। इस प्रस्ताव में उनकी पार्टी के सभी सांसदों ने हिस्सा तो लिया लेकिन उन्हीं की पार्टी के 41 फीसदी सासंद यानी 148 सासंदों ने उनको प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए वोट दिया। यही विद्रोह अब उनके लिए नई नई मुसीबतें लेकर सामने आ रहा है। विपक्षी लेबर पार्टी का कहना है कि जब उनकी खुद की पार्टी के 41 फीसदी सांसद नहीं चाहते तो नैतिक आधार पर बोरिस जॉनसन को इस्तीफा दे देना चाहिए। वहीं लेबर पार्टी की एक नेता के सवालों का जवाब देते हुए बुधवार को संसद में बोरिस जॉनसन ने कहा कि उनका राजनीतिक करियर तो अभी शुरु हुआ है। जाहिर है अगर बोरिस विश्वास मत में हार जाते तो न सिर्फ प्रधानमंत्री पद से बल्कि उन्हें अपनी पार्टी लीडर के पद से भी हटना पड़ता। कंजरवेटिव पार्टी के मौजूदा नियमों के हिसाब से बोरिस जॉनसन की कुर्सी अब अगले एक साल के लिए बच गई है क्यूंकि अब उनकी पार्टी के सांसद अगले एक साल तक दोबारा अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकते। यहां के लोकतांत्रिक प्रकिया में एक खूबसूरती ये भी है कि सत्ताधारी दल के सासंद भी अपने नेता के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं और फिर सदन में उसी पार्टी के सांसद वोट देकर फैसला भी करते हैं, उसके लिए कम से कम 15 फीसदी सांसदो को पहले कंजरवेटिव पार्टी की अंदरूनी “1922 कमिटी” के सामने प्रस्ताव रखना होता है।

बोरिस जॉनसन जब प्रधानमंत्री बने थे उस वक्त भी ब्रिटेन में उसी तरह के हालात थे। दिसंबर 2018 में मौजूदा प्रधानमंत्री थेरेसा मे के खिलाफ भी उनकी पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव में जाना पसंद किया था। हालांकि वो भी अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो गई थीं, उनके समर्थन में 63 फीसदी सांसदों ने वोट किया था यानी बोरिस जॉनसन के मिले मत से 4 फीसदी ज्यादा।  लेकिन 6 महीने के भीतर ही थेरेसा मे ने इस्तीफा दे दिया था। फिर बोरिस के हाथों में सत्ता आई, बाद में चुनाव हुए और फिर जीतकर बोरिस जॉनसन प्रधानमंत्री बने रहे। 2019 के हालात और 2022 के ब्रिटेन में काफी बदलाव आ चुका है। कोविड में चरमरा रही अर्थव्यवस्था पर रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी असर डाला है, ब्रिटेन महंगाई के ऐतिहासिक दौर से गुजर रहा है और नैतिकता के पैमाने पर बोरिस जॉनसन की जगहंसाई हुई है और अब उनकी ही पार्टी के नेता उनको पद से हटाने के लिए बेताब हैँ। नियम के अनुसार अगले एक साल तक के लिए उनकी कुर्सी सुरक्षित है लेकिन अब कुछ सांसद नियम में बदलाव कराने तक की बात करने लगे हैं जो निश्चित तौर पर बोरिस जॉनसन के लिए शुभ संकेत नहीं है। विश्वास मत जीतने के बाद उनके मंत्रिमंडल ने उनको बधाई दी। इस पर लेबर पार्टी के सांसद ने कहा कि मंत्रिमंडल को उन्हें जाने के लिए कहना चाहिए लेकिन वो नहीं कहेंगे क्योंकि वो बहुत कमजोर हैं और बोरिस जॉनसन ने उन्हें कमजोर कर रखा है। कोविड लॉकडाउन के दौरान 10 डाउनिंग स्ट्रीट में नियमों का उल्लंघन कर पार्टी करने के दोषी वो पहले ही पाए जा चुके हैं और उनपर जुर्माना भी लग चुका है अब विपक्षी दलों के साथ उनकी ही पार्टी के सांसद उनके विफल होने की बात लगातार कर रहे हैं।

बोरिस जॉनसन ऐसे दोराहे पर हैं जहां से वो या तो थेरेसा मे के रास्ते पर जा सकते हैं या फिर अपने तौर तरीकों में बदलाव लाकर और मजबूत हो सकते हैं। अविश्वास प्रस्ताव में जाते ही उनके उत्तराधिकारियों के नामों की चर्चा भी जोर शोर से होने लगी जिसमें वित्त मंत्री ऋषि सुनक और विदेश मंत्री लिज ट्रूस सबसे मजबूत दावेदार के तौर पर उभरे लेकिन विश्वास मत जीतते ही सबसे पहले इन्हीं दोनों नेताओँ ने बोरिस में अपनी आस्था जाहिर की और आगे बढ़ने का संकल्प लिया। अब यहां की राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बोरिस पर इन दोनों मंत्रियों के क्रियाकलापों की छाप ज्यादा देखने को मिलेगी। मौजूदा महंगाई के ब्रिटेन को उबारने में ऋषि सुनक की भूमिका सबसे ज्यादा होगी और टैक्स की नई नीतियां बोरिस को मजबूत या कमजोर करेंगी। प्रधानमंत्री के समर्थकों का मानना है टैक्स में छूट देकर बोरिस एक तरफ ब्रिटेन की जनता को सहूलियतें दे सकते हैं और दूसरी तरफ उनके इस कदम से कंजरवेटिव पार्टी में एकता के पुनर्निर्माण में मदद मिलेगी। साथ ही कुछ सांसदों का कहना है कि बोरिस जॉनसन टैक्स में बदलाव धीरे धीरे करना चाहते हैं लेकिन अब ऐसी स्थिति है कि उनको फैसले तेजी से लेने होंगे और उनपर अमल करना होगा। चुनावी वादों को भी याद करना होगा और उसे पूरा करने की ओर बढ़ना होगा। ब्रिटेन में 1940 के बाद सबसे उच्च्तम स्तर पर टैक्स का बोझ वर्तमान परिस्थिति में लोगों के उपर आ रहा है। जाहिर है मौजूदा परिस्थितियों का अंदाजा निश्चित पर बोरिस जॉनसन को हो रहा होगा तभी उन्होंने अपने नागरिकों को घर मुहैया कराने के लिए उनके अधिकार को और पुख्ता करने की बात दुहराई है और साथ ही कहा है कि हर व्यक्ति को घर मिले और आसानी से मिले इसके लिए उनके प्रयास में तेजी लाएँगे। साथ ही देश की सबसे मजबूत स्वास्थ्य सेवा में स्थायी नौकरी की संख्या बढ़ाने का वादा इस अविश्वास प्रस्ताव में जीत के बाद बोरिस दोहराते नजर आ रहे हैं। ऐसे में आने वाले कुछ महीने ब्रिटेन की राजनीति में बहुत दिलचस्प होंगे, बोरिस जॉनसन की नीतियां और उनके विश्वसनीय मंत्रियों का साथ या तो उन्हें और मजबूत करेगा या फिर कुछ महीनों के अंदर पद छोड़ने पर विवश करेगा। रही बात विपक्ष की तो उऩको समझना होगा कि पार्टी द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जाना विभाजित पार्टी की ओर इशारा जो जरूर करता है लेकिन ये विभाजन पार्टी के सिद्धांतों के मुद्दे पर न होकर किसी एक व्यक्ति के सिद्धांत से समझौता करने के मुद्दे पर रही है ऐसे में भले ही बोरिस की राह मुश्किल हो लेकिन विपक्षी दलों की राह भी आसान नहीं है।

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