पूरे एशियाई समाज के लिए चाँद परिवार के सदस्य की तरह है। बचपन में वो चंदा मामा है और जवानी में वो माशुका की तरह है। महिलाओं के लिए आस्था का प्रतीक है। विरह और मिलन, जुदाई और मुलाकात में वही एक मात्र गवाह है जो दो के बाद तीसरा है। तमाम नक्षत्र अपनी यात्रा पूरी करते हैं तो उसे एक चंद्र मास कहा जाता है। पौराणिक कथा ये है कि दक्ष प्रजापत की 27 कन्याओं से चाँद का विवाह हुआ था और ये 27 कन्याएँ 27 नक्षत्रों का प्रतीक है। अब ये जुदा बात है कि 27 पत्नियाँ के पति होकर भी उनमें सबसे चहेती पत्नी एक ही थी जिसे रोहिणी नक्षत्र कहा जाता है।
विज्ञान अभी चन्द्रमा तक पहुँच रहा है या यूँ कहें, चंद्रमा पर पहुँचने की कई कामयाब कोशिशें अलग-अलग समय पर कर चुका है। वह वहाँ हवा, पानी, जीवन सब तलाश कर रहा है पर हमारी समझ और साहित्यक ज़िन्दगी में वो अनादिकाल से मौजूद है। चाँद दुनिया का पहला बहुरूपिया है जो स्त्री-पुरूष दोनों के रूप धर सकता है। चाँद मेहबूब भी है और मेहबूबा भी । हमारें साहित्य और लोक कहावतों में वो पहले से मौजूद है। हर धर्म में उसकी मौजूदगी अलग-अलग रूप में अलग-अलग प्रतीक में है।
अपने जमाने के मशहूर शायर नजीर अकबराबादी ने तो उसे रोटी की शक्ल में भी देखा है -
हमें तो न चाँद समझें न सूरज हैं
बाबा हमें तो ये नज़र आती हैं रोटियाँ
जावेद अख़्तर बहुत कम उम्र में अपनी माँ को खो चुके थे। मगर जब उन्होंने शायरी शुरू की तो अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा-
मुझको यकीं है सच कहती थीं
जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे
चाँद में परियाँ रहती थीं
अपनी मेहबूबा का बखान करते हुए इब्न-ए-इंशा कहते हैं -
कल चौदहवीं की रात थी
शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है
कुछ ने कहा चेहरा तिरा
स्त्री के दिल को शायरी में खोल कर रख देने वाली परवीन शाकीर के लिए यही चाँद प्रेमी हो गए हैं, सजन हो गए हैं। वे लिखती है- -
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
मतलब तन्हाई में भी सिर्फ चाँद ही मौजूद है और सोते हुए में भी उसकी मौजूदगी कयाम हैं। उनका एक दूसरा शेर देखिए-
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद
मेहबूबा की खूबसूरती के लिए चाँद का होना उतना ही जरूरी है जितना की मेहबूबा का । गुलजार की दो लाईनें देखिए
चाँद और सूरज तो कुदरत की माया है
न जाने तुमने अपनी खूबसूरती से कितनों को महकाया है
चाँद और उसकी चांदनी और उसके हुस्न पर बात करते हुए कलमकारों की कलम कुछ यूँ चली जैसे वह अपनी मेहबूबा से गुफ़्तगू कर रहें हो । जावेद अख़्तर का एक शेर देखिए-
दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ..
इब्न-ए-इंशा का एक शेर और देखिए-
चाँद का हुस्न भी जमीन से है
चाँद पर चांदनी नहीं होती
बचपन के चंदा मामा को भला हम कैसे भूल सकते हैं ? माँ की लोरियाँ हों या हमारे ख्वाब या जिंदगी की आपाधापी में हम कुछ चैन चाहते हो एक वहीं तो है जो मौजूद हों।
चंदा मामा दूर के, पुए पकाए बूर के
या
परी लोक में अब तू सो जा
वहाँ मिलेंगे तुझको तारें और चन्द्रमा
बाते करना तू चंदा से
और तारों से, अब तू सोजा
या
चंदा मामा आएँगे, सपनों में ले जाएँगे
सपनों की दुनिया में वह खूब घुमाएँगे
कहावतों में तो वह कुछ इस तरह दर्ज हैं कि उसके जिक्र के बिना कई
बार बात मुकम्मल ही नहीं होती -
चार चाँद लगाना, चाँद-तारे तोड़ कर लाना चाँद पर थूकना चाँद पर दाग, दूज का चाँद ईद का चाँद चौदहवी का चाँद ।
चंन्द्रमा, अंबुज इंदु कलानिधि जयंत जलज निशाकर मयंक. . माहताब, राकेश शशधर, शशांक शशी सुधांशु, हिमांशु सुधाकर . आदि सैकड़ों नाम चंद्रमा के ही तो हैं।
जब व्यंगकार की कलम उठती है तो भी उनका पात्र इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर ही जाता है। हरिशंकर परसाई की रचना " इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर जब आप पढ़ेंगे उनकी कल्पना में चाँद की दुनिया तकरीबन वैसी ही है, जैसे आप और हम मुर्धन्य साहित्यकारों ने जब चाँद का इस्तेमाल कविताओं में किया तो हमें मुक्तिबोध की अमर रचना "चाँद का मुँह टेढ़ा है", रघुवीर सहाय की "चाँद की आदतें" और राजेश जोशी की "चाँद की वर्तनी" जैसी अनेक कविताएं मिलती हैं।
फिल्मी गीतकारों ने जब उसे पुकारा तब चाहे वह शैलेन्द्र हों, चाहे शकील बदायूँनी, चाहे आनंद बख्शी चाँद सब के काम आया। जरा एक नज़र देखिए कि सुनहरे पर्दे पर दिलों की धड़कनों को बढाते और संगीत का शहद कानों में घोलते हुए चाँद किस कदर नज़र आता है।
खोया-खोया चाँद, खुला आसमान (काला बाज़ार)
चौदवी का चाँद हो या आफताब हो (चौदवीं का चाँद )
ये चाँद सा रोशन चेहरा, जुल्फों का रंग (कशमीर की कली)
चलो दिलदार चलों, चाँद के पार चलो (पाकीज़ा)
जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चाँद निकला (जख्म)
चंदा मामा सो गये.. (मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस)
चाँद सी मेहबूबा हो मेरी कब .... (हिमालय की गोद में)
चंदा है तू मेरा सूरज है तू (अराधना)
मेरे सामने वाली खिड़की में इक चाँद सा (पड़ोसन)
दम भर जो उधर मुँह फेरे ओ चंदा (आवारा)
गुलजार ने तो जाम पीने की शर्त ही ये रखी हैं कि
जिस दिन उतरेगा आसमान से चाँद
उस दिन लगाएंगे हम तुम्हारे नाम का जाम
चाँद धर्मनिरपेक्षता का भी प्रतीक है इसलिए उसकी उपस्थिती हिन्दू - मुस्लिम-सिख-ईसाई में बिल्कुल एक सी है। और शरद पूर्णिमा है, करवा चौथ है, उसके आने से ईद की रौनक है। वही तो है जिसके झोले में ढेर-सी खुशियाँ भरी हुई हैं और वह खुले हाथों से हम पर उसकी मौजूदगी के एहसास को लुटा रहा है। जावेद अख्तर ने जब बँटवारें पर अपना दुःख जाहिर करना चाहा, तब भी चाँद उनके काम आया-
आओ अब हम इसके भी टुकड़े कर लें
ढ़ाका रावलपिंडी और दिल्ली का चाँद
भारत का चंद्रयान अपनी यात्रा शुरू कर रहा है। यह सिर्फ वैज्ञानिक तथ्य है। हम तो चाँद के साथ जिंदा है और जिंदा रहेंगे। उसका सही पता हमारी जिंदगी है।