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मिजोरम में पहचान और संस्कृति बचाने की खातिर स्थानीय से शादी पर जोर

पूर्वोत्तर के विशाल और रंगीन जनसांख्यिकीय कैनवस पर एक समूह हमेशा से ‘बाहरी लोगों’ का रहा है। यह...
मिजोरम में पहचान और संस्कृति बचाने की खातिर स्थानीय से शादी पर जोर

पूर्वोत्तर के विशाल और रंगीन जनसांख्यिकीय कैनवस पर एक समूह हमेशा से ‘बाहरी लोगों’ का रहा है। यह लोगों का समूह है जिनमें अधिकांश लोग शरणार्थी, प्रवासी श्रमिक और पूरे भारत के आए व्यापारी हैं। हालांकि ये लोग इस क्षेत्र की राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर हावी हैं। लेकिन स्थानीय लोग अक्सर इन्हें अतिक्रमणकारियों और आक्रमणकारियों के रूप में देखते हैं और मानते हैं कि इन लोगों की वजह से ही वहां की पहचान और संस्कृति खतरे में है।

म्यांमार की सीमा से लगे मिजोरम के इस पर्वतीय इलाके में बाहर के इलाकों से आए लोगों के प्रति डर के कई रूप हैं। इस डर का आलम यह है कि राज्य में प्रभुत्व वाले शीर्ष स्टूडेंट यूनियन मिजो जिरलाई पावल (एमजेडपी) ने तय किया है कि वे युवाओं के बीच एक जागरूकता जगाने वाला कार्यक्रम चलाएंगे जिसमें बताया जाएगा कि गैर मिजो से शादी न की जाए। एमजेडपी के अध्यक्ष रामदीनलिया रांधलेई कहते हैं कि इसका मकसद, “मूल मिजो लोगों को उनकी संस्कृति, परंपरा और धर्म बचाने के लिए समझाना है।” वह दृढ़ता से कहते हैं, “मिजो लड़कियों और लड़कों को अन्य समुदाय के लोगों या गैर-आदिवासियों से शादी नहीं करने के लिए जागरूकता फैलाने के लिए अधिक उपाय किए जाएंगे।”

देश के अन्य हिस्सों में, इस तरह के कदम को अराजक और नस्लवादी रूप में देखा जा सकता है। लेकिन पूर्वोत्तर में बड़ी संख्या में लोग, खासकर उन राज्यों में जहां ट्राइबल मैजोरिटी है, वे इस तरह के कड़े आदेशों को जरूरी बुराई के रूप में देखते हैं। क्योंकि वे लोग अपनी पहचान, जमीन और संसाधनों की रक्षा करना चाहते हैं। मिजोरम, मेघालय और मणिपुर जैसे राज्य संवैधानिक प्रावधानों का आनंद लेते हैं जो ‘बाहरी लोगों’ को यहां जमीन खरीदने से रोकते हैं। पिछले साल मेघालय की आदिवासी परिषद खासी महिलाओं के लिए एक बिल लाया, जिसमें उन महिलाओं से विरासत के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव था जो समुदाय से बाहर शादी करती हैं। क्योंकि वे लोग अपनी पहचान, जमीन और संसाधनों की रक्षा करना चाहते हैं। लेकिन महिला समूहों के विरोध के बाद यह बिल पास नहीं हो सका।

अपना नाम न छापने की शर्त पर एक सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्त एक स्थानीय अधिकारी का कहना था कि प्रेम विवाह निजी मसला है लेकिन हम लोग खुद को अवैध प्रवासियों के साथ घुलने-मिलने से बचाना चाहते हैं।

गैर मिजो लोग यदि मिजोरम जाना चाहें तो उन्हें एक निश्चित अवधि के लिए इनर लाइन परमिट (आईएलपी) की जरूरत होती है। पूर्वोत्तर राज्य दशकों से एक ही समस्या से जूझ रहे हैं और वह है, अवैध प्रवासियों का आना। खासकर बांग्लादेश से। इसी कारण अधिकांश राज्य असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के समान नागरिकता रिकॉर्ड के पक्ष में हैं।  

शिलांग में पले-बढ़े राजनीतिक टिप्पणी कार सम्राट चौधरी कहते है, “पूर्वोत्तर में आदिवासी लोगों सहित अधिकांश भारतीय समुदायों में ‘शुद्ध रक्त’ बनाए रखने का विचार काफी आम है। मिजो, नागा और खासी, हरियाणवी जाट या बिहारी ठाकुरों के समान नहीं हैं, लेकिन जब बात उनकी महिलाओं की शादी की आती है तो वे उनके जैसे ही हो जाते हैं। पूर्वोत्तर के मामले में चिंता की बात यह है कि यहां के लोग अपनी जाति और नस्ल के पूर्वाग्रहों को पूर्वाग्रह के रूप में नहीं देखते। यहां तक कि समझदार, शिक्षित और सामाजिक रूप से उदार पूर्वोत्तर के लोग जो बिहारी या हरियाणवी समाज के तथाकथित पिछड़ेपन के शिकार हो सकते हैं, बिना किसी आत्म-जागरूकता के, अपने स्वयं के समाजों की काल्पनिक प्राचीनता बनाए रखने में सभी प्रयासों का बचाव करते हैं, चाहे वह महिलाओं को नियंत्रित करना हो या बाहर के लोगों को मजबूर करना हो।”

पूर्वोत्तर के निवासियों में से कई जब तक ‘हमारी पहचान’ है  इस इच्छा के साथ लंबे समय तक जीने को तैयार हैं। गुवाहाटी में पीएचडी के छात्र अंशुमान बरुआ कहते हैं, "मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि वे हमारे बारे में क्या सोचते हैं। असमिया एक छोटा समुदाय है… और हम लाखों अवैध प्रवासियों के खिलाफ लड़ रहे हैं जो एक दिन असम में बहुमत बन सकते हैं, राजनीतिक स्थान पर कब्जा कर सकते हैं जैसे उन्होंने त्रिपुरा में किया था। क्या हमें उस दिन का इंतजार करना चाहिए और तब तक कुछ नहीं करना चाहिए?"

मिजोरम में एमजेडपी का कहना है कि "यह" करने का समय आ गया है। हमारे सैकड़ों सदस्य स्कूलों और कॉलेजों में जाएंगे, युवाओं को बताएंगे कि वर्तमान खतरा क्या है जिसका संगठन क्या दावा करता है।

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