ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कवि कुंवर नारायण का आज बुधवार को 90 साल की आयु में निधन हो गया। फैजाबाद से ताल्लुक रखने वाले कुंवर नारायण की साहित्यिक यात्रा 51 साल की थी। 1956 में चक्रव्यूह नाम ने उनकी पहली किताब आई थी।
साहित्यकि अवदान के लिए उन्हें 41वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें 1995 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था। 2009 में पद्मभूषण प्राप्त कुंवर नारायण अपनी कविताओं को लेकर बहुत चर्चा में रहे लेकिन उन्होंने कला और सिनेमा पर भी कई उल्लेखनीय लेख लिखे थे।
लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य से पढ़ाई करने वाले कुंवर नारायण के प्रशंसकों की कोई कमी नहीं थी। एक कवि के रूप में उन्हें बहुत प्यार और सम्मान मिला। वह हमेशा विवादों से दूर रहे। सिवाय एक बार के जब उनकी एक कविता ‘अयोध्या 1992’ लिखने पर उन्हें धमकी मिली थी।
उनकी एक कविता प्रस्थान के बाद
दीवार पर टंगी घड़ी
कहती − "उठो अब वक़्त आ गया।"
कोने में खड़ी छड़ी
कहती − "चलो अब, बहुत दूर जाना है।"
पैताने रखे जूते पांव छूते
"पहन लो हमें, रास्ता ऊबड़-खाबड़ है।"
सन्नाटा कहता − "घबराओ मत
मैं तुम्हारे साथ हूं।"
यादें कहतीं − "भूल जाओ हमें अब
हमारा कोई ठिकाना नहीं।"
सिरहाने खड़ा अंधेरे का लबादा
कहता − "ओढ़ लो मुझे
बाहर बर्फ पड़ रही
और हमें मुँह-अंधेरे ही निकल जाना है..."
एक बीमार
बिस्तर से उठे बिना ही
घर से बाहर चला जाता।