बीते साल फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगे में “साजिश” रचने के आरोप में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और पिंजरा तोड़ संगठन की सदस्य एवं जेएनयू की छात्रा नताशा नरवाल और देवांगना कालिता को आतंकवाद निरोधी क़ानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था, जिन्हें 15 जून को दिल्ली हाईकोर्ट ने यह कहते हुए जमानत दी कि, “वो विवश हैं इस बात को कहने में की विरोध का संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधी के बीच की जो रेखा है वो धुंधली होती दिखाई दे रही है।“ एक्टिविस्ट आसिफ इकबाल तन्हा आउटलुक के नीरज झा से बातचीत में कहते हैं, ” सरकार विरोधी आवाज को कूचलने के लिए लोगों को जेल में डाल रही है। हम सड़कों पर अधिकार के लिए पहले भी लड़ रहे थे और आगे भी लड़ाई जारी रहेगी। यदि हम गलत नीतियों का विरोध नहीं करेंगे तो आने वाली नस्लें हमें माफ नहीं करेगी।“
बातचीत के प्रमुख अंश...
घर-परिवार, दोस्तों से दूर करीब 13 महीने से अधिक समय आपने जेल में बिताया है। बाहर आने के बाद की दुनिया कुछ बदली हुई दिखाई दे रही है या...
दुनिया कुछ जरूर बदली हुई दिखाई दे रही है। कोरोना की वजह से हमने कई अपने अजीज लोगों को खो दिया है, जो मार्गदर्शक थे। कई साथी दिल्ली में नहीं हैं, जिन्हें मैं अभी याद कर रहा हूं।
देखें तो पिछले कुछ सालों में कई युवा एक्टिविस्टों, छात्रों को जेल में बंद किया गया है। इस पर आपका क्या कहना है?
हालात बेहद नाजुक हैं। देश को, संविधान को, नागरिकों के अधिकार को बचाने के लिए सरकार के विरोध में जो आवाजें सड़क पर उठ रही है उसे कुचला जा रहा है, जेल में बंद किया जा रहा है। ऐसा कदम सरकार के इशारों पर पुलिस प्रशासन इसलिए उठा रही है ताकि ये विरोध की आवाजें ना उठें। खास तौर से लोगों को डराने के लिए, उनमें खौफ पैदा करने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
आप सरीखे अन्य, कोरोना की पहली और दूसरी- इन भयावह लहरों के बीच जेल में बंद थे। कैसा अनुभव रहा? कितना डर था? स्वास्थ्य, खान-पान...।
जिस तरह की सुविधाएं जेल मैनुअल के हिसाब से मिलनी चाहिए, वो नहीं मिलती है। वो एक बुरा दौर था। कोरोना महामारी में एक भीड़ के बीच रहना पड़ा और देश के जेल की जो हालत है उससे हम सभी भली-भांति परिचित हैं। कोविड में हालत और खराब थे। यहां तक कि लोगों की टेस्टिंग भी नहीं हो रही थी और जब वैक्सीनेशन की बारी आई तो उससे भी हम वंचित रहें। सीधे तौर पर कहूं तो जेल में बंद लोगों के अधिकारों का हनन होता है। खान-पान भी मैनुअल के हिसाब से नहीं मिलता है। मैं एक आम आदमी हूं। जेल में भी आम लोगों के साथ था। खास लोगों को किस तरह की सुविधाएं दी जाती है, नहीं पता।
आप और आपके अन्य साथी कहते हैं कि हम विरोध करेंगे, आवाज उठाएंगे। लेकिन आप लोगों पर तो राजद्रोह के आरोप लगे हैं?
सरकार की मंशा है कि विरोध की आवाज को खत्म कर दिया जाए। लेकिन, कल भी हम सड़क पर थे और आगे भी रहेंगे। अभी कोविड है, इसलिए हम आंदोलनरत नहीं है। सामान्य स्थिति होते ही उसी हिम्मत और जुनून के साथ हम अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरेंगे। प्रदर्शन जारी रहेगा। हम और आप, सभी इस बात को भी जानते हैं कि सरकार इसके विरोध में किस तरह का कदम उठाती है, लेकिन हम पीछे हटने वाले नहीं हैं। संघर्ष जारी रहेगा। हमें लगता है कि यदि सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ हम विरोध नहीं करते हैं तो हमारी आने वाली नस्लें हमें माफ नहीं करेगी।
आरोप है कि आपने दिल्ली दंगा को लेकर साजिश रची थी। वहीं, दंगे को भड़काने को लेकर भाजपा नेता पर भी आरोप लगे हैं लेकिन अब तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पर आप क्या सोचते हैं?
देखिए, किसने साजिश रची और किसने नहीं, ये कोर्ट तय करेगा। मामला अभी अदालत में है। अभी ट्रायल बाकी है। हमें इसका इंतजार करना चाहिए, इसलिए मैं इस पर ज्यादा कुछ नहीं बोलना चाहूंगा। कोर्ट ने जिस तरह की टिप्पणी करते हुए हमलोगों को जमानत दी है, मैं संतुष्ट हूं। पहले दिन से हीं मुझे यकीन था, क्योंकि मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं है जो पुलिस कोर्ट में रख सके।
जिस तरह से यूएपीए के तहत गिरफ्तारियां हो रही है, क्या ये कानून का मजाक नहीं है? और सिर्फ आपके मामले में नहीं देखा जा रहा है। सैंकड़ों मामले हैं- दिशा रवि से लेकर कफिल ख़ान तक। क्या आपके मुताबिक सीएए-एनआरसी संविधान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है?
सीएए-एनआरसी आने के बाद से ही हमलोग इसके विरोध में हैं क्योंकि ये हमारे संविधान के खिलाफ है। हम मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते हैं, जो यहां हो रहा है। विरोध की आवाज को बंद करने के लिए सरकार का हथियार यूएपीए हो गया है। इनके खिलाफ कोई भी सड़क पर उतरता है चाहे वो भीमा कोरेगांव का मामला हो या दिशा रवि और डॉ. कफिल खान का, सभी पर इस कानून के तहत कार्रवाई कर जेल में बंद कर दिया जाता है।
जमानत मिलने के बाद भी करीब 36 घंटे से अधिक समय के लिए आप लोगों को बाहर आने का इंतजार करना पड़ा, कोर्ट का फिर से दरवाजा खटखटाना पड़ा। क्या और कोई कानूनी बाधाएं थी, जिससे ये देरी हुई या...
हमें 24 घंटे के भीतर जेल से बाहर आ जाना चाहिए था। लेकिन, हम अपने आप को खुशकिस्मत मानते हैं कि 36 घंटे बाद भी हम रिहा हुए। अनेकों मामलों में देखा गया है कि बेल मिलने के एक सप्ताह तक वेरिफिकेशन के नाम पर उन्हें जेल में ही रहना पड़ता है और तब रिहाई होती है।
जमानत देते वक्त कोर्ट को कहना पड़ा कि वो विवश है इस बात को कहने में की विरोध का संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधी के बीच की जो रेखा है वो खत्म या धुंधली होती दिखाई दे रही है। आपका क्या कहना है?
इसी की लड़ाई हमलोगों की है। शुरू से इस बात को हमलोग दोहराते रहे हैं कि अपने अधिकार के लिए लड़ना, गलत नीतियों पर सरकार का विरोध करना कही से भी आतंकवादी गतिविधि नहीं है और उसी बात को माननीय अदालत ने स्पष्ट किया है। जिस बात को हम और हमारे साथी सड़कों पर, बाहर चीख-चीखकर कह रहे थे कि ये विरोध प्रदर्शन है, आतंकवादी गतिविधी नहीं। लेकिन, सरकार और पुलिस मानने को तैयार नहीं है।
लोगों का ये भी कहना होता है कि जामिया, जेएनयू से ही इस तरह की आवाजें उठती हैं और यहीं के छात्र-छात्राएं क्यों जेल जाते हैं? पढ़ाई करने के बदले विरोध करने की क्या जरूरत है?
आपने एएमयू और कई अन्य यूनिवर्सिटी को छोड़ दिया। ये सही है कि जामिया, जेएनयू, एएमयू के ही छात्र निशाने पर होते हैं। ये समझना होगा कि हमारी शुरूआत ही संघर्ष और आंदोलन से होती है। जामिया का आजादी की लड़ाई में भी योगदान था। हम मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं होने देंगे। मौजूदा समय में हम छात्र विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं क्योंकि, मजबूत विपक्ष नहीं है जो लोकतंत्र की मजबूत रीढ़ मानी जाती है। हम पढ़ाई इसलिए कर रहे हैं ताकि लोगों के अधिकारों की रक्षा की जा सके। हनन को रोका जा सके और इसके खिलाफ बुलंद आवाज उठे।
आपलोगों की रिहाई के खिलाफ दिल्ली पुलिस सुप्रीम कोर्ट भी गई थी। हालांकि, कोर्ट ने आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था लेकिन साथ में ये भी कह दिया कि इस फैसले को नजीर की तरह नहीं माना जाएगा। इस टिप्पणी पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
बिल्कुल, सुप्रीम कोर्ट ने भी हमारी रिहाई के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हमें सुप्रीम कोर्ट में पूरा विश्वास है कि जिस तरह से हाईकोर्ट और निचली अदालतों ने मामले पर सुनवाई की, उसी तरह से आगामी 19 जुलाई को होने वाली सुनवाई में सर्वोच्च अदालत अपना फैसला सुनाएगी। हमें देश के कानून और न्यायालय में पूरा यकीन है।
अब आगे...
पढ़ाई, आंदोलन, संघर्ष, एक्टिविज्म जारी रहेगा। इंसाफ की आवाज उठती रहेगी। मैं अभी छोटा हूं। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद लंबा सफर तय करना है।