भारत सरकार ने अपने बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) का अनावरण किया है। इसका उद्देश्य अगले पांच सालों में पार्टिक्यूलेट मैटर (पीएम) में 20-30 प्रतिशत की कमी लाना है। वायु प्रदूषण को कम करने और देश में वायु गुणवत्ता में सुधार के समग्र लक्ष्य के साथ दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों की आबोहवा का ठीक करना है।
समयबद्ध योजना, 2024 तक एक विशिष्ट पीएम स्तर में कमी को लक्षित करना उत्साहजनक है। कोई स्पष्ट लक्ष्य न होने के कारण अप्रैल 2018 के ड्राफ्ट संस्करण की आलोचना हुई थी। हालांकि, प्रमुख चुनौती एनसीएपी के कार्यान्वयन में निहित है, विशेष रूप से तब जबकि वर्तमान योजना में लक्ष्य कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। चिंता यही है कि इरादे में अच्छी होने वाली यह योजना तब कितनी प्रभावी होगी यह देखना होगा।
जनता के आक्रोश और न्यायपालिका, मीडिया और विशेषज्ञों के सरकार पर लागातार दबाव के बाद एनसीएपी सालों बाद आ पाई है। सभी ने मिल कर सरकार पर दबाव बनाया कि भारत के जहरीले वायु प्रदूषण से भारत को निजात दिलाई जाए। एनसीएपी का विशेषज्ञों ने स्वागत किया है लेकिन उनका मानना है कि लक्ष्य को कानून के साथ जोड़ने से इस अभियान को मजबूती मिलती। कुछ का मानना है कि इसमें यह प्रावधान भी होना चाहिए कि यदि निर्धारित लक्ष्य तक न पहुंचा जाए तो संबंधित लोगों के खिलाफ कारवाई की जा सके।
यहां तक कि एनसीएपी भी मानता है कि कानूनी बाध्यता न होना एक मुद्दा हो सकता है। यह देखा गया है कि अधिकारियों का अब तक का अनुभव ‘नियमित निगरानी और निरक्षण की कमी’ नियम का पालन न करने की बड़ी वजह है। इस मुद्दे से निपटने के लिए, ‘प्रशिक्षित व्यक्तियों और नियमित निरीक्षण अभियान’ को सुनिश्चित करने की जरूरत है।
रिपोर्ट के मुताबिक हर साल प्रदूषित वायुक के कारण हजारों जिंदगियों के चिराग बुझ जाते हैं। पिछले साल दिसंबर में लान्सेट में छपी एक रिपोर्ट के मतुबिक 2017 में भारत में इस वजह से कुल मृत्यु का आंकड़ा 1.24 मिलियन था। यह कुल मृत्यु के 12.5 फीसदी के बराबर है।