अंग्रेजी अखबार The Telegraph में छपी खबर के मुताबिक, लेखक पर आरोप लगाया है कि इस किताब में संथाल जनजाति की महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाई गई है। यह किताब नवम्बर 2015 में प्रकाशित हुई थी। लेखक झारखंड के पकूर जिले में डॉक्टर हैं।
शुक्रवार को झारखंड विधानसभा में भी यह मुद्दा उठा था। संथाल जनजाति से आने वाली विपक्ष की नेता सीता सोरेन ने कहा कि इस किताब में संथाल महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाई गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी किताब पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की है। हालांकि, शेखर के समर्थन में कई लोग आगे आए हैं और उनकी किताब पर प्रतिबंध की निंदा कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बाद में मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को किताब की प्रतियों पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया। पीटीआई के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने शेखर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश भी दिया है।
इससे पहले शेखर के आलोचकों और सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने यह कहते हुए उन्हें ट्रोल किया था कि आदिवासियों के बारे में उनकी लिखी किताब अश्लील है। गत 4 अगस्त को पकूर जिले में विरोधियों ने उनका पुतला फूंका और उनकी दो किताबों को जलाया था। लेखक हंसदा शेखर को 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है।