कैराना के लोकसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार ने एक बड़ा काम किया है। देश के गन्ना किसानों के चीनी मिलों पर रिकार्ड करीब 22 हजार करोड़ रुपये के बकाया भुगतान के लिए अब सरकार की बेचैनी भी बढ़ने लगी है। यही वजह है कि उपचुनाव के नतीजों को सप्ताह भर भी नहीं गुजरा कि अखबारों और चैनलों में गन्ना किसानों के भुगतान के लिए सरकार द्वारा चीनी उद्योग को दिये जाने वाले प्रस्तावित पैकेज की खबरें छायी हुई हैं। सरकार ने 6 जून को यह पैकेज घोषित कर दिया। हालांकि, जिस तरह का पैकेज दिया गया है वह कोई एक-दो दिन का काम नहीं है उस पर कई सप्ताह से मशक्कत चल रही थी।
पैकेज के लिए किये गये दावों और हकीकत में काफी फर्क दिखाई दे रहा है। जिसे सात-आठ हजार करोड़ रुपये बताया जा रहा है, वह असल पैकेज असल पैकेज तीन हजार करोड़ रुपये से भी कम का है। इसका सबसे बड़ा हिस्सा जो करीब 4440 करोड़ रुपये है, वह सीधे किसानों के 22 हजार करोड़ रुपये के बकाया भुगतान में काम आने वाला नहीं है। इसकी वजह यह है कि इस पैसे का इस्तेमाल चीनी मिलों में एथनॉल उत्पादन क्षमता विकसित करने में होगा, जिसमें डेढ़ से दो साल लगते हैं।
पैकेज की पैकेजिंग
चीनी मिलों के संगठन इस्मा, नेशनल फेडरेशन ऑफ शुगर फैक्टरीज लिमिटेड और ऑल इंडिया शुगर ट्रेडर्स एसोसिएशन के साथ कई बैठकों के बाद यह पैकैज तैयार हुआ है। सरकार में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, इसके तहत चीनी का 30 लाख टन का बफर स्टाक बनाने का प्रस्ताव है जिससे चीनी मिलों की लिक्विडिटी में करीब 1175 करोड़ रुपये का इजाफा होगा। यह पैकेज का सबसे कारगर और सीधा कदम है। देश की 550 चीनी मिलों के बीच यह तीस लाख टन का बफर स्टॉक कोटा बंटेगा। इसके चलते मिलों के पास जो चीनी है, उसके आधार पर उसकी लिक्विटी में एक करोड़ रुपये से लेकर चार-पांच करोड़ रुपये का इजाफा हो जाएगा। लेकिन कई मिलों पर सैकड़ों करोड़ रुपये के बकाया भुगतान के मुकाबले यह रकम नाकाफी है। वैसे भी एक साल के लिए बनाये गये बफर स्टॉक के लिए चीनी मिलों को मिलने वाली प्रक्रिया में करीब तीन माह लग सकते हैं। इसलिए पैकेज के अधिसूचित होने के तुरंत बाद किसानों को चीनी मिलों पर बकाया गन्ना भुगतान मिलना शुरू हो जाएगा, कहना सही नहीं होगा।
शुगर पैकेज के तहत दूसरा बड़ा कदम है चीनी की न्यूनतम कीमत तय करना। सूत्रों के मुताबिक, पहले तीन स्तर पर न्यूनतम कीमत तय करने की प्रस्ताव था । लेकिन पैकेज में फैसला एक दाम पर तय हुआ है। यह दाम है 29 रुपये प्रति किलो। उद्योग से जुड़े सूत्रों का मानना है कि अभी चीनी बनाने की लागत 32 से 33 रुपये किलो के आसपास आती है। यानी सह उत्पादों की कमाई भी जोड़ दें तो ये कीमत लागत के करीब होंगी। लेकिन इस कीमत को सरकार ने गन्ने की फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) से जोड़ा है। यानी उत्तर प्रदेश जैसे जिन राज्यों में किसानों को राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) मिलता है वहां की लागत को आधार नहीं बनाया गया है। या यह कहें कि सरकार भुगतान के मामले में एसएपी को स्वीकार ही नहीं करना चाहती है।
अब सवाल है कि व्यवस्था को लागू कैसे किया जाएगा? इसके लिए चीनी मिलों के लिए चीनी की बिक्री की मासिक कोटा व्यवस्था लागू की जाएगी। जो पहले भी थी। लेकिन उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के लिए इसे हटा दिया गया था। दिलचस्प बात यह है कि अभी भी इस्मा इसके पक्ष में नहीं थी जबकि फेडरेशन और ट्रेडर एसोसिएशन इसके पक्ष में थी। क्योंकि कोटा मैकेनिज्म के बिना न्यूनतम कीमत का बरकरार रखना मुश्किल काम है। इसलिए न्यूनतम कीमत को बरकरार रखना इस पैकेज की सबसे अहम हिस्सा है।
इस समय उत्तरी राज्यों में चीनी की एक्स-फैक्टरी कीमत 30 रुपये किलो के आसपास है, जबकि महाराष्ट्र में यह 28 रुपये के आसपास है। वैसे रिलीज मैकेनिज्म इसलिए भी जरूरी है क्योंकि निजी चीनी मिलों का रिकार्ड बफर के मामले में बहुत साफ नहीं रहा है। इस तरह के मामले पहले आए हैं जब कागजों पर तो स्टाक था, लेकिन वास्तव में मिलें चीनी बेच चुकी थी। इसलिए यह काफी पेचीदगी का काम है। लेकिन अगर सरकार यहां ठीक से काम कर पाई तो देश में चीनी की कीमतें बढ़ सकती हैं और उस स्थिति में गन्ना मूल्य भुगतान का यह सबसे कारगर कदम हो सकता है।
शुगर पैकेज का एक बड़ा हिस्सा पहले ही घोषित किया जा चुका है। वह है गन्ने के एफआरपी के भुगतान के लिए 5.5 रुपये प्रति क्विटंल की राहत। इस पर मिलों को करीब 1500 करोड़ रुपये की सहायता गन्ना मूल्य भुगतान के लिए मिल सकती है। लेकिन इसके साथ चीनी के निर्यात की शर्त जुड़ी है। सरकार 20 लाख टन चीनी का निर्यात इस छूट के जरिये कराना चाहती है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमत करीब 2200 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है। इस राहत के बाद चीनी मिलें कुछ घाटा सहकर निर्यात कर सकती हैं। लेकिन यह है काफी मुश्किल काम। इसलिए पैकेज के इस हिस्से से कितना गन्ना मूल्य भुगतान होगा यह अभी कहना मुश्किल है। वैसे पाकिस्तान अभी अपनी चीनी मिलों को करीब 20 रुपये किलो की सब्सिडी देकर निर्यात कर रहा है। इसमें नौ रुपये से ज्यादा की सब्सिडी वहां की केंद्र सरकार और बाकी राज्य सरकारें दे रही हैं। इस मामले में पाकिस्तान की सरकार हमारी सरकार से ज्यादा तत्पर रही है। वैसे दोनों देशों के इस कदम से मामला डब्लूटीओ में जाएगा क्योंकि दूसरे देश इसे गलत ट्रेड प्रैक्टिस के रूप में वहां ले जाएंगे।
प्रस्तावित पैकेज का जो सबसे बड़ा हिस्सा है एथनॉल उत्पादन की क्षमता स्थापित करने के लिए चीनी मिलों को सस्ता कर्ज। इसे 4440 करोड़ रुपये रखा गया है। इस पर 1332 करोड़ रुपये की ब्याज सब्सिडी दी जाएगी। जो पांच साल के लिए होगी। गन्ना मूल्य भुगतान पर इसका अभी सीधे कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि एथनॉल रिफाइनरी लगने में डेढ़ से दो साल लगते हैं। लेकिन यह बात जरूर है कि अगर इस पर ठीक से अमल होता है तो यह भविष्य में चीनी के आधिक्य पर लगाम लगा सकती है क्योंकि चीनी मिलें बी-हैवी मोलेसिस से सीधे एथनॉल बना सकेंगी और यह सीधे गन्ने के रस से चीनी के उत्पादन के बिना संभव होगा। उसके चीनी की मांग और आपूर्ति के आधार पर उत्पादन किया जा सकेगा। लेकिन यह भी इस बात पर निर्भर है कि एथनॉल की पेट्रोल में ब्लैंडिंग की नीति और इसकी कीमत पर किस तरह से अमल होता है। पिछले दिनों इसके अनुभव बहुत बेहतर नहीं रहे हैं।
पैसा कहां से आएगा ?
सही मायने में पैकेज का आकार करीब चार हजार करोड़ रुपये बैठता है। वह भी तक जब इसमें एथनॉल उत्पादन की क्षमता स्थापित करने के लिए दी जा रही 1332 करोड़ रुपये की ब्याज छूूट को शामिल कर लिया। नहीं तो किसानों के बकाया भुगतान में सीधे मदद करने वाला पैकेज करीब 2700 करोड़ रुपये बैठता है जो कुल 22 हजार करोड़ रुपये के बकाया करीब 15 फीसदी ही है। अब सवाल है कि पैकेज के लिए पैसा कहां से आएगा। फिलहाल शुगर डेवलपमेंट फंड में करीब एक हजार करोड़ रुपये हैं। बाकी का जुगाड़ खाद्य मंत्रालय की सप्लीमेंटरी डिमांड से किया जा सकता है। हालांकि चीनी पर सेस लगाने का भी विकल्प है लेकिन पश्चिम बंगाल और केरल जीएसटी काउंसिल में इसका विरोध कर चुके हैं। उनका कहना है कि अगर चीनी पर सेस लग सकता है तो जूट किसानों के लिए जूट और रबर किसानों के लिए रबर पर भी सेस लगना चाहिए। सूत्रों के मुताबिक चीनी पर तीन रुपये सेस लगाने का प्रस्ताव है। फिलहाल इस मामले में अटार्नी जनरल की राय का इंतजार है। वैसे एसडीएफ के लिए चीनी पर 24 रुपये प्रति क्विटंल का सेस लगता था लेकिन जीएसटी लागू होने से सेस समाप्त हो गया है।
असल में चीनी है तो मीठी लेकिन गन्ना किसानों के लिए जो पैकेज घोषित किया गया है उसमें जलेबी की तरह कई घुमाव हैं। इसलिए पैकेज उतना सीधा और बड़ा नहीं है जितना दिखाया जा रहा है।