‘हलधर नाग’ कोसली भाषा में साहित्य सृजन करने वाले, ओडिशा राज्य के सुविख्यात, महान ‘लोककवि’ हैं जिन्हें साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट, महती योगदान के लिए,2016 में भारत सरकार की तरफ से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्मश्री’ ससम्मान प्रदान किया गया था।
आज की दिखावटी दुनिया में जहां असली जीवन मूल्यों और सुदृढ़ चरित्र की जगह ऊपरी चमक-दमक सर्वोपरि है, सिर्फ़ दौलत-शोहरत का बोलबाला है, वहां ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ कहावत के कोई मायने नहीं हैं। ऐसे में किसी महान पर अज्ञात इंसान को दिल्ली से बुलावा आए कि अपनी अद्वितीय, अद्भुत सृजनात्मकता के लिए उन्हें ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया जाना है जिसके लिए दिल्ली जाकर पुरस्कार ग्रहण करना है। पर वो इंसान अपनी असमर्थता जताते हुए कहें कि ‘साहब, मेरे पास दिल्ली आने के लिए पैसे नहीं हैं इसलिए कृपया ‘पद्मश्री’ पुरस्कार डाक से भिजवा दीजिए’ तो आत्ममुग्धता के इस भीषण, बनावटी दौर में शायद ही कोई विश्वास करे।
अत्यंत प्रतिभाशाली पर धन-दौलत की मोह-माया से कोसों दूर, विरले, निराले इंसान हलधर नाग, बनियान और सफेद धोती पहने, कंधे पर गमछा डाले, नंगे पांव जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से ‘पद्मश्री पुरस्कार’ ग्रहण करने पहुंचे थे तो उन्हें देखकर वहां उपस्थित प्रत्येक इंसान चकित रह गया था। तमाम खबरिया चैनलों को उत्सुकता हुई कि इतने उत्कृष्ट लोक कवि आखिर ऐसा सादा जीवन जीने को क्यों विवश हैं।
‘हलधर नाग’ सदैव सफेद धोती-बनियान, कंधे पर अंगोछा और नंगे पैर पेड़-पौधों, पालतू जानवरों के बीच विचरण करते, परिजनों से सुबह-शाम घिरे रहने वाले, धरती से जुड़े सहज-सरल लोककवि हैं। उनकी बीते समय की स्मृतियां अक्सर कविताओं के रूप में प्रकट होती हैं। अपने परिवेश से अत्यधिक प्रेम करने के कारण वो अपना घर छोड़कर कहीं नहीं जाते। वो मानते हैं कि ‘गांव से बाहर जाने का मतलब अपने समय से बाहर कदम रखना है।’ उनकी कविताएं उनके समाज की चौखट का कभी बंद ना होने वाला वो दरवाजा हैं जहां से उनके प्रशंसक उनकी दुनिया में प्रवेश पाते हैं।
हलधर नाग का जन्म 31 मार्च, 1950 को ओडिशा के संभलपुर जिले से लगभग ७६ किलोमीटर दूर, बरगढ़ जिले के घेंस गांव के गरीब परिवार में हुआ था। 10 वर्षीय कच्ची वय में पिता की मृत्यु होने के कारण तीसरी कक्षा में विद्यालय छोड़ना पड़ा। अल्प वय में जीवन की मिठास खो चुकने के बावजूद उन्होंने मिठाई की दुकान में बर्तन धोने का काम किया। दो साल बाद, एक प्राथमिक विद्यालय में १६ साल तक बतौर रसोईया खाना बनाने की नौकरी की। विद्यालय में काम करते हुए ही उन्होंने बैंक से संपर्क किया और छात्रों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने की छोटी सी दुकान खोलने के लिए १००० रुपये का ऋण लिया। उसी दुकान में पहली कविता ‘धोड़ो बारगाछ’ (बरगद का पुराना पेड़) का जन्म हुआ।
उनकी पहली कविता ‘धोड़ो बारगाछ’ के स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित होने के बाद उन्होंने कई कविताएं लिखीं जो प्रकाशित हुईं। उन्हें सम्मानित किया जाने लगा जिससे प्रोत्साहित होकर उनके लेखन में गतिशीलता आई। आस-पास के गांवों में जा-जाकर उन्होंने अपनी कविताएं सुनाईं और उन्हें लोगों की अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलीं। उनके अनोखे अंदाज वाली कविताओं और लोकगीत गायन के बेमिसाल तरीकों के कारण लोग उन्हें ‘लोक कवि रत्न’ के नाम से संबोधित करने लगे। हलधर की कविताओं को आलोचकों और प्रशंसकों से सराहना मिलने लगी।
हलधर १९९० से ओडिशा की लोक भाषा, ‘कोसली’ में मूल रूप से कविताएं लिख रहे हैं। उनका कविता पाठ सुनते समय मानो भीतर के कंकड़-पत्थर घुलने लगते हैं। वे अपने लेखन द्वारा समाज में छुपी बुराइयां खत्म करके अच्छे समाज का निर्माण करने के लिए आजीवन प्रयासरत रहे हैं। हलधर कभी विस्तार से अपनी कविताओं पर नहीं बोलते पर इतना अवश्य कहते हैं, ‘कविता समाज के लोगों तक संदेश पहुंचाने का सर्वोत्तम माध्यम है अतः कविता ही हमें बचाएगी। समाज का सच और झूठ जानने के लिए, कविता को रोकने-टोकने की बजाए उसे घर-घर पहुंचाना होगा।’
हलधर नाग के सृजनात्मक बूढ़े बरगद रूपी पेड़ के नीचे २० महाकाव्य और ५०० से ज्यादा कविताएं जड़ जमा चुकी हैं। हलधर नाग के मस्तिष्क में स्मृतियों का रचनात्मक समंदर अविरल गति से बहता है। प्रखर स्मृति के वरदान से समृद्ध वे बिना काव्य ग्रंथों के सहारे के अपनी कविताएं सुनाने के लिए विख्यात हैं। हलधर रचनाओं को कभी लिपिबद्ध नहीं करते। उनका सारा साहित्य उनके मस्तिष्क में समाहित है जो कविताओं के रूप में प्रस्फुटित होता है। अद्भुत प्रतिभा के धनी वे मंच पर बैठे-बैठे कविता बनाने में सिद्धहस्त हैं। वे प्रतिदिन तीन-चार कार्यक्रमों में भाग लेकर कविता पाठ करते हैं। हलधर नाग का सादा व्यक्तित्व बेहद प्रेरणास्पद है और उनकी जन्मजात प्रतिभा किसी किताबी ज्ञान की मोहताज नहीं है। उन्होंने साबित किया है कि समय कितना भी कठिन हो पर अगर व्यक्ति स्वयं पर विश्वास करके, अपने अंदर छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे सही दिशा देने में सक्षम है तो उसे प्रसिद्धि के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान होने से कोई नहीं रोक सकता है। स्वयं तीसरी कक्षा तक पढ़े हलधर की अद्वितीय प्रतिभा का चरमोत्कर्ष ये है कि कोसली भाषा में रची उनकी कविताएं साहित्य के कई विद्वानों के पीएचडी अनुसंधान का विषय हैं। उन्हें ३०० से अधिक संस्थानों ने सम्मानित किया है और संभलपुर विश्वविद्यालय ने इनके संपूर्ण लेखन को ‘हलधर ग्रंथावली -2’ नामक ग्रंथ के रूप में अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया है।
उनकी प्रिय कविता है ‘पांच अमरूत’ (पांच अमृत) जिसका हिंदी अनुवाद है, ‘अमृत झरे/ सात समंदरों से/ आकाश के चांद से/ मां की छाती से/ महत नीति की प्रवाह से/ कवि की कलम से।
पद्मश्री मिलने से बहुत पहले, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी द्वारा उन्हें कलाकार भत्ता प्रदान किया जा रहा था। उड़ीसा सरकार ने उन्हें जमीन भी दी है जिसपर बरगढ़ के एक डाक्टर ने अपने खर्च से मकान बनवा दिया है। वर्तमान में उन्हें सरकार की ओर से साढ़े अट्ठारह हज़ार रुपये का मासिक भत्ता मिलता है। पद्मश्री से सम्मानित होने के बावजूद हलधर के लिए आज भी अपने क्षेत्र के लोगों से प्राप्त प्रेम सर्वाधिक महत्वपूर्ण सम्मान है। सदा नंगे पैर रहने वाले हलधर अपनी धरती, अपनी माटी और अपने लोगों से हमेशा जुड़े रहते हैं। वे कहते हैं कि ‘सबका इतना प्रेम करना मुझे बहुत अच्छा लगता है और यही मेरा परिवार है।’ उनकी पत्नी मालती और बेटी नंदिनी के अलावा उनके क्षेत्र के सैंकड़ों लोग, जिनके सुख-दुख में वे सम्मिलित होते हैं और उनसे कविताएं साझा करते हैं, उनके परिवार का हिस्सा हैं। हलधर के लिए उनकी कविताओं में रस-सुगन्ध और स्पर्श लाने वाला परिवेश और लोग ही उनका परिवार हैं। हलधर की कविताएं विफलताओं को समझने के कारण ही सफल हैं और शुद्ध भावों की वजह से लोग उनकी कविताओं के दीवाने हैं। बकौल उनके, आज क्या लिखा जा रहा है, इसपर बात होनी चाहिए। उनके अनुसार ये आरोप गलत है कि नई पीढ़ी का साहित्य से कोई लेना-देना नहीं। युवाओं को कोसली भाषा में कविताएं रचने में अत्यधिक दिलचस्पी लेते देखकर वे बहुत प्रसन्न होते हैं।
हलधर नाग ने संबलपुरी-कोसली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए बेहिसाब संघर्ष किया है और वे इसकी सफलता को लेकर आशंकित नहीं हैं। वे फिल्में नहीं देखते पर हिंदी फिल्म “कौन कितने पानी में” के लिए उन्होंने एक कोसली नृत्य की रचना की है। हलधर वर्तमान में उड़ीसा के ख्याति प्राप्त कवि गंगाधर मेहर पर महाकाव्य लिख रहे हैं। गंगाधर मेहर से तुलना करने पर हलधर सादगी के साथ तुलना को खारिज करते हुए गंगाधर मेहर को महान कवि बताते हुए स्वयं को बहुत छोटा मानते हैं। हलधर बेशक स्वयं को छोटा मानें पर उनके चाहने वाले उनको नितांत अपना मानते हैं। हलधर का प्रभाव बगीचों, खेतों, सड़कों, घास-फूल-पत्तियों, जानवरों और लोगों को स्पर्श करके निकलने वाली धूप की तरह है। वे लोगों के लिए अंधकार में प्रकाश की तरह हैं। अपनेपन से सराबोर ऐसे ही परिवेश में जन्म लेने के कारण उनकी कविताओं में लोक लुभावन, सर्वथा अलग मनोहारी भाव होते हैं। उनकी कविताओं के विषय प्रकृति, धर्म, पौराणिक कथाएं, उत्पीड़न आदि के अलावा अपने आस-पास के दैनंदिन जीवन से लिए गए सामाजिक मुद्दे होते हैं। उनका मानना है कि हर कोई कवि होता है पर कुछ विशिष्ट लोगों के पास ही शब्दों को आकार देने की कला होती है। उनके अनुसार कविताओं में वास्तविक जीवन से मेल और लोगों के लिए एक संदेश होना चाहिए।
हलधर ऐसे हर लेखक या कवि की ओछी मानसिकता से निराश-हताश हैं जो अपनी रचनाओं को चर्चित करने के लिए अश्लीलता या विवाद का सहारा लेते हैं। उनके मतानुसार किसी भी साहित्यकार का पहले साधक होना सर्वोपरि होना चाहिए तभी उसके भाव जनमानस के हृदयों में उतरेंगे, तदुपरांत उनकी रचनाओं की चर्चा स्वयमेव होगी। ये भी विडंबना है कि इतने महान कवि को अक्सर सोशल मीडिया में पानी-भात खाते या चने बेचते दिखाने वाली पोस्ट्स वायरल करके बदनाम किया जाता है। कभी-कभार उनकी आवाज की नकल करके पोस्ट भी अपलोड किए जाते हैं। उन्हें इस बात की बहुत पीड़ा होती है कि आजकल सोशल मीडिया में झूठे पोस्ट्स का इतना बोलबाला क्यों है।
उड़िया साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित प्रकृति के अनूठे लोककवि ‘हलधर नाग’ को उनके अवतरण दिवस पर हृदयगत मंगलमयी शुभकामनाएं।