कोई शहर या तो अपनी समृद्ध संस्कृति की वजह नक्शे पर होता है या वैभवशाली इतिहास की वजह से। ये दोनों ही बातें सैलानियों के लिए चुंबक की तरह काम करती हैं और घुमंतू ऐसे शहरों की ओर खिंचे चले आते हैं। शिमला ऐसा ही जीता जागता शहर है, चप्पे-चप्पे पर कहानियां बिखरी हैं। दिलचस्प कहानियां जो रूमानी भी हैं और रहस्यमयी भी।
पत्रकार और हिमाचल लोक सेवा आयोग की पूर्व सदस्य रचना गुप्ता ने ऐसी ही कहानियों, इतिहास को समेटते हुए शिमला शहर को शहर की परिभाषा से निकाल कर सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित कर दिया है। रचना गुप्ता की देवधरा के बाद यह दूसरी पुस्तक है। दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले में शिमला शीर्षक से लोकार्पित हुई यह पुस्तक कई मायनों में बहुत अलग है।
लोकार्पण करने वालों में वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, जागरण ऑनलाइन से जुड़े कमलेश रघुवंशी, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के निदेशक युवराज मलिक ने बताया कि यह पुस्तक किन मायनों में अलग है।
वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने सबसे पहले जिज्ञासा की बात की। उन्होंने कहा कि किसी सड़क, पहाड़ या इमारत का कोई नाम किस वजह से पड़ा, यह सहज जिज्ञासा रचना को इस किताब की ओर ले गई। यह पुस्तक उसी जिज्ञासा के उत्तर खोजने का परिणाम है। यह पुस्तक शिमला को नए नजरिए से देखने को बाध्य करती है।
राहुल देव ने कहा कि हर शहर की धार्मिक, पौराणिक या व्यावसायिक पहचान होती है, ऐसे ही शिमला की पहचान पर्यटन है और इस पुस्तक को हर पर्यटक को वहां जाने से पहले पढ़ना चाहिए। स्थानीय इतिहास पर अंग्रेजी में तो बहुत काम हुआ है, लेकिन हिंदी में ऐसा कम देखने को मिलता है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) के निदेशक युवराज मलिक ने कहा कि लेखिका ने कम शब्दों में शिमला के इतिहास को समेटा है। यह पुस्तक भले ही शिमला के इतिहास पर बात करती हो लेकिन इसे किस्से की शैली में लिखा गया है, जो इसे रोचक बनाता है। उन्होंने विशेष तौर पर पुस्तक के संपादक दीपक गुप्ता का धन्यवाद दिया। मलिक ने कहा कि एक संपादक की पुस्तक को संवार सकता है और दीपक गुप्ता ने यह काम बखूबी किया है।
कमलेश रघुवंशी ने शिमला पुस्तक की इस खूबी की ओर ध्यान दिलाया कि यह पुस्तक 18वीं शताब्दी से लेकर आज के दौर तक हर पहलू पर रोशनी डालती है। रचना ने इस शहर को अलग ढंग से देखा और उस पर लिखा इसके लिए वे तारीफ की पात्र हैं।
रचना गुप्ता मूलतः पत्रकार रही हैं। अपने लेखकीय उद्बोधन में उन्होंने कहा भी कि खबरें समय के साथ गुम हो जाती हैं, जबकि किताबों की उम्र बहुत लंबी होती है। शिमला में पैदा होने, वहीं पढ़ाई-लिखाई होने से शहर को पहचानती थी लेकिन किताब लिखने के बाद इसे समझने लगी हूं। मैंने यह बताने की कोशिश की है कि शिमला महज टूरिस्ट प्लेस नहीं है।
पुस्तक में कई ऐसे संदर्भ हैं, जिसे पढ़ कर ही इसका आनंद लिया जा सकता है। अंग्रेजी राज से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन तक, ए. ओ. ह्यूम से लेकर जनरल डायर के शिमला से संबंध तक, बहुत सी रोचक दास्तानें पाठको को कुछ नया देने को बेताब है। जैसा कि राहुल देव ने कहा, शिमला चंडीगढ़ की तरह कृत्रिम नहीं, जैविक शहर है।
जैविक शहर की यात्रा पर सभी पाठको का स्वागत है।
शिमला
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
रचना गुप्ता