जाने-माने साहित्यकार सुरेश सलिल की पहली पुण्यतिथि पर 22 फरवरी 2024 को उन्नाव की विश्वंभर दयालु त्रिपाठी राजकीय लाइब्रेरी में ‘स्मरण सुरेश सलिल’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कवि, चिंतक, समीक्षक, अनुवादक, संपादक और ग़ज़लकार सुरेश सलिल का जन्म 19 जून 1942 को उन्नाव के गांव गंगादासपुर में हुआ था।
बरेली से आए कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सुधीर विद्यार्थी ने कहा, ‘‘जब भी किसी तथ्य की प्रामाणिकता की बात होती थी, मैं सलिल जी से संपर्क करता था। आज उनके बाद कोई ऐसा व्यक्ति हिंदी में दिखाई नहीं देता जिससे मैं पूछताछ कर सकूं या अपनी जिज्ञासा का समाधान पा सकूं।’’ क्रांतिकारियों के जीवन पर विपुल लेखन कर चुके सुधीर विद्यार्थी ने याद किया, “मेरी किताब ‘अशफाक उल्ला और उनका युग’ की समीक्षा सलिलजी ने जनसत्ता में की, जिसका शीर्षक आज भी बार-बार मन में कौंध जाता है, ‘कब तक ना खबर लेंगे य़ाराने वतन तेरी।’ यह मेरी पहली किताब थी, जिस पर सलिलजी की सार्थक मूल्यांकन परक टिप्पणी ने मेरे काम को इस अर्थ में मूल्यवान बना दिया कि काकोरी के शहीदों में रामप्रसाद बिस्मिल, भूषण सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और उनके बीच अशफाकउल्ला की साझी शहादत जिस तरह साझी विरासत के रूप में दर्ज हुई है, वह उस इतिहास का विशिष्ट कालखंड है।
सुरेश सलिल के मित्र और वरिष्ठ कवि कमल किशोर श्रमिक ने उन्हें याद करते हुए कहा कि सलिल जी और मैंने लंबा जीवन साथ जिया है। दिल्ली में हम दोनों के ही सामने दोहरे सघर्ष थे। रोजी-रोटी के साथ अपने लक्ष्यों, मूल्यों और सिद्धांतों का भी संघर्ष था। हम अपने सिद्धांतों से गिरना भी नहीं चाहते थे। लेकिन पैसों के लिए ऐसे-ऐसे पापड़ बेले कि क्या कहूं। हालांकि उनके कृतित्व का सही मूल्यांकन अभी नहीं हो पाया है, लेकिन एक बात का सबसे बड़ा संतोष है कि उन्होंने साहित्यकारों के बीच अपना स्थान अपने ही मूल्यों पर बना लिया। सुरेश सलिल को सच्ची श्रद्धांजलि तो यही होगी कि उनके साहित्य को पढ़ा जाए और उनके काम पर शोध हो।
इससे पहले अपने स्वागत भाषण में लेखिका और उन्नाव लाइब्रेरी की निवर्तमान अध्यक्ष मृदुला पंडित ने याद किया कि सलिल जी जिला पुस्तकालय के हर पुस्तक महोत्सव में सम्मिलित होते थे। वे चाहते थे कि उन्नाव के साहित्य और संस्कृतिकर्मी विश्व साहित्य को जानें और उससे जुड़ें, ताकि उनकी लेखनी और भी धारदार हो। उनकी कई साहित्यिक योजनाएं थीं, लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण सब टलती रहीं। उन्होंने कहा कि उनके जीवन के प्रति उत्साह ने हम सबमें भी उत्साह का संचार बनाए रखा।
मुंबई से आए रंगकर्मी और सिने लेखक विजय पंडित ने सलिल जी द्वारा विश्व की अलग-अलग भाषाओं की रचनाओं के हिंदी अनुवाद और उनके बहुविध लेखन को याद किया। उन्होंने सुरेश सलिल को एक ‘नास्तिक संत’ की संज्ञा देते हुए उनके साथ गुजरे कई अंतरंग क्षणों की चर्चा की।
लखनऊ से आईं प्रोफेसर रश्मि दीक्षित ने भावुकता के साथ सुरेश सलिल के साथ अपनी यादों को बांटा। उन्होंने सलिल जी द्वारा उनको लिखे हुए एक पत्र के उन मार्मिक अंशों को पढ़ा जिनमें उन्होंने एक कविता के माध्यम से उन्नाव को याद किया था।
सुरेश सलिल के पुत्र संगम पांडेय ने कहा कि यद्यपि ज्यादातर उन्हें कविता और काव्यानुवाद के लिए जाना जाता है, पर उनकी जिज्ञासाओं और जानकारियों का दायरा धर्म, दर्शन, पुरातत्त्व, इतिहास, लोक कलाओं, सिनेमा और पाश्चात्य साहित्य आदि तक फैला हुआ था। उनकी जानकारियां कई बार आश्चर्यचकित कर देती थीं।
मुख्य अतिथि उप जिलाधिकारी नम्रता सिंह ने इस अवसर पर लाइब्रेरी में ‘सुरेश सलिल कक्ष’ का फीता काट कर उद्घाटन किया, जिसमें उनके परिवार द्वारा उनके व्यक्तिगत संग्रह से भेंट में दी गई करीब डेढ़ हजार दुर्लभ व महत्वपूर्ण पुस्तकें रखी गई हैं। उन्होंने कहा कि मेरे लिए प्रथम ‘स्मरण सुरेश सलिल’ आयोजन की साक्षी होना एक सुखद अनुभूति है। मेरी कोशिश रहेगी कि समय-समय पर पुस्तकालय आती रहूं ताकि यहां की समस्याओं और व्यवस्थाओं पर ध्यान दे सकूं।
अन्य वक्ताओं में कवयित्री और सोशल एक्टिविस्ट रेणु शुक्ल ने कहा कि विश्व कविता को हिंदी पाठकों से परिचित कराने का बड़ा श्रेय सलिल जी को जाता है। उनके द्वारा किए गए विश्व साहित्य के अनुवाद का नतीजा है कि मुझे नाजिम हिकमत, पाब्लो नेरुदा आदि को पढ़ने का मौका मिला। सुरेश सलिल के अनुज और पत्रकार-कवि ओम पीयूष ने इस मौके पर उनसे जुड़े कुछ रोचक संस्मरण सुनाए, जबकि जनपद के युवा समाजसेवी मनीष सेंगर ने उन्नाव के संदर्भ में दिवंगत साहित्यकार के साहित्यिक अवदान की चर्चा की। कार्यक्रम का संचालक कर रहे पूर्व प्राचार्य और साहित्यकार डॉ. राम नरेश ने उन्नाव जनपद के साहित्य इतिहास की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि सलिल जी हमारे जनपद ही नहीं बल्कि पूरे देश की विरासत हैं। अंत में अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कवि महेश चंद्र मिश्र विधु ने उन्नाव और जिला पुस्तकालय के साथ सलिल जी के कई दशकों के रिश्ते की पुष्टि करते हुए उनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व की प्रशंसा की। उनका कहना था कि सलिल जी विश्वस्तरीय अनुवादक और लेखक के रूप में सदैव साहित्य जगत में याद किए जाएंगे।
कार्यक्रम का आरंभ जनपद के प्रथम सांसद और स्वतंत्रता सेनानी विश्वम्भर दयालु त्रिपाठी और सुरेश सलिल के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। तत्पश्चात पुस्तकालय की ओर से समस्त वक्ताओं और अतिथियों को अंग वस्त्र और प्रतीक चिहन देकर स्वागत किया गया।
कार्यक्रम में सुरेश सलिल की स्मृति में ओम पीयूष द्वारा संपादित पुस्तक ‘यादों की खिड़कियों से’ और रवि कुमार ‘रवि’ द्वारा अनूदित-संपादित पुस्तक ‘उन्नाव का इतिहास’ का लोकार्पण भी मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। ‘उन्नाव का इतिहास’ 1862 में अंग्रेज अधिकारी चार्ल्स अल्फ्रेड इलियट द्वारा लिखित ‘दि क्रॉनिकल्स ऑफ ओनाव, ए डिस्ट्रिक्ट इन औध’ का अनुवाद है। रविकुमार ‘रवि’ ने मूल पुस्तक के महत्व और इसके अनुवाद की प्रक्रिया के बारे में बताया।
रंग संस्था ‘अनुष्ठान’ के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में अतिथियों के अलावा पिछले कई दशकों से पुस्तकालय से जुड़े सक्रिय सहयोगियों- श्रीमती सुरभि श्रीवास्तव, डॉ सुधीर शुक्ला, डॉ मनीष सिंह सेंगर, रंगकर्मी जब्बार अकरम, डॉ रेनू शुक्ला, नीता, मोहित को ‘विभूति सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
अंत में पुस्तकालय की अध्यक्ष सुरभि श्रीवास्तव ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि उनकी कोशिश होगी कि इस तरह का आयोजन हर वर्ष 22 फरवरी को नियमित रूप से किया जाए।