इस दौर में जब इतिहास के पन्नों से महापुरुषों और महान व्यक्तियों को फिर से पाठको के समझ रखने का सिलसिला चल पड़ा है, तब शिवाजी पर बात करना भी प्रासंगिक ही लगता है। शिवाजी को भारतीय इतिहास के सबसे चमकदार सितारों में शुमार किया जाता है। वर्षों पहले शिवाजी सावंत ने छावा लिख कर हिंदी पाठको तक शिवाजी महाराजा को पाठको के बीच पहुंचाया था। अब उपन्यासकार विश्वास पाटील ने छत्रपति शिवाजी को अलग और वृहद स्तर पर एक बार फिर इतिहास से निकाल कर लोगों के बीच पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। शिवाजी महाराज पर उनकी एक उपन्यास श्रृंखला प्रकाशित होने जा रही है। विश्वास पाटील मराठी जगत के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं। जल्द ही ‘शिवाजीः महासम्राट’ नाम की इस श्रृंखला का पहला खंड मराठी में प्रकाशित होगा। जबकि कुछ ही अंतराल के बाद दूसरा खंड आ जाएगा। विश्वास पाटील को अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों मिले हैं। इस उपन्यास के लिए उन्होंने लंबा वक्त लिया और विस्तृत शोध की। उपन्यास श्रृंखला की खास बात यह है कि मराठी के बाद यह उपन्यास हिंदी में भी प्रकाशित होगा।
अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच हुई पानीपत की तीसरी लड़ाई पर ‘पानीपत’ और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर आधारित ‘महानायक’ जैसे वृहद उपन्यासों के बाद पाटील अब ‘शिवाजीः महासम्राट’ लिख रहे हैं।
1991 में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ‘पानीपत’ पढ़कर इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ से इसे हिंदी में तत्काल अनुदित करा के प्रकाशित करने को कहा। उन दिनों राव भारतीय ज्ञानपीठ के अध्यक्ष थे।
पिछले कुछ वर्षों से शिवाजी के जीवन पर शोध कर रहे पाटिल ने अपने शोध के लिए आगरा, तमिलनाडु, कर्नाटक से लेकर पूरे महाराष्ट्र में शिवाजी के 240 किलों की यात्रा की है। इस उपन्यास श्रृंखला में विस्तृत शोध के कारण, शिवाजी के अभी तक अनदेखे-अप्रकाशित तथ्य विश्वसनीय तरीके और नए दृष्टिकोण के साथ सामने आएंगे।
‘शिवाजीः महासम्राट’ का पहला खंड ‘झंझावात’ (द वर्लविंड) 450 पृष्ठों का है जबकि दूसरा ‘रणखैंदल’ (ग्रिम बैटलफील्ड) लगभग 500 पृष्ठों का है। मराठी में मेहता पब्लिशिंग हाउस तो हिंदी में राजकमल प्रकाशन से यह सीरीज आएगी। नदीम खान अंग्रेजी में इसका अनुवाद कर रहे हैं। ‘शिवाजीः महासम्राट’ देश की सबसे बड़ी उपन्यास श्रृंखला होगी।
मराठी में लिखने के बावजूद पाटील तमाम भारतीय भाषाओं समेत अंग्रेजी में भी लोकप्रिय हैं। ‘पानीपत’ और ‘महानायक’ के हिंदी-अंग्रेजी समेत कई भारतीय भाषाओं में दर्जनों संस्करण प्रकाशित हुए हैं। मात्र 32 वर्ष की आयु में विश्वास पाटील को उनके उपन्यास ‘झाड़ाझड़ती’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है। बांध निर्माण से प्रभावित होने वाले लोगों की दुर्दशा इसमें बखूबी बयान की गई है। हाल में उन्हें असम के प्रतिष्ठित इंदिरा गोस्वामी नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया है। पिछले दिनों से मराठी फिल्म ‘चंद्रमुखी’ को लेकर चर्चा में थे। यह फिल्म पाटील के चर्चित राजनीतिक-सांस्कृतिक उपन्यास ‘चंद्रमुखी’ पर आधारित है।