भारत के विभाजन के बाद जब उर्दू के मशहूर शायर जोश मलीहाबादी पाकिस्तान पहुंचे तो शुरुआती दिनों में ही उन्हें यह एहसास हो गया कि यह नया मुल्क, उन्हें कभी भी अपना नहीं बना पाएगा। अक्सर जोश साहब की मुलाक़ात जब लोकल शायरों से होती तो उन्हें यह एहसास कराया जाता कि वह हिजरत से आए हैं, पराए मुल्क से आए हैं, यह मुल्क उनका नहीं है, वे महाजिर है, शरणार्थी हैं। इसका ही एक क़िस्सा मशहूर है।
एक बार जोश साहब की मुलाक़ात पाकिस्तान के किसी लोकल शायर से हुई तो उसने जोश साहब से कहा " आपके मुल्क में कोई फल है जो हमारे अनार को टक्कर दे सके ? "। जोश साहब ने फ़ौरन जवाब दिया " दसहरी आम "। पाकिस्तानी शायर ने फिर प्रश्न किया " और जो अंगूर को टक्कर दे सके ? "। जोश साहब ने जवाब दिया " सफेदा आम "। पाकिस्तानी शायर जोश साहब को नीचा दिखाना चाहता था। वह जब भी किसी फल का नाम लेता, जोश साहब जवाब में आम की ही कोई क़िस्म बता देते। आख़िर में पाकिस्तानी शायर खीझ उठा और बोला " आपके मुल्क में आम के सिवा और कोई फल पैदा नहीं होता ? "। इस पर जोश मुस्कुराए और बोले " मियां, पहले आम की सभी क़िस्म का चर्चा हो जाए तब और फलों का चर्चा करता हूं "। कुछ ऐसे ही हाज़िर जवाब शायर थे जोश मलीहाबादी।