गौरतलब है कि निदान के लिए आधुनिक तकनीकों व मैनेजमेंट के बावजूद कैंसर समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। साल में 10 लाख से ज्यादा नए मामले और 6 लाख से ज्यादा मृत्यु के आंकड़े रिपोर्ट होने1 की वजह से भारत में कैंसर का बोझ सबसे ज्यादा है। भारत में 70 फीसदी कैंसर से होने वाली मृत्यु का कारण बीमारी का देरी से पता चलना है। अमेरिका में 50 फीसदी मृत्यु 70 साल की उम्र से ज्यादा लोगों की होती है जबकि भारत में 71 फीसदी मृत्यु 30 से 69 साल की उम्र में हो जाती है। सबसे अफसोसजनक बात ये है कि दुनियाभर की 0.5 फीसदी औसतन की तुलना में 15 फीसदी रोगी बच्चे है।
बीएल कपूर अस्पताल के जाने माने ओंकोलोजिस्ट डाॅ अमित अग्रवाल कहते हैं कि, ‘‘ लोगों में कैंसर की जानकारी की कमी होने के कारण वह ‘कैंसर‘ नाम सुनते ही डर जाते है। कुछ लोग बीमारी को छिपाते है तो कुछ लोग पारम्परिक दवाइयों से खुद का इलाज करने की कोशिश करते है जिससे सही इलाज करने में देरी हो जाती है। कई क्षेत्रों में तो कैंसर के रोगी को छूने तक से परहेज किया जाता है और उन्हें अपने ही करीबी रिश्तेदारों द्वारा अकेला छोड़ दिया जाता है। कैंसर का पता चलने के बाद लोग सोचते है कि रोगी जल्द ही मर जाएंगा लेकिन डाॅक्टर के सही इलाज और परिवार के सहयोग से रोगी बेहतर जिंदगी बिता सकते है।
एम्स के पूर्व डीन, रेडियोथेरेपी एवं आॅन्कोलाॅजी डाॅ पी के जुल्का कहते है, ‘‘ किसी को भी कैंसर का निदान अकेले नहीं करना चाहिए। अपनी भावनाओं को बताना बहुत जरूरी है। इलाज के दौरान प्रोफेशनल कांउसलर से इलाज की रणनीतियों पर बात करना काफी फायदेमंद साबित होता है। कुछ रोगी दृश्य तकनीकों के माध्यम से कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने की कल्पना करते है जिससे उन्हें अपनी परेशानियों को बेहतर तरीके से जानने का मौका मिलता है। अगर किसी तरह का भी तरह के साइड इफैक्ट्स का अनुभव हो रहा है तो डाॅक्टर को बताएं जिससे डाॅक्टर आपकी समस्या को दूर कर सके या उसे मैनेज कर सके।‘‘