हालांकि सरोगेसी या कहें किराए की कोख को लेकर दुनिया भर में भारत की एक नकारात्मक छवि बनाई गई है, जबकि सच तो यह है कि यहां 5 फीसदी से भी कम मामले सरोगेसी के होते हैं बाकी सामान्य आईवीएफ के होते हैं। लेकिन अब पूरी दुनिया के सामने इस छवि को बदलने का मौका भारत को मिला है क्योंकि प्रजनन और फर्टिलिटी से संबंधित 22वीं आईएफएफएस विश्व कांग्रेस, जो इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फर्टिलिटी सोसायटीज (आईएफएफएस) की पहल है, का आयोजन भारत में होना तय हो गया है।
इस कांग्रेस में आईएफएफएस के 70 सदस्य देशों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। भारत को पहली बार इस कांग्रेस को आयोजित करने का मौका मिला है और उसने जापान, सिंगापुर और आस्ट्रेलिया जैसे देशों को पछाड़कर यह दावेदारी हासिल की है।
दिल्ली के जाने-माने आईवीएफ विशेषज्ञ और इंडियन फर्टिलिटी सोसायटी (आईएफएस) के संस्थापक डॉ. कुलदीप जैन के अनुसार यह पांच दिवसीय कार्यक्रम सितंबर, 2016 में आयोजित होगा। इस दौरान भारतीय डॉक्टरों को पूरी दुनिया के सामने यह साबित करने का मंच मिलेगा कि भारत असिस्टेड रिप्रोडक्शन तकनीक या कहें बाह्य सहायता से प्रजनन की तकनीक (एआरटी) के क्षेत्र में सबसे आगे है, जिसमें इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) भी शामिल है। हम यह भी बता पाएंगे कि भारतीय विशेषज्ञ इस क्षेत्र में कितना बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। इस कार्यक्रम के जरिये भारत के चिकित्सकों को इनफर्टिलिटी या बांझपन के इलाज के संबंध में दुनिया के अलग-अलग देशों में आ रही नई और आधुनिक तकनीकों के बारे में जानने और प्रशिक्षण हासिल करने का अवसर भी मिलेगा। डॉ. जैन इस कांग्रेस के आयोजन सचिव भी हैं। देश में युवा दंपतियों के बीच निःसंतानता की स्थिति बढ़ने के साथ-साथ कृत्रिम गर्भाधान के तरीकों का भी जोरदार प्रसार हुआ है। किसी भी शहर में चले जाइए एक दो आईवीएफ सेंटर दिख ही जाएंगे। आईवीएफ कृत्रिम गर्भाधान की सबसे प्रभावी विधि है और किसी जमाने में बेहद महंगी होने के साथ-साथ इसके विशेषज्ञों की भी देश में भारी कमी थी मगर अब स्थिति में आमूल-चूल बदलाव आ चुका है। अब नई तकनीकों के साथ-साथ विशेषज्ञों की तादाद भी बढ़ी है। मगर एक चीज जो अब भी लोगों को इस विधि के प्रति सशंकित करती है वह है एकरूपता की कमी, क्योकि इस उपचार को अबतक मानकीकृत नहीं किया जा सका है। किसी एक सेंटर में मरीज को कुछ जानकारी दी जाती है तो दूसरे सेंटर में कुछ और। किसी सेंटर में फीस कुछ होती है तो दूसरे सेंटर में कुछ और। इसके कारण इलाज के लिए जाने वाले मरीजों में असमंजस पैदा होना आम बात है। छोटे शहरों में आईवीएफ करने वाले चिकित्सकों को इस तकनीक के क्षेत्र में आ रहे बदलावों की पूरी जानकारी भी नहीं होती है। इस स्थिति को बदलने के लिए प्रयास किया जा रहा है कि पूरी प्रक्रिया का पूरे देश में एक ही मानक हो। इससे फीस को नियंत्रण में रखने में भी कामयाबी मिल सकती है। हालांकि फीस के मामले में कुलदीप जैन की मांग है कि इनफर्टिलिटी को बीमारी मानते हुए बीमा कंपनियां इसके लिए भी बीमा कवर मुहैया कराएं। उनका कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन 10 साल पहले ही इसे बीमारी घोषित कर चुका है फिर भी भारत में बीमा कंपनियां आगे आकर इसका खर्च उठाने को तैयार नहीं हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उनका कहना है कि भले ही कंपनियां पूरा खर्च न उठाएं मगर यदि एक हिस्से का बोझ भी बीमा से पूरा हो जाए तो मरीजों को बहुत राहत मिल सकती है। बीमा कंपनियां चाहें तो इसके लिए डॉक्टरों के संगठनों के साथ बातचीत करके कोई बीच का रास्ता निकाल सकती हैं। लेकिन इतना तय है कि यदि ऐसा कुछ होता है तो देश में निःसंतानता की स्थिति से निपटने में भारी मदद मिलेगी।
यूं तो आईवीएफ तकनीक में सफलता का प्रतिशत आज से दस वर्ष पहले के मुकाबले बहुत बढ़ गया है, फिर भी सौ फीसदी सफलता की गारंटी कोई नहीं कर सकता। डॉ. जैन के अनुसार भारत में सामान्यत: हम किसी निःसंतान दंपति के लिए तीन बार आईवीएफ प्रक्रिया करते हैं। अगर दंपति को कोई विशेष समस्या न हो और महिला की उम्र 35 वर्ष के अंदर हो तो तीनों चांस मिलाकर सफलता का प्रतिशत 70 से अधिक हो सकता है। यहां तक कि पहली बार में 40 से 45 फीसदी तक सफलता हासिल हो जाती है। लेकिन महिलाओं की उम्र बढ़ने के साथ सफलता का प्रतिशत कम हो जाता है। अगर महिलाएं 40 वर्ष की उम्र के बाद आईवीएफ के जरिये संतान प्राप्त करने की कोशिश करती हैं तो मुश्किल होती है। डॉ. जैन के अनुसार आईएफएस और आईएसएआर आईएफएफएस विश्व कांग्रेस को भारत में आयोजित कराने के लिए लंबे समय से प्रयास कर रहे थे, जो अब संभव हो गया है। इस संस्था के सदस्यों में तकरीबन 70 देशों की नेशनल फर्टिलिटी सोसायटी और सोसायटीज ऑफ रिप्रोडक्टिव मेडिसिन शामिल हैं। यह कांग्रेस हर तीन वर्ष पर किसी एक सदस्य देश में आयोजित की जाती है और इस बार यह नई दिल्ली में आयोजित होगी।
इस कांग्रेस के एक अन्य आयोजन सचिव और आईएसएआर के वर्तमान अध्यक्ष और मुंबई के आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. ऋषिकेश पई के अनुसार, इस कांग्रेस की थीम है, 'रीचिंग टु अनरीच्ड।’ इसका उद्देश्य है आधुनिक तकनीकों पर चर्चा प्रशिक्षण के दायरे को बढ़ाना और देश के हर हिस्से के विशेषज्ञों को इसमें हिस्सा लेने का अवसर मुहैया कराना है। पई कहते हैं, देश के सभी डॉक्टरों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की बैठकों में हिस्सा लेने का अवसर नहीं मिल पाता है। ग्रामीण इलाकों और कस्बों में प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर समय के साथ क्षेत्र में होने वाली सारी गतिविधियों से अवगत नहीं हो पाते और उन्हें वैज्ञानिक प्रगति और क्लीनिकल एप्लिकेशन के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। इस कांग्रेस के माध्यम से देश के अधिक से अधिक डॉक्टरों को अपनी जानकारी बढ़ाने का अवसर मिलेगा क्योंकि यहां उनके सामने दुनिया भर के सुपर विशेषज्ञ मौजूद होंगे। एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के साथ काम करते हुए दुनिया भर की बेहतरीन प्रैक्टिस के बारे में जानने का मौका मिलेगा और फर्टिलिटी संबंधी भारत के परिदृश्य को और बेहतर बनाया जा सकेगा।
इन डॉक्टरों को उम्मीद है कि इस कार्यक्रम से देश में प्रजनन और फर्टिलिटी के क्षेत्र में बुनियादी शोध को भी बढ़ावा मिलेगा और इससे सभी पहलुओं के बारे में जानकारी का स्तर बढ़ेगा। खासकर आईवीएफ इलाज के लिए एक मानक तैयार करने में इससे बड़ी मदद मिल सकती है। प्रजनन और फर्टिलिटी से जुड़ी विश्व संस्था आईएफएफएस विश्व स्वास्थ्य संगठन से मान्यता प्राप्त संगठन है और वह भारत की संस्था आईएफएस और आईएसएआर के साथ मिलकर देश में आईवीएफ के लिए एक मानक स्थापित करने और नए नियम व दिशानिर्देश तय करने का प्रयास भी करेगी। खासकर आईवीएफ इलाज को बीमा कवर में लाने का प्रयास भी किया जाएगा ताकि मरीजों पर इलाज का बोझ कम हो।