राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16) के आंकड़ों के तहत 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया है। ये आंकड़े दिखाते हैं कि कई राज्याें में तो निजी अस्पतालों और सरकारी केंद्रों में यह अंतर बहुत ज्यादा है।
शहरी त्रिपुरा के निजी अस्पतालों में 87.1 प्रतिशत शिशुओं का जन्म आपरेशन के जरिए हुआ जबकि सरकारी केंद्रों में सीजेरियन डिलीवरी के मामलों की संख्या कुल मामलों की 36.4 प्रतिशत थी। बिहार के सरकारी अस्पतालों में महज पांच प्रतिशत डिलीवरी सीजेरियन विभाग में हुईं जबकि वहीं निजी अस्पतालों में यह प्रतिशत 37.1 रहा।
पश्चिम बंगाल के निजी अस्पतालों में 74.7 प्रतिशत डिलीवरी के मामले सीजेरियन रहे जबकि सरकारी केंद्रों में यह 28.1 प्रतिशत ही था। शहरी आंध्रप्रदेश में निजी स्वास्थ्य केंद्रों के लिए यह आंकड़ा 60.9 प्रतिशत का था जबकि सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में यह 31 प्रतिशत का था। तेलंगाना के निजी अस्पतालों में 74.8 प्रतिशत डिलीवरीज सीजेरियन हुईं और सरकारी केंद्रों में इन मामलों का प्रतिशत 42.2 था।
सरकारी और निजी अस्पतालों में सीजेरियन डिलीवरीज की संख्या में इजाफा हुआ है। तेलंगाना में यह सबसे ज्यादा 63.2 प्रतिशत है। वहीं त्रिापुरा में यह 45.8 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 36.6 प्रतिशत, तमिलनाडु में 36.1 प्रतिशत और आंध्रप्रदेश में 48.4 प्रतिशत है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के अनुसार, भारत में जन्म के केवल 10 से 15 प्रतिशत मामलों में ही सर्जरी संबंधी हस्तक्षेप की जरूरत होती है। लेकिन प्रसूति विज्ञानियों का कहना है कि कुछ गर्भावस्थाओं में इतनी जटिलताएं होती हैं कि डाॅक्टर सामान्य प्रसव के बजाय सीजेरियन डिलीवरी करवाने को प्राथमिकता देते हैं।