Advertisement

चिकित्सा के क्षेत्र में खामियां

एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका जैसे विकसित देश में हर साल 10 हजार से ज्यादा मरीजों की मौत चिकित्सा त्रुटि के कारण हो रही है। स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्ता का ध्यान रखकर, बेहतर सेवा प्रदान किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
चिकित्सा के क्षेत्र में खामियां

 आज स्वास्थ्य सेवाओं का जिस प्रकार विस्तार हो रहा है यह बहुत ही अच्छा संकेत है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि विगत दशकों से स्वास्थ्य सेवाओं का स्वर्णिम काल देख जा रहा है, लेकिन बीमारियों ने भी अपना रुप बदला है। डाॅक्टरों के ऊपर जिम्मेदारियां बढ़ी हैं लेकिन उन जिम्मेदारियों का कितना निर्वहन ठीक से हो रहा है यह भी चिंता का विषय है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल चिकित्सा त्रुटियों से मरने वालों की संख्या सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या से ज्यादा है। इससे यह लगता है कि उसका कोई समाधान ढूंढना नितांत आवश्यक है। सामान्य तौर पर चिकित्सात्रुटियों का सबसे बड़ा कारण अविकसित एवं अपरिभाषित योजना होती है। क्योंकि कोई भी दवा का उपयोग अगर सही तरीके से डाॅक्टर करें तो त्रुटियों की संभावना कम रहती है।

ऐमिटी बिजनेस स्कूल नोएडा के निदेशक प्रो. संजीव बंसल के अनुसार विश्वविद्यालयों में भी एक जनरल कोर्स मेडिकल त्रुटियों के लिए चलाना चाहिए। जिससे कि आज का युवा इसके बारे में जान सके। वैसे तो मेडिकल काॅलेजों में इस तरह के कोर्स उपलब्ध हैं परंतु इसका प्रचार-प्रसार आम जनता के बीच में भी होना चाहिए। यदि इस तरह के विषयों को मानव मूल्यों एव नीतियों की तरह पढ़ाया जाए तो इसका दूरगामी असर दिखाई देगा।
भारत जैसे विकासशील देश में स्वास्थ्य त्रुटियों की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं। जब किसी भी तंत्र में काम करने वाले लोगों पर उनके काम के अलावा और भी बहुत सारी जिम्मेदारियां होती हैं। इसके अलावा त्रुटियों के और भी मौके हो सकते हैं। जैसे डाॅयग्नोसिस में देरी, मशीनों में त्रुटियां, प्रशासनिक चूक या मरीजों के रोग निदान में लगी मशीनों की मापन गल्तियां। ज्यादातर स्वास्थ्य त्रुटियों के पीछे किसी एक आदमी की जिम्मेदारी नहीं होती बल्कि यह त्रुटियों की एक कड़ी होती है। जिसमें हर एक व्यक्ति जो उस तंत्र का हिस्सा होता है वह बराबर जिम्मेदार होता है।

अतः ऐसा माना गया है कि त्रुटियों के लिए एक गलत प्रारुप जो सेवाओं की एक श्रेणी बनाता हो वो भी कहीं ना कहीं जिम्मेदार होता हैं। जनसंख्या बहुल देश होने के कारण भारत में डाॅक्टरों, स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले एवं मरीजों का अनुपात बहुत कम है। अतः डाॅक्टरों के ऊपर कार्य का बोझ बहुत ज्यादा है। गर्ग हाॅस्पिटल दिल्ली की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. इला गुप्ता के अनुसार डाॅक्टरों की जिम्मेदारी कुछ ज्यादा बढ़ गई है। डाॅक्टर अपने दायित्व का निर्वहन पूरी लगन के साथ करते हैं परंतु आम जनता को भी समझना चाहिए कि डाॅक्टर भी इंसान होते हैं। डा. गुप्ता कहती हैं कि हर डाॅक्टर का अपने मरीज के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव होता है और मरीज जब तक पूर्ण रुप से स्वस्थ नहीं हो जाता तब तक डाॅक्टर की जिम्मेदारी होती है।
इंडियन पेशेंट सेफ्टी आर्गनाइजेशन के द्वारा कराए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि ज्यादातर डाॅक्टरों ऊपर उनके निर्धारित समय से ज्यादा काम होता है। मरीजों के बीमारियों का निदान करना एवं उसके दैनिक समस्याओं को समझना भी डाॅक्टर के लिए अति आवश्यक है। ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि मरीजों को मनोवैज्ञानिक इलाज की ज्यादा जरुरत होती है। डाॅक्टर के द्वारा बोला गया एक-एक शब्द का असर मरीजों पर दवाईयों से ज्यादा होता है। ऐसा नहीं है कि डाॅक्टर मरीज को पूरा समय नहीं देते परंतु कभी-कभी ज्यादा काम होने के कारण वो मरीज के साथ समय व्यतीत नहीं कर पाते।

इंडियन पेशेंट सेफ्टी आर्गनाइजेशन के निदेशक डा. संजय सप्रू के अनुसार पारदर्शिता और प्रकटीकरण दो ऐसे औजार हैं जिससे स्वास्थ्य त्रुटियों पर लगाम लगाया जा सकता हैं अस्पताल के हर विभाग में कार्य करने वाले लोगों को एक पारदर्शी भावना से अपने द्वारा जाने-अनजाने में हुयी त्रुटियों का प्रगटीकरण करने से यह फायदा होता है कि दूसरे सहकर्मी इस प्रकार के त्रुटियों से बच सकते हैं और अन्ततः इस प्रकार की त्रुटियों से बचा जा सकता है।
हेल्थ केयर कम्युनिटी में ऐसे बहुत से संस्थान काम करते हैं जो स्वास्थ्य त्रुटियों के विभिन्न पहलुओं पर समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी करते हैं। कांउसिल आन ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन और नेशनल एडवाइजरी कांउसिल आॅन नर्सेज एजुकेशन एंड प्रैक्टिसेस ने संयुक्त रुप से एक बैठक करके एक दिशा-निर्देश तैयार किया है जिसमें फिजिशियन और नर्सों के समन्वय से स्वास्थ्य त्रुटियों को किस प्रकार रोका जा सके इसके बारे में बताया है। सक्रिय भागीदारी और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के निर्वहन से त्रुटियों को कम करने में ज्यादा मदद मिलेगी। इसके लिए जरुरी है कि अस्पताल प्रबंधन भी इन बातों का ध्यान रखे और ऐसे किसी भी प्रकार की त्रुटियों का दुहराव न हो सके।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad