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तो नेत्रहीन भी देख सकेंगे दुनिया

बायोनिक आंखों के नए संस्करणों से हम भविष्य में ऐसे लोगों की आंखों की रोशनी लौटाने में भी सक्षम हो सकते हैं जो पूरी तरह नेत्रहीन हो चुके हैं।
तो नेत्रहीन भी देख सकेंगे दुनिया

हाल ही में ब्रिटेन में रेटिना की समस्या रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा से पीडि़त एक शख्स की आंखों में प्रत्यारोपण के बाद से बायोनिक आंख चर्चा में हैं। दृष्टि विज्ञान के क्षेत्र में इस प्रत्यारोपण को मील का पत्थर माना जा रहा है क्योंकि अभी तक किसी क्षतिग्रस्त आंख को बदलने के मामले में मेडिकल विज्ञान की क्षमता बेहद सीमित है। हम किसी क्षतिग्रस्त आंख के कुछ हिस्से को ही बदल सकते हैं और वह भी किसी शख्स की मृत्यु की स्थिति में उसके दान किए गए आंख के उत्तकों की मदद से। बायोनिक आंखों के नए संस्करणों से हम भविष्य में ऐसे लोगों की आंखों की रोशनी लौटाने में भी सक्षम हो सकते हैं जो पूरी तरह नेत्रहीन हो चुके हैं।

आखिर बायोनिक आंखें काम कैसे करती हैं? यह उपकरण बिलकुल प्राकृतिक आखों की तरह की काम करता है। हमारी प्राकृतिक आंख किसी कैमरे की तरह कार्य करती है। यह विभिन्न वस्तुओं से परावर्तित होने वाली रोशनी को तस्वीरों की तरह कैद करती है और फिर उन तस्वीरों को इलेक्ट्रिक तरंगों में बदल देती है। यह इलेक्ट्रिक तरंगे ऑप्टिक नर्व (आंख को मस्तिष्क से जोडऩे वाली नर्व) के जरिये विजुअल कोरटेक्स (मस्तिष्क का वह हिस्सा जो दृष्टि के लिए जिम्मेदार होता है) तक पहुंचती हैं। बायोनिक आंखें भी बिलकुल ऐसे ही काम करती हैं। यह आंखें या तो प्राकृतिक आंख के जरिये (अगर वह कुछ हद तक स्वस्थ हो तो) या फिर बाहर से लगाए गए कैमरे के जरिये रोशनी को कैद करती हैं। इन तस्वीरों को उपकरण में लगे माइक्रो प्रोसेसर के जरिये इलेक्ट्रिक आवेग में बदला जाता है और फिर एक कंप्यूटर चिप के जरये उसे मस्तिष्क (विजुअल कोरटेक्स) तक पहुंचाया जाता है।

अभी जो बायोनिक आंख चर्चा में है वह अमेरिकी कंपनी सेकेंड साइट द्वारा विकसित किया गया आर्गस 2 मॉडल है। इसे संबंधित व्यक्ति की आंख में प्रत्यारोपित किया गया है। यह बायोनिक आंख चश्में में लगे कैमरे से ली जा रही वीडियो तस्वीरों को इलेक्ट्रिक संकेतों में बदल कर ऑप्टिव नर्व तक भेजती है जो कि उसे आगे विजुअल कोरटेक्स तक पहुंचा देती है और इससे उस व्यक्ति को दिखाई देने लगता है। बायोनिक आंख के इस मॉडल के लिए आंख की खराबी का रेटिना तक सीमित होना जरूरी है। अभी जिन बायोनिक आंखों के विकास पर काम चल रहा है उससे भविष्य में आंशिक रूप से स्वस्थ आंख की जरूरत खत्म हो सकती है। उस स्थिति में चश्मे पर या फिर आंख के गड्ढों में मेडिकल ग्रेड प्लास्टिक से बनी नकली आंखों में कैमरे लगे होंगे। ऐसे लोग जो अभी बिलकुल नहीं देख पा रहे हैं और फिलहाल जिनके लिए मेडिकल जगत कुछ नहीं कर पा रहा उनके लिए भविष्य बेहद आशाजनक है। ये बायोनिक आंख भले ही प्राकृतिक आंख जितने अच्छे न हों और ऐसे लोग जिनकी एक आंख ठीक है वह शायद इस इलाज के लिए सही कैंडिडेट न हों मगर ऐसे लोग जिनकी दोनों आंखें खराब हैं उनके लिए यह तकनीक निश्चित रूप से वरदान होगी।

बिना चीर-फाड़ के हो जाएगा मोतियाबिंद का इलाज

बायोनिक आंख की तकनीक जहां प्रयोग में लाई जाने लगी है वहीं एक और प्रयोग ने नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में खलबली मचा रखी है। अगर अमेरिका के कैलिफोर्निया-सैन डियागो विश्वविद्यालय का अध्ययन इंसानों पर कारगर साबित हुआ तो पूरी दुनिया में अंधता निवारण की दिशा में क्रांति हो सकती है। यह अध्ययन है बिना ऑपरेशन के सिर्फ दवा से मोतियाबिंद का इलाज करना। इसके शुरुआती प्रयोग कुत्तों पर किए गए हैं और नतीजे बहुत उत्साहवर्धक हैं। कुत्तों की आंखों में यह दवा डालने से आंखों का धुंधलापन कम हो गया और मोतियाबिंद साफ होने लगा। इस अध्ययन के नतीजे दुनिया की जानी-मानी विज्ञान पत्रिका नेचर में छपे हैं इसलिए इनकी विश्वसनीयता पर शक की गुंजाइश बेहद कम है। इस अध्ययन के अनुसार हमारी आंखों के लेंस का अधिकांश हिस्सा क्रिस्टेलिन प्रोटीन से बना होता है और इस प्रोटीन के दो मुख्य काम हैं। पहला, आंखों के फोकस को बदलने रहने में मदद करना और दूसरा, लेंस को साफ रखना। किसी व्यक्ति को मोतियाबिंद तब होता है इस प्रोटीन की संरचना में बदलाव होता है और यह आंखों के लेंस को साफ करने की बजाय वहां जाले बनाना और उसे धुंधला करना शुरू कर देता है। शोधकर्ताओं ने अपनी खोज में पाया कि आंखों में एक और मॉलीक्यूल लेनोस्टेरॉल पाया जाता है जो कि शरीर में कई स्टेरायड के निर्माण के लिए जरूरी है। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन बच्चों में जन्मजात मोतियाबिंद की समस्या होती है उनमें आनुवांशिक रूप से इस मॉलीक्यूल से संबंधित एंजाइम लेनोस्टेरॉल सिंथेस नहीं बन रहा होता है। इस खोज ने शोधकर्ताओं के सामने यह रहस्य खोला कि ये मॉलीक्यूल तथा संबंधित प्रोटीन आपस में संबंधित हैं। इसके बाद उन्होंने खरगोशों में लेनोस्टेरॉल का डोज दिया तो पाया कि आंख के लेंस की स्थिति सुधर गई है। यही स्थिति कुत्तों में भी पाई गई। यह डोज इंजेक्‍शन और ड्रॉप दोनों तरह से दिया गया। अब अगर यह अध्ययन इंसानों पर कारगर रहा तो भविष्य में मोतियाबिंद के लिए ऑपरेशन की जरूरत पूरी तरह खत्म हो सकती है। वर्तमान में सिर्फ ऑपरेशन से ही मोतियाबिंद का ऑपरेशन हो सकता है।

(लेखक वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं)

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