अमृता शेरगिल को 20वीं शताब्दी की महत्वपूर्ण चित्रकार माना जाता था। वह एक विद्रोही, बहादुर और कला में तयशुदा मानकों को तोड़ने वाली चित्रकार मानी जाती थीं। जन्म लेने के बाद पहला साल उन्होंने बुडापेस्ट में गुजारा। वहीं पेंटिंग का पहला अध्याय भी सीखा। सत्रह साल की उम्र में वह अपने पिता की जन्मभूमि भारत आ गईं। वर्ष 1921 में शेरगिल का परिवार शिमला के समरहिल में आ गया।
अमृता की कला के विरासत को ‘बंगाल पुनर्जागरण’ के दौरान हुई उपलब्धियों के समकक्ष रखा जाता है। उन्हें भारत का सबसे महंगा महिला चित्रकार भी माना जाता है। 20वीं सदी की इस प्रतिभावान चित्रकार को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने सन 1976 और 1979 में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों की सूचि में शामिल किया। सिख पिता और हंगरी मूल की मां मेरी एंटोनी गोट्समन की यह पुत्री मात्र 8 वर्ष की आयु में पियानो-वायलिन बजाने के साथ-साथ कैनवस पर भी हाथ आजमाने लगी थी।
16 वर्ष की उम्र में अमृता अपनी मां के साथ चित्रकारी सीखने पेरिस चली गईं। पेरिस में उन्होंने कई नामी कलाकारों जैसे पिएरे वैलंट और लुसिएं साइमन और संस्थानों से चित्रकारी सीखी। अपने शिक्षक लुसिएं साइमन, चित्रकार मित्रों और अपने प्रेमी बोरिस तेजलिस्की के प्रभाव में आकर उन्होंने यूरोपिय चित्रकारों से प्रेरणा ली। उनकी शुरूआती पेंटिंग्स में यूरोपिय प्रभाव साफ झलकता है। सन 1932 में उन्होंने अपनी पहली सबसे महत्वपूर्ण कृति ‘यंग गर्ल्स’ प्रस्तुत की जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सन 1933 में पेरिस के ग्रैंड सालों का एसोसिएट चुन लिया गया। यह सम्मान पाने वाली वे पहली एशियाई और सबसे कम उम्र की कलाकार थीं।