उत्तर भारत में सर्दियों की विदाई मकरसंक्राति या लोहड़ी से हो जाने की परंपरा रही है, लेकिन इस बार ठंड में ठिठुरने का लुत्फ नहीं मिला। मौसम के हिसाब से जिस तरह की सर्दी पड़नी चाहिए थी, वैसी बिल्कुल नहीं पड़ी। इससे मौसम विज्ञानी और पर्यावरण विद् बेहद चिंतित है। क्या यह धरती के तेजी से गरम होने का ही संकेत है या कुछ और। अभी तक के शोध के मुताबिक यह एल-नीनो का असर है, जिसने दुनिया भर के मौसम में उलट फेर कर रखा है।
अमेरका के नेशनल ओशिएनिक एंड एटमोसफेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा जारी की गई तस्वीरों के मुताबिक एल नीनो का असर पूरी दुनिया में पड़ा है, लेकिन उसने भारत को सबसे अधिक अपनी चपेट में लिया है। इसकी वजह से भारत में इस बार सर्दी कम पड़ी और मानसून भी प्रभावित होगा। सूखे की मार पड़ने की संभावना है। यही वजह है कि इस बार तापमान 4-5 डिग्री सामान्य से अधिक बना हुआ है। एल नीनो को अगर सहज शब्दों में समझना है तो ये वे गर्म हवाएं हैं, जो इक्वेटर से पूर्व की और ज्यादा असर करती हैं।
भारत में एल नीनो का असर कमजोर मानसून के रूप में दिखाई दे चुका है। भारतीय वैज्ञानिकों का मानना है कि एल नीनो का ऐसा असर देश पर पहले भी पड़ चुका है और हर बार उसने देश को गरम किया है। पूणे में नेशनल क्लाइमेंट सेंटर के पूर्व अध्यक्ष अरविंद कुमार का कहना है कि इस बार एल नीनो का असर तगड़ा और लंबा है। ससे खेती पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि सूखे का प्रकोप हो सकता है
वैसे दुनिया के कई हिस्सों में इस बार सर्दी कम हुई है। यह ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव है। छह महीने भीषण ठंड झेलने वाले फिनलैंड जैसे देशों में भी इस बार देर से तापमान गिरना शुरू हुआ। फिनलैंड की राजधानी तुर्कू में बसे वैज्ञानिक सईद ने बताया दिसंबर-जनवरी में तापमान शून्य से नीचे 15 से 30 डिग्री चला जाना चाहिए, लेकिन बहुत देर में गिरना शुरू हुआ।