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तमिलनाडु: फिर बिखरा शीराजा

अन्नाद्रमुक में बढ़ती कलह, भाजपा पर मिलीभगत के आरोप के बीच द्रमुक का इस मुद्दे से एंटी इनकम्बेंसी का डर...
तमिलनाडु: फिर बिखरा शीराजा

अन्नाद्रमुक में बढ़ती कलह, भाजपा पर मिलीभगत के आरोप के बीच द्रमुक का इस मुद्दे से एंटी इनकम्बेंसी का डर दूर

तमिलनाडु की प्रमुख विपक्षी पार्टी अन्नाद्रमुक की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। वरिष्ठ नेता के.ए. सेंगोत्तैयन ने पार्टी के महासचिव एडप्पडी के. पलानीसामी (ईपीएस) की कार्यशैली पर सीधे सवाल खड़े कर दिए हैं। सेंगोत्तैयन ने पार्टी से बाहर किए गए नेताओं की वापसी के लिए 10 दिन का अल्टीमेटम दिया है और चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे अपने समर्थकों के साथ अलग मोर्चा बना सकते हैं। यह विवाद सेंगोत्तैयन की दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात के बाद तूल पकड़ता जा रहा है। ये अटकलें तेज हो गई हैं कि भाजपा तमिलनाडु की राजनीति में कुछ ज्यादा ही रुचि ले रही है और हस्तक्षेप कर रही है। अन्नाद्रमुक नेतृत्व का मानना है कि पार्टी के असंतुष्ट नेता से मिलना भाजपा की गलत नीति है और यह सहयोगी दलों के बीच विश्वासघात की तरह है।

अन्नाद्रमुक की यह कलह सत्तारूढ़ द्रमुक के लिए एकदम मुफीद समय पर बाहर आई है। प्रमुख विपक्षी दल में कलह से द्रमुक सरकार को सत्ता-विरोधी लहर का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है और तमिलनाडु के बदलते राजनैतिक परिदृश्य में वह अपनी स्थिति मजबूत बनाए रख सकती है।

तमिलनाडु में भाजपा की प्रमुख सहयोगी और राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी अन्नाद्रमुक जे. जयललिता की मृत्यु के बाद से ही बिखरी हुई है। एडप्पडी के. पलानीसामी (ईपीएस) ने पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम (ओपीएस) को पार्टी से बाहर करने के बाद संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। लेकिन अब उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेता के. ए. सेंगोत्तैयन से नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। सेंगोत्तैयन ने पार्टी से बाहर किए गए नेताओं की वापसी की मांग की और मौजूदा नेतृत्व के खिलाफ खुलकर असंतोष जताकर संकेत दिया है कि पार्टी के भीतर सुलग रहा असंतोष अभी खत्म नहीं हुआ है।

शशिकला

नौ बार विधायक रहे सेंगोत्तैयन की खुली धमकी पर महासचिव पलानीसामी ने उन्हें संगठन सचिव और इरोड ग्रामीण पश्चिम जिले के सचिव के पदों से हटा दिया। सेंगोत्तैयन की मांग का समर्थन करने वाले छह अन्य नेताओं के खिलाफ भी कार्रवाई की गई। हालांकि अभी किसी को भी पार्टी से निष्कासित नहीं किया गया। शीर्ष नेतृत्व ने भले ही चुप्पी साध रखी हो लेकिन सेंगोत्तैयन को ओ. पनीरसेल्वम और वी. के. शशिकला जैसे नेताओं का समर्थन मिला है। दोनों लंबे समय से पलानीसामी के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए मौके की तलाश में हैं।

सेंगोत्तैयन 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन न करने के लिए नेतृत्व की आलोचना कर चुके हैं। हाल में अमित शाह और निर्मला सीतारमण के साथ उनकी बैठक से अटकलें लगने लगी हैं कि भाजपा अन्नाद्रमुक के आंतरिक मुद्दों में खुलकर दखल दे रही है।

हालांकि पार्टी नेतृत्व ने भाजपा नेताओं के साथ सेंगोत्तैयन की बैठक पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन पलानीसामी के करीबी लोगों का कहना है कि आलाकमान की जानकारी में लाए बिना यह कदम पार्टी अनुशासन का उल्लंघन है। पार्टी में भाजपा के प्रति नाराजगी इसलिए भी बढ़ रही है कि उसके दो नेताओं ने एक असंतुष्ट नेता की मेजबानी की। कई लोग हैं, जो इसे पार्टी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देख रहे हैं। इस प्रकरण से खबरों का बाजार गर्म है कि सेंगोत्तैयन की बगावत हाल ही में पटरी पर आए भाजपा-अन्नाद्रमुक गठबंधन में तनाव पैदा कर सकती है। पिछले विधानसभा चुनावों के बाद दोनों पार्टी ने आपसी संबंध तोड़ लिए थे। अभी बीते अप्रैल में ही दोनों दल फिर से साथ आए थे। अब इस नए घटनाक्रम से पुराने घाव के फिर हरा हो जाने का खतरा है।

पनीरसेल्वम

राजनैतिक विश्लेषक बाबू जयकुमार का मानना है, ‘‘अन्नाद्रमुक कभी भी विचारधारा की पार्टी नहीं रही। वह हमेशा से नेताओं के ही इर्दगिर्द खड़ी रही है, पहले एम.जी. रामचंद्रन, फिर जे. जयललिता। उनके बाद, उस कद का कोई नेता नहीं हुआ। पिछले कुछ साल से पलानीसामी ने अपनी स्थिति मज़बूत की है। जहां तक सेंगोत्तैयन का सवाल है, वे उन्हें चुनौती देने के की स्थिति में नहीं हैं। उनके अचानक विद्रोह को भले ही ‘बाहरी ताकतों’ का समर्थन हो लेकिन फिलहाल पलानीसामी को अस्थिर करना मुमकिन नहीं है।’’

नाम न छापने की शर्त पर एक अन्नाद्रमुक नेता आउटलुक से कहते हैं, कि उन्हें शक है कि पार्टी छोड़ने वाले वरिष्ठ नेताओं को बहाल करने के सेंगोत्तैयन के अल्टीमेटम के पीछे भाजपा का हाथ है। वे आगे कहते हैं, ‘‘सेंगोत्तैयन के कदम का ओ. पनीरसेल्वम और वी.के. शशिकला ने तुरंत स्वागत किया। यह उसी ओर इशारा करता है।’’

2026 का विधानसभा चुनाव अन्नाद्रमुक के लिए निर्णायक है, क्योंकि 2019 के बाद से पार्टी को हर बड़े चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। पार्टी के भीतर यह धारणा बढ़ती जा रही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ गठबंधन किया होता, तो शायद बेहतर परिणाम होते। हालांकि 2021 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था और फिर भी हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी को यही दुविधा परेशान करती है और नेतृत्व का एक वर्ग विधानसभा की हार के लिए ने भाजपा के साथ गठबंधन को जिम्मेदार ठहराता है।

2024 के लोकसभा चुनाव में, अन्नाद्रमुक 23.3 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने अलग से चुनाव लड़कर 18 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। यही वजह है कि अन्नाद्रमुक के भीतर असंतुष्ट नेता सेंगोत्तैयन के साथ कई लोग मानते हैं कि दोनों दल साथ मिलकर लड़ते तो नतीजे अलग होते।

द्रमुक प्रवक्ता प्रो. रवींद्रन आउटलुक से कहते हैं, ‘‘भाजपा अच्छी तरह जानती है कि वह तमिलनाडु में पैठ नहीं बना सकती। यहां लगभग 20 प्रतिशत मतदाता न द्रमुक का समर्थन करते हैं, न अन्नाद्रमुक का। अगर अन्नाद्रमुक फिर से टूटती है, तो भाजपा मुख्य विपक्ष की भूमिका में आने की सोच सकती है, लेकिन यह उसके लिए आसान नहीं है।’’ हालांकि द्रमुक अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी के भीतर चल रही उथल-पुथल पर कड़ी नजर रखे हुए है। पार्टी से जुड़े लोगों का कहना है कि उन्हें ज्यादा चिंता नहीं है।

उनके अनुसार, भाजपा की रणनीति स्पष्ट है, राज्य में वैकल्पिक ताकत के रूप में उभरने के लिए अन्नाद्रमुक की अंदरूनी कलह का इस्तेमाल करना। रवींद्रन का तर्क है कि द्रविड़ दलों द्वारा दशकों से गढ़ी गई तमिलनाडु की राजनैतिक संस्कृति, किसी बाहरी व्यक्ति के लिए इस शून्य को भरने की बहुत कम गुंजाइश छोड़ती है। वे कहते हैं, ‘‘अगर अन्नाद्रमुक और भी कमजोर हो जाती है, तब भी भाजपा उसका वोट आधार हासिल नहीं कर सकती।’’

जानकारों के अनुसार, भाजपा को इसमें संदेह है कि पलानीसामी अकेले मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन का मुकाबला कर पाएंगे। इसलिए, वह पूर्व अन्नाद्रमुक नेताओं के पुनर्मिलन की वकालत कर रही है। हालांकि, कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और पलानीसामी को एनडीए के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं करना चाहते हैं।

पलानीसामी के करीबी लोगों को पूरा भरोसा है कि सेंगोत्तैयन के विरोध से काई फर्क नहीं पड़ने वाला है और पार्टी पर पलानीसामी अपनी पकड़ बनाए रख सकते हैं। वे बताते हैं कि पलानीसामी ने कई बड़ी चुनौतियों का सामना किया है और संगठन पर अपना नियंत्रण धीरे-धीरे मजबूत किया है। फिर भी, असंतुष्ट आवाजों को प्रोत्साहित करने या उन्हें जगह देने के भाजपा के इरादों को लेकर बेचैनी है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, आलाकमान, ‘वेट ऐंड वॉच’ की रणनीति अपना रहा है। वह पूरे घटनाक्रम पर गहरी नजर रखे हुए है। देखना है कि 10 दिन की अंतिम चेतावनी समाप्त होने के बाद सेंगोत्तैयन का अगला कदम क्या होगा और क्या इससे नेताओं की व्यापक लामबंदी हो पाएगी।

लिहाजा, कई जानकारों का मानना है कि भाजपा कोई तीसरा या चौथा कोण खड़ा करके वोटों का बंटवारा करना चाहती है, जिससे उसे कुछ सीटों का फायदा मिल सके और राज्य में उसका खाता खुल सके। जो भी हो, अगले साल चुनावों के पहले उठा-पटक देखने को मिल सकती है। 

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