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कुपोषण से लड़ने में फूड-बेवरेज कंपनियों को आखिर क्यों जिम्मेदारी निभानी चाहिए

  कंपनियों को कारोबार बढ़ाने के लिए रणनीतिक प्रतिबद्धता से आगे जाकर स्वास्थ्य और पोषण पर न सिर्फ...
कुपोषण से लड़ने में फूड-बेवरेज कंपनियों को आखिर क्यों जिम्मेदारी निभानी चाहिए

कंपनियों को कारोबार बढ़ाने के लिए रणनीतिक प्रतिबद्धता से आगे जाकर स्वास्थ्य और पोषण पर न सिर्फ ध्यान देना होगा बल्कि योजनाओं को मूर्तरूप देने को ज्यादा प्रयास करने होंगे

मार्क विजने, एस्टेफैनिया मार्टी मैलविडो

भारत में बच्चों में कुपोषण की भयावहता के लिए तत्काल और इनोवेटिव कदम उठाने की आवश्यकता है। हालांकि देश में अविकसित यानी ठिगने बच्चों का अनुपात काफी कम हुआ है। यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ, विश्व बैंक समूह की बाल कुपोषण के स्तर और रुझान पर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 1992-93 के 57.7 फीसदी के मुकाबले 2015-16 में ऐसे बच्चों का अनुपात 37.9 फीसदी रह गया है। इसके बावजूद भारत दुनिया में सबसे ज्यादा अविकसित बच्चों वाला देश बना हुआ है। ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट, 2018 के अनुसार भारत में लगभग 4.66 करोड़ अविकसित बच्चे हैं। यह संख्या नाइजीरिया से तीन गुना अधिक है। नाइजीरिया इस मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है जहां, लगभग 1.4 करोड़ अविकसित बच्चे हैं।

स्टंटिंग (अविकसित यानी ठिगने) एक तकनीकी शब्द है जिसका मतलब है, बच्चों का उनकी उम्र के हिसाब से नाटा या छोटा होना या दिखना। यह न केवल खराब शरीरिक विकास का संकेत है, बल्कि प्रतिरोधक क्षमता और मस्तिष्क के खराब और सीमित संज्ञानात्मक विकास को भी दर्शाता है। बच्चों में कुपोषण के ये दुष्परिणाम उनके जीवन में फिर कभी नहीं बदले जा सकते है। माता-पिता और समाज के पास यह सुनिश्चित करने का एक ही मौका है कि बच्चों को अच्छी तरह से खिलाया जाए और उन्हें ठीक तरह से मानसिक और शारीरिक रूप से विकसित किया जाए।

खतरे की घंटी बजाते एक नए अध्ययन ने गणना की है कि 2016 के बाद से विभिन्न जिलों में स्टंटिंग का अनुपात बढ़ा है और अब यह 38.4 फीसदी हो गया है। अध्ययन में यह भी पता चला कि केवल महिलाओं के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) और महिलाओं की शिक्षा कारकों के साथ बच्चों की आहार गुणवत्ता भी मुख्य कारक है जो विभिन्न जिलों में स्टंटिंग की व्यापकता के अंतर को दर्शाता है।

स्टंटिंग (और पोषण संबंधी अन्य चुनौतियों जैसे माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी) पर ध्यान देते हुए इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। साथ ही यहां अधिक वजन और मोटापे का स्तर भी तेजी से बढ़ रहा है। भारत को इन समस्याओं पर अंकुश लगाने और बच्चों को अधिक वजन और मोटापे से बचाने के लिए रणनीति बनानी होगी। बचपन का मोटापा आमतौर पर वयस्क होने तक बना रहता है और अधिक वजन या मोटापे से ग्रसित होने के कारण कई आहार संबंधी बीमारियां हो जाती हैं। इससे जल्दी मौत होने का खतरा भी बढ़ जाता है।

बचपन के मोटापे की दर हाल के वर्षों में विश्व स्तर पर बढ़ी है, इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ ओबेसिटी (आईएएसओ) और इंटरनेशनल ओबेसिटी टास्कफोर्स ने अनुमान लगाया है कि दुनिया भर में 200 मिलियन स्कूली बच्चे या तो अधिक वजन वाले या मोटे हैं। भारत में अधिक वजन वाले बच्चे और किशोर 13.6 फीसदी हैं, जबकि 4 फीसदी बच्चे मोटे हैं।

कुपोषण के इन सभी रूपों का बच्चों के स्वास्थ्य और विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। यह देश की समग्र आर्थिक उत्पादकता को भी प्रभावित करता है। 2016 में ग्लोबल पैनल ऑन एग्रीकल्चर एंड फूड सिस्टम्स फॉर न्यूट्रीशन (ग्लॉपन) ने अनुमान लगाया कि कुपोषण के सभी रूपों से पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष लगभग 3.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होता है। पोषण संकट के समाधान के लिए खर्ज के रूप में होने वाले निवेश से लंबी अवधि में पोषण सुधार लाने में मदद मिलती है।

भारत में खाद्य और पेय उद्योग मजबूती से आगे बढ़ रहा है और प्रोसेस्ड फूड की बिक्री तेजी से बढ़ रही है। दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में भारत वैश्विक खाद्य और पेय उद्योग में अग्रणी है। खाद्य और पेय पदार्थ क्षेत्र पर ईएमआईएस की रिपोर्ट का अनुमान है कि 2013-16 के दौरान खाद्य और पेय पदार्थ क्षेत्र के वैल्यू एडीशन में वार्षिक आधार पर 4.8 फीसदी की वृद्धि हुई।

खाद्य और पेय कंपनियां देश की पोषण चुनौतियों के समाधान में हिस्सा बन सकती हैं और उन्हें होना भी चाहिए। स्वस्थ और पौष्टिक आहार सभी के लिए कम कीमत पर सुलभ हो, यह सुनिश्चित करने में उद्योग की अहम भूमिका हो सकती है।

मार्केटिंग के नए माध्यमों और नई मार्केटिंग तकनीकों से इन उत्पादों के विज्ञापन बच्चों तक पहुंच बना रहे हैं और उन पर बहुत गहरा असर डाला। पिछले 20 वर्षों में एकत्रित साक्ष्यों से पता चलता है कि अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों की मार्केटिंग उन कारकों में से एक है जो अधिक वजन और मोटापे को बढ़ाने में योगदान करते हैं। इन नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिए सरकारों और कंपनियों को बच्चों के खाद्य पदार्थों और गैर-अल्कोहलिक पेय पदार्थों की मार्केटिंग में 2010 की डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों का पालन करना चाहिए।

2016 में प्रकाशित पहली एक्सेस टू न्यूट्रीशियंस इंडिया स्पॉटलाइट इंडेक्स से पता चला कि भारत में फूड एंड बेवरेज की सबसे बड़ी कंपनियां पोषण के दोहरे बोझ से लड़ने में मदद के लिए पर्याप्त काम करने में विफल रही हैं जबकि उन्हें काफी कुछ करने की आवश्यकता है।

इंडेक्स बताता है कि अधिकांश कंपनियों ने स्वास्थ्य और पोषण पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए रणनीतिक प्रतिबद्धताएं बनाईं और अच्छे व्यवहार का प्रदर्शन किया। हालांकि, यह स्पष्ट है कि कंपनियों को सभी प्रासंगिक व्यावसायिक गतिविधियों (उदाहरण के लिए अपने उत्पादों में सुधार, स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों को सस्ता करके उनकी सुलभता, जिम्मेदार ढंग से मार्केटिंग और लेबलिंग करना) के लिए स्पष्ट और महत्वाकांक्षी रणनीति अपनाकर अपने शब्दों को अमलीजामा पहनाने के लिए काफी कुछ करना होगा। फिर भी यह देखना उत्साहजनक था कि रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद कई कंपनियां एटीएनएफ के साथ जुड़कर आंकलन के लिए तैयार थीं और कई क्षेत्रों में अपने प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए उत्सुक थीं।

 इस साल के अंत में जारी होने वाले दूसरे सूचकांक में पता चलेगा कि क्या कंपनियों का आंकलन में प्रदर्शन सुधरा है और उन्होंने देश की गंभीर पोषण समस्याओं के लिए अपने हिस्से का पूरा योगदान दिया है या नहीं

(मार्क विजने एक्सेस टू न्यूट्रिशन फाउंडेशन में सीनियर प्रोग्राम मैनेजर हैं, एस्टेफैनिया मार्टी मैलविडो एक्सेस टू न्यूट्रिशन फाउंडेशन में इंटर्न रही हैं।)

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