राजधानी दिल्ली स्थित प्रगति मैदान 6 जनवरी से लेकर 14 जनवरी तक पुस्तकों के नाम रहा। विश्व पुस्तक मेले में हर साल की तरह इस साल भी साहित्यिक समागम हुआ।
पुस्तकों की खरीदी बिक्री ना केवल मेला-स्थल के भीतर तक सीमित रही बल्कि प्रगति मैदान के गेट नंबर 10 के बाहर रोटी की जुगत में पुस्तक बेचने वालों का एक और मेला भी दिखाई दिया।
यहां मौजूद किताबों के विक्रेता आज तक विश्व पुस्तक मेला की चौखट के अंदर कदम नहीं रखे हैं। लेकिन बिहार के पटना से आए सिकंदर बताते हैं कि वे हर बार पुस्तक मेले के बाहर अपनी चटाई भर पुस्तक की दुकान जरूर सजाते हैं।
पुलिस की झिड़की और अव्यवस्थाओं के बीच पुस्तकें बेचकर जीवन-यापन करने वाले विश्व पुस्तक मेले के इर्द-गिर्द ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर ही लेते हैं। मेले से पुस्तकें लेकर लौट रहीं दिल्ली की सौम्या बाहर लगे पुस्तकों को खरीदने से खुद को नहीं रोक पाईं। पूछने पर उन्होंने बताया कि यहां पुस्तकें काफी कम कीमतों पर मिल जाती हैं इसीलिए वे यहां से भी पुस्तकें ले रही हैं।
एक तरफ विश्व पुस्तक मेला की धूम तो वहीं 100-100 रूपये में पुस्तक देने की आवाज लगाते कुछ लोग काफी दिलचस्प और मायूस दोनों लगे।