रामसेतु एक बार फिर बहस के केन्द्र में है। कई लोग दावा करते हैं कि यह वही रामसेतु है, जिसकी चर्चा रामायण और रामचरितमानस में है, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसे सिर्फ एक मिथ करार देते हैं। इस बीच एक साइंस चैनल ने तथ्यों के साथ दावा किया है कि रामसेतु पूरी तरह कोरी कल्पना नहीं हो सकता है, क्योंकि इस बात के प्रमाण हैं कि भारत और श्री लंका के बीच स्थित इस बलुई रेखा पर मौजूद पत्थर लगभग 7000 वर्ष पुराने हैं।
साइंस चैनल ने एक विडियो ट्विटर पर डाला है। विडियो में कुछ भूविज्ञानियों और वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि रामसेतु पर पाए जाने वाले पत्थर बिल्कुल अलग और प्राचीन हैं।
Are the ancient Hindu myths of a land bridge connecting India and Sri Lanka true? Scientific analysis suggests they are. #WhatonEarth pic.twitter.com/EKcoGzlEET
— Science Channel (@ScienceChannel) December 11, 2017
सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने भी इस वीडियो को जय श्री राम कैप्शन के साथ री-ट्वीट किया है।
बता दें कि साल 2007 में रामसेतु के मुद्दे पर कांग्रेस सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे से एक बड़ा राजनीतिक बवाल तक खड़ा हो गया था।
क्या है रामसेतु से जुड़ी मान्यताएं?
दरअसल, रामसेतु को लेकर वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि जब राम ने सीता को लंका के राजा रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस दौरान उन्होंने सभी देवताओं का आह्वान किया और युद्ध में जीत के लिए आशीर्वाद मांगा था। इनमें समुद्र के देवता वरुण भी थे। वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा था। जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाया।
फिर वरुण ने मांगते हुए उन्हें बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्री राम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी। इसके बाद राम की सेना ने लंका के रास्ते में सेतु का निर्माण किया।