आउटलुक अपने पाठको के लिए अब हर रविवार एक कहानी लेकर आ रहा है। इस कड़ी में आज पढ़िए विमल चंद्र पांडेय की कहानी। इस कहानी को यदि त्रासदी की कहानी भी कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। एक अच्छा लेखक और एक अच्छे व्यक्ति के फर्क को बताती यह कहानी 'फकीराने' अंदाज को बहुतअलग ढंग से परिभाषित करती है। एक संभावनाशील लेखिका के प्रेम और इस प्रेम में उसकी संभावनाओं की हत्या अंतहीन तलाश का वह रास्ता है, जिसकी मंजिल कभी नहीं मिला करती...
प्रेम विवाह के शुरूआती दो साल खासे अच्छे बीते क्योंकि जिस चीज को उन्होंने प्रेम समझा था उसकी एक्सपायरी डेट दो साल ही थी। लेखक चतुर्भुज शास्त्री के मिजाज को फकीराना अंदाज समझ कर भविष्य में कलम से आग उगलने की महत्वाकांक्षा पाले युवा लेखिका सीमा ने उन्हें प्रपोज किया और शादी करने की इच्छा व्यक्त की। चतुर्भुज हैरान रह गए क्योंकि उन्होंने अब इसी फकीराने अंदाज में जिंदगी खत्म करने का मन बना लिया था लेकिन सीमा खूबसूरत थी। खूबसूरती से अधिक उसकी बेबाकी उन्हें पसंद आई थी। अखबार में उनकी नौकरी अच्छी चल रही थी और शहर के प्रेस क्लब में हर शाम शराब पीते समय उन्हें कुछ दरबारी प्रशंसक मिल जाते जिन्होंने उनकी किताब आधी पढ़ी होती थी और आधी खुद की लिखने के इच्छुक होते थे। कुछ मीडिया संस्थानों के छात्र होते थे जिन्हें इस बात की खबर मिल चुकी होती थी कि चर्तुर्भुज शास्त्री इतने बड़े अखबार के पत्रकार और इतने अच्छे लेखक होने के बावजूद आसानी से उपलब्ध होते हैं।
सीमा, एक शाम जब वह कुछ कवि मित्रों के साथ प्रेस क्लब में शराब पीते हुए दुनिया की सभी समस्याओं का इलाज सिर्फ हथियारबंद क्रांति को बता रहे थे, उनके पास पहुंची। उसने उनकी कुछ कहानियों का जिक्र किया और कहा कि वह उन्हें पसंद करती है। चतुर्भुज ने उस लड़की की हालिया प्रकाशित पहली कहानी की चर्चा सुन रखी थी। वह कुछ कहते, उसके पहले ही लड़की ने उनके होंठों पर उन्हें चूमा और दोस्तों की मौजूदगी में ही शादी करने की इच्छा व्यक्त की। चतुर्भुज ने कहा कि उनकी उम्र उससे दस साल अधिक है, लड़की ने कहा कि उसे उम्र से कोई मतलब नहीं और वह सिर्फ एक अच्छे इंसान के साथ रहना चाहती है, वह अगर उससे शादी नहीं कर सकते तो वह उनके साथ लिव-इन में भी रह सकती है। हिंदी साहित्य के हिसाब से यह एक उल्लेखनीय घटना थी। चतुर्भुज की इच्छा शादी करने की कतई नहीं थी लेकिन उनकी घटनाविहीन जिंदगी में यह पहली बड़ी और सनसनीखेज घटना थी, जिसका संपूर्ण असर जानने के लिए वह शादी करके देखने के इच्छुक हो उठे।
शादी करने के ठीक बाद उनकी दूसरी किताब आई और उसी वक्त से उन्होंने दाढ़ी बनवाना छोड़ दिया। दाढ़ी का बढ़ना और दूसरी किताब का आना लगभग एक साथ हुआ और ठीक उसी वक्त उन्होंने अपने संपादक की गालियों से तंग आकर वह अखबार छोड़ दिया। साथियों ने कहा कि चतुर्भुज बहुत फक्कड़ किस्म का इंसान है और जिस तरह उसकी कहानियों के पात्र अपने भविष्य की चिंता नहीं करते, उसी तरह वह भी नहीं करता। चतुर्भुज पूरा दिन सीमा के सानिध्य में गुजारते और अपनी ही किस्मत से रश्क करते। दो साल तक पति-पत्नी फ्रीलांसिंग से काम चलाते रहे। लेकिन जब बेटी का जन्म हुआ तब पैसों की जरूरत कुछ ज्यादा ही पड़ने लगी। चतुर्भुज और सीमा के छोटे-मोटे झगड़े होने लगे जिन्हें वाजिब पैसों के अभाव में जल्दी ही बड़ी लड़ाइयों में बदल जाना था।
बेटी के पांच साल के होने तक प्रेम की जगह, झगड़े और कहानियों की जगह लेख लेने लगे थे। कहानियां चतुर्भुज से बन ही नहीं पा रही थीं और वह पैसों के लिए अखबारों में लेख लिखने लगे थे। अखबार हिंदी के थे और इस मानसिकता से उबर ही नहीं पा रहे थे कि छाप कर उन्होंने लेखक पर एहसान किया है और अगर पैसे देर से दिए जाएं या फिर न भी दिए जाएं, तो कोई दिक्कत नहीं है। समस्याएं बढ़ती जा रही थीं और इस बीच उनकी तीसरी किताब जो एक संस्मरण था, हिट हो गया था। संस्मरण में उन्होंने खुद को वही बताया था, जो उनके पाठक और प्रशंसक मानने लगे थे। उनकी अपनी जिंदगी में फकीरी धीरे-धीरे कोई और विकल्प न होने के कारण फैल ही चुकी थी।
धीरे-धीरे लेखन का माहौल जमने लगा। जैसे-जैसे लिखना और खुद की छवि के बारे में प्रचारित करना अधिक होता गया, उनकी पुरानी कहानियां भी उसी चश्मे से पढ़ी जाने लगीं। उनकी चर्चा होने लगी और कुछ साक्षात्कारों में उन्होंने कहा कि वे किसी की पीढ़ी के लेखक नहीं हैं और उन्हें सिर्फ सृजन से मतलब है। जोश में जबान फिसल जाने के कारण पुरस्कारों के बारे में उन्होंने कुछ अपमानजनक बातें कहीं और साक्षात्कारों को विद्रोह की एक गाथा बना डाला। मीडिया में बारह-पंद्रह साल बिता लेने के कारण उनके दोस्त अच्छी जगहों पर थे जिन्होंने ब्लॉग और सोशल वेबसाइटों पर हवा दे दी कि अपने पात्रों की तरह ही चतुर्भुज शास्त्री एकदम फकीर लेखक हैं। उन्हें किसी पुरस्कार, सम्मान और धन-दौलत से कोई मतलब नहीं है, उन्हें सिर्फ मन का आनंद चाहिए, शांति चाहिए जिसकी तलाश में वे मारे-मारे फिरते हैं। इस बीच उन्हें अपने एक वरिष्ठ लेखक मित्र के जरिये एक अच्छे अखबार में नौकरी मिल गई लेकिन उन्हें अपनी पिछली जिंदगी की आदत हो गई थी। काम के बंधे घंटे उन्हें परेशान करते थे, उन्हें बराबर एक ‘वार ऐंड पीस’ लिखने की तलब होती थी लेकिन वह पाते थे कि उनके पास वक्त नहीं है। जब कभी वक्त होता था, तो उनका मन उन्हें बताता था कि वह राइटर्स ब्लॉक से पीड़ित हैं।
इस बीच किसी को याद नहीं आई कि कुछ दसेक साल पहले उन्होंने एक उदयीमान लेखिका से शादी की थी जिसकी शुरुआती तीन-चार कहानियां बहुत सराही गई थीं। वह दोबारा कुछ दिनों के लिए खबरों में सिर्फ तब आई जब वह दूसरी बार मां बनी थी। दो बच्चों में पांच साल का अंतर रखने के कारण लेखक समुदाय ने उनकी प्रशंसा की। चतुर्भुज ने सदाशयता दिखाते हुए एक पुरस्कार समारोह में अपने लेखन का पूरा श्रेय अपनी पत्नी को दिया और बाद में हंसते हुए यह भी जोड़ा कि इनकी सबसे खूबसूरत कृति इनके बच्चे हैं। किसी जमाने में लेखिका रही पत्नी इस बात पर गर्व से मुस्कराईं।
दुनिया देख चुके एक बुजुर्ग लेखक ने एक नया पुरस्कार शुरू कर रहे अपने एक मित्र से शर्त लगाई कि चतुर्भुज पुरस्कार ले लेगा। वह मित्र अपनी दिवंगत पत्नी के नाम पर एक पुरस्कार शुरू कर रहे थे और उनका मानना था कि चतुर्भुज बहुत उसूलों वाले लेखक हैं और इस पुरस्कार को लेने के लिए राजी नहीं होंगे। बुजुर्ग लेखक ने शर्त जीत ली थी और इस पुरस्कार के बाद चतुर्भुज शास्त्री को सिर्फ तीन किताबों के बल पर युवा पीढ़ी का सबसे प्रखर लेखक मान लिया गया था, यह दीगर बात थी कि उनकी उम्र का पारा पैंतालिस पार कर गया था।
एक दिन अचानक चतुर्भुज शास्त्री कहीं गायब हो गए। उनके लेखक और पत्रकार मित्रों ने उनकी पत्नी की चिंता पर फोन लगाया तो वह स्विच ऑफ मिला। लेखक बिरादरी और पत्रकार समुदाय किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा। सबने सोशल वेबसाइटों पर इस सूचना को साझा किया और कई ब्लॉग्स ने उनके पूरे जीवन परिचय के साथ, जिसमें उनकी किताबों और उनकी फक्कड़ तबीयत का खासतौर पर जिक्र था, इस घटना के बारे में कयास लगाया कि हो न हो इसमें भी उनकी फकीराना तबीयत का ही कोई खेल होगा।
आखि़रकार एक पत्रकार मित्र जब अन्य मित्रों के साथ वार्ता कर पुलिस में जाने की बात सोच ही रहा था कि नेपाल के एक खूबसूरत शहर से एक वरिष्ठ लेखक का फोन आया। उसने बताया कि चतुर्भुज को वैराग्य सा हो गया है, इसलिए वह किसी को बिना बताए जीवन की उहापोह से दूर यहां शांति की तलाश में आया है और चिंता की कोई बात नहीं है। पूरे लेखक और पत्रकार बिरादरी ने चैन की सांस ली और सोशल वेबसाइटों के साथ अखबारों के पन्नों पर भी लेखक के फक्कड़पन के कुछ किस्सों के साथ उन्हें याद किया गया।
दस दिन बाद उनके अखबार से एक पत्रकार मित्र संपादक के कहने पर यह पता लगाने पहुंचा कि क्या उनकी वापसी का कोई समाचार है। उसने दरवाजा खटखटाया जो पत्नी ने खोला, दोनों हालांकि एक दो बार औपचारिक ढंग से मिल चुके थे लेकिन उस दिन पत्रकार मित्र ने बताया कि उसने उनकी शुरूआती कहानियां पढ़ रखी हैं और उन्हें बतौर लेखिका काफी पसंद करता है। पत्नी चुपचाप छोटे बच्चे को दवाई पिलाती रही। बेटी बगल में बैठी होमवर्क कर रही थी। उसने पूछा कि क्या लेखक महोदय के लौट आने की कोई खबर है, तो पत्नी ने इनकार में सिर हिलाया। पत्रकार मित्र इसके बाद कुछ देर तक लेखक के फकीराना अंदाज की तारीफ करता रहा और जाने से पहले एक बार औपचारिकतावश पत्नी से कहा, ‘‘आपको फिर से लिखना चाहिए। आपमें बहुत संभावनाएं हैं।’’
पत्नी ने छोटे बच्चे को बिस्तर पर सुलाया और होमवर्क कर रही बेटी को भीतर जाने का इशारा किया। बेटी के जाने के बाद वह पत्रकार के पास आई। उसकी आंखों में एक अलग सी ताब थी। उसने धीमी मगर दृढ़ आवाज में कहा, ‘‘संभावनाएं हैं नहीं, थीं। मैंने सारी संभावनाएं आपके दोस्त को दे दीं। जिसे दुनिया के सबसे बड़े भगोड़े का खिताब मिलना चाहिए, आप लोग उसे फकीर बता रहे हैं, इससे पता चलता है उसने मेरी संभावनाओं का गला किस तरह घोंटा है। उसे शादी और बच्चे होने के बाद भी अपनी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं चाहिए। अपनी मर्जी से मुझसे शादी करने के बाद वह मुझसे कहता है कि वह एक आजाद परिंदा है और उसे शादी नाम का बंधन नहीं बांध सकता। बेटे का बुखार जब महीना भर डॉक्टरों को बदल कर दिखाने पर भी ठीक नहीं हुआ, तो वह एक रात मुझसे झगड़ा कर भाग गया। अब मैं अपने बेटे का इलाज करा रही हूं। मैं कहां भाग सकती हूं? उसका टायफाइड अब ठीक है और वह अपने पिता का इंतजार कर रहा है। शायद आपका फकीर किसी दिन आ भी जाए। आपको पता चल ही जाएगा। अब आप जाइए, मुझे खाना भी बनाना है। कल एक इंटरव्यू के लिए जा रही हूं।’’
पत्रकार मित्र थोड़ी देर खड़ा रहा फिर बाहर निकल आया।
सन्नाटे में खामोश चलते हुए थोड़ी दूर जाकर उसे याद आया कि उसे इंटरव्यू के लिए शुभकामनाएं दे देनी चाहिए थीं।
विमल चंद्र पांडेय
20 अक्टूबर 1981, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में जन्म। आज के दौर के सबसे चर्चित लेखक। आजकल फिल्म क्षेत्र में भी काम। भले दिनों की बात थी उपन्यास। डर और मस्तूलों के इर्द-गिर्द कहानी संग्रह। ई इलाहाबाद है भैय्या नाम से संस्मरण।