आउटलुक अपने पाठको के लिए अब हर रविवार एक कहानी लेकर आ रहा है। इस कड़ी में आज पढ़िए हरियश राय की कहानी। लोक कलाकारों के प्रति असंवेदनशीलता दिखाती यह कहानी हर मन को झकझोरती है। कला के कद्रदानों की कमी ही नहीं, कला की सराहना के लिए भी तंगदिली दर्शाती यह कहानी लोक कलाकारों की बेहाली को बखूबी बताती है।
“हुकुम”, एक बार आप उससे मिल लीजिए, शायद आपके लिए मददगार हो। सौमित्र जब अपने केबिन में आया तो हिम्मत सिंह ने आकर कहा।
सौमित्र मजूमदार की तरह ही हिम्मत सिंह इस कंपनी में काम करने वाला एक मुलाजिम था। फर्क सिर्फ इतना था कि हिम्मत सिंह राजस्थान का रहने वाला था और सौमित्र मजूमदार बाहर से आया था। राजस्थान का होने के नाते हिम्मत सिंह को यहां की लोक कलाओं के बारे में पता था।
“कौन है वह।” सौमित्र ने उत्सुकतावश पूछा।
“करीम खान है हुकुम।” हुकुम सिंह ने कहा।
“कौन करीम खान”
“करीम खान लंगा, लीलासर गांव का रहने वाला है। आपके लिए मददगार होगा। आप एक बार बात, तो करके देखें हुकुम।”
सौमित्र मजूमदार बाड़मेर में एक राष्ट्रव्यापी कंपनी में काम करते थे। कंपनी के चेयरमैन विश्ववीर, कंपनी के काम का जायजा लेने बाड़मेर आ रहे थे। ऐसा सुना जा रहा था कि कंपनी में कुछ लोगों की छंटनी होने वाली है और छंटनी के लिए ऐसे लोगों के नामों की एक सूची बनाई जा रही है, जो अपने काम के प्रति लापरवाही बरतते हैं और चेयरमैन साहब की मंजूरी से ऐसे लोगों को घर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है। सौमित्र मजूमदार को पता था कि चेयरमैन विश्ववीर भसीन सुबह की फ्लाइट से मुंबई से बाड़मेर आएंगे और रात की फ्लाइट से वापस चले जाएंगे। दिन भर मीटिंग्स का दौर चलेगा। उनके सम्मान में बाड़मेर फोर्ट होटल में एक रात्रि भोज का आयोजन किया गया है। इस महफिल में बाड़मेर के कुछ लोक कलाकारों द्वारा गाने-बजाने का प्रोग्राम भी रखा जाना था। गाने-बजाने का इंतजाम करने की जिम्मेदारी सौमित्र मजूमदार पर थी।
किसी राजस्थानी गाना गाने वाले को तलाश करने के लिए सौमित्र ने हिम्मत सिंह से कहा था।
“अच्छा बुलाओ, बात करके देखते हैं।”
कुछ ही पलों में एक आदमी सौमित्र के केबिन का दरवाजा आधा खोलकर झांकने लगा। उसे देखकर सौमित्र ने उसे इशारे से अंदर आने के लिए कहा। हाथ जोड़े हुए वह आदमी भीतर आ गया। सौमित्र ने उसे गौर से देखा। रंग-बिरंगी पगड़ी पहने हुए था। कान तक कलम थीं। कानों में बालियां थी। होठों के ऊपर छोटी-छोटी मूंछें थी। बड़ी-बड़ी भौंहे। सफेद कुर्ता और सफेद पायजामा पहने हुए था। कुर्ते पर लाल सदरी थी जिस पर तमाम तरह के बेल-बूटे कढ़े हुए थे। उसके कंधे पर एक थैला था। तीस-पैंतीस साल उसकी उम्र रही होगी। “घणी खम्मा सा।” उसने हाथ जोड़कर अभिवादन किया।
“हां आओ, बैठो।” सौमित्र ने सामने रखी कुर्सी पर उसे बैठने का इशारा किया।
वह आदमी सकुचाते हुए कुर्सी पर बैठ गया।
“क्या नाम है तुम्हारा।” सौमित्र ने पूछा।
“करीम खान हुकुम।” उसने हाथ जोड़कर कहा।
“कहां रहते हो।”
“लीलासर गांव में।”
“क्या करते हो तुम।” सौमित्र ने पूछा।
“लंगा गाऊं हूं हुकुम।” हाथ जोड़े-जोड़े बहुत संकोच से उसने कहा।
इससे पहले सौमित्र कोई प्रतिक्रिया देता हिम्मत सिंह ने कहा, “यह राजस्थान का बहुत ही मशहूर गायन है, चेयरमैन साहब को जरूर पसंद आएगा।”
“अच्छा।”
“हुकुम, मैं कई सालों से गा रहा हूं। देश-विदेश सब जगह अपना गाना सुना कर आया हूं। लोग खूब तारीफ करते हैं सा। आप भी मुझे एक मौका दीजिए सा। बड़ी मजबूरी है सा।”
एक दयनीयता सी उसकी आवाज में बरकरार थी।
“अच्छा विदेश में भी अपना गाना सुनाया है। विदेशों में गाना सुनाने जाते हो, तो पैसे तो खूब मिलते होंगे।”
“हां मिलते हैं सा, पर हमें नहीं। बीच में एजेंट लोग सब खा जाते हैं सा। हमें तो रुपया में चार आना भी नहीं मिलें सा। पर आजकल तो हुकुम, लोगों ने हमें बुलाना ही बंद कर दिया।”
“क्यों बंद कर दिया।”
“मालूम नहीं सा, पता नहीं देश में अच्छे दिनों की कैसी हवाएं चल रही हैं। हम लोगों को तो सुनना ही बंद कर दिया। लंगा कलाकारों के अच्छे दिन नहीं हैं हुकुम।” करीम खान ने अपना दुख बयान किया।
“तो ऐसा करो।” सौमित्र ने कुछ सोचते हुए कहा, “तुम परसों आ जाओ। मैं तब तक नीलमणि साहब से पूछ लेता हूं।”
जयंत नीलमणि इस आफिस के सर्वेसर्वा थे। ऐसे कामों के लिए सौमित्र को उनकी इजाजत लेना जरूरी था।
करीम खान ने कृतज्ञता से हाथ जोड़ कर अपना सर नवाया।
“घणी खम्मा हुकुम, मैं परसों जरूर हाजिर हो जाऊंगा।” कहकर वह अपनी कुर्सी से उठ गया और केबिन के दरवाजे के पास पहुंचकर सजदे की तरह अपनी कमर को झुकाया और सौमित्र के कमरे से बाहर आया।
करीम खान के जाने के बाद बड़ी देर तक सौमित्र के मन में करीम खान की बातें गूंजती रही। आखिर करीम खान इतना निरीह और याचक सा क्यों है। अपनी कला को दिखाने के लिए इतनी निरीहता और कृतज्ञता क्यों। क्यों नहीं आज कल लोग उसे बुला रहे।
सौमित्र ने जब नीलमणि से करीम खान का जिक्र किया तो उन्होंने कहा, “देखो मुझे कोई दिक्क्त नहीं है। मैंने भी लंगा गायन सुना है। एकदम अलग अंदाज का गायन है यह।”
नीलमणि ने अपनी सहमति देते हुए कहा।
जून का महीना था और शाम को भी झुलसाने वाली गर्मी थी। फोर्ट होटल में चेयरमैन विश्ववीर भसीन के साथ कुछ खास मेहमानों के लिए एक महफिल सजाई गई थी। सौमित्र ने शाम पांच बजे ही करीम खान को फोर्ट होटल में आने के लिए कहा था। करीम खान अपने दो साथियों के साथ होटल में आ गया था। सभी सफेद कमीज और पायजामा पहने हुए थे। आठ-दस साल का एक लड़का भी था।
“बेटा नमस्ते करो साहब ने।” करीम खान ने उस लड़के से कहा।
उसने हाथ जोड़ते हुए घणी खम्मा कहा।
“यह तुम्हारा बेटा है।”
“हां साब बेटा है म्हारो।”
“क्या नाम है तुम्हारा।” सौमित्र ने उस लड़के से पूछा।
“सिकंदर...” उस लड़के ने बड़े ही फक्र के साथ कहा।
“अच्छा, क्या करते हो।”
“संगीत की साधना करे हैं हुकुम।”
“अरे वाह यह तो बहुत अच्छी बात है। कहां करते हो संगीत साधना।”
“घर में ही हुकुम।”
“गाना बजाना तो पुश्तैनी काम है हमारा। अभी सीख जाएगा तो आगे जाकर रोजी रोटी कमा लेगा।” जवाब करीम खान ने दिया था।
सौमित्र ने देखा कि उस आठ-दस साल के लड़के के चेहरे पर एक मासूमियत थी। उसने यह भी महसूस किया कि जैसे-जैसे अपने पिता के साथ वह गाने और बजाने के लिए जाने लगेगा, वैसे-वैसे उसके चेहरे पर मासूमियत की जगह कातरता आ बैठेगी। अपने पिता को देखकर गाने के रियाज के साथ-साथ वह अपने चेहरे पर कातरता लाने का रियाज भी अनायास कर लेगा। सिकंदर के हाथ में दो बांसुरियां थीं। उसे देखकर सौमित्र ने पूछा, “यह क्या है तुम्हारे हाथ में।”
“हुकुम, इन्ने अलगोजा कहवे हैं। यहीं तो गाणा रे साथे बजावा हुकुम।” उसने उन बांसुरियों को दिखाते हुए कहा।
इस छोटी सी उम्र में ही करीम खान ने उसके हाथ में अलगोजा थमाकर उसे बता दिया था कि उसे जीवन में आगे क्या करना है। किस रास्ते पर चलना है।
सौमित्र उन्हें हॉल के एक कोने में ले गया जहां पर एक तख्त रखा हुआ था। उस तख्त पर सफेद चादर बिछी हुई थी। करीम खान ने उस तख्त को देखते हुए कहा “आप हुकुम बिल्कुल फिक्र न करें, आपके साहब खुश होकर जाएगें। पर...” कहते- कहते करीम खान रूक गया।”
सौमित्र को कुछ हैरानी हुई, लगा कि कहीं तय रकम से ज्यादा रकम तो नहीं मांगेगा।
“क्या बात है क्या चाहिए।’’
“चाहिए कुछ नहीं हुकुम, पर एक विनती है” उसने हाथ जोड़कर कहा।
“क्या...? सौमित्र सोच में पड़ गया। ऐन वक्त पर यह कोई ऐसी-वैसी डिमांड न कर बैठे जिसे पूरा करना मुश्किल हो और पूरी महफिल चौपट हो जाए। उसके चेहरे पर कुछ घबराहट सी आ गई।
“हुकुम, महफिल में खाने के बाद जो बटर-चिकन बच जाए, वह हमको खाने के लिए दे देना। कई सालों से हमने होटल का चिकन नहीं खाया हुकुम। सुणयों है, इण होटल रो चिकन खूब मजेदार है। बड़ी आस है हुक्म इण होटल के चिकन खावण री।’’
सुनकर आश्वस्त हो गया सौमित्र। यह कोई ऐसी-वैसी मांग नहीं थी जिसे पूरा नहीं किया जा सके। कुछ देर सोचने के बाद कहा, “अच्छा ठीक है खा लेना तुम बटर चिकन। तुम्हारे गाने से अगर चेयरमैन साहब खुश हो गए, तो तुम्हें चिकन पैक करवा कर भी दे दूंगा। घर भी ले जाना।”
फोर्ट होटल के हॉल के एक कोने में रखे तख्त पर करीम खान ने अपनी महफिल सजाई। उसके दाएं-बाएं उसके दोनों साथी बैठ गए और एक कोने में उसका बेटा सिकंदर अपना अलगोजा लिए हुए। वे अपना लंगा सुनाने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुके थे।
करीब सात बजे चेयरमैन विश्ववीर भसीन डिनर हॉल में आए। चाल में एक अजीब किस्म की तेजी थी गोया वे विश्वविजय करने निकले हों। उनके पीछे आठ-दस लोगों का काफिला चल रहा था। जून की इस गर्मी में भी उन्होंने काले रंग का सूट पहना हआ था। उनसे मिलने के लिए शहर के सेठ-साहूकार आ गए थे, जिन्हें उन्होंने ही बुलाया था। महफिल में बुफे डिनर था। राजस्थान के एक से एक लजीज पकवान थे।
चेयरमैन साहब को देखते ही सौमित्र मजूमदार ने करीम खान को गाने का इशारा किया। इशारा पाते ही करीम खान ने सबको “घणी खम्मा” कहकर लंगा गाना शुरू किया। उसके साथ के लोगों ने ढोलक पर थाप दी और सिकंदर ने पूरे वेग से अलगोजा बजाया। करीम खान की आवाज से पूरा हॉल गूंज उठा। वह लंगा इस तरह गा रहा था गोया कि अपने प्राण निकालकर सबके सामने रख देगा।
चेयरमैन विश्वरवीर भसीन कुछ देर तक उसका गाना सुनते रहे। एकाएक उन्होंने सौमित्र मजूमदार को इशारे से अपने पास बुलाया।
सौमित्र खुश हो गया। सोचा वे जरूर इसे शाबाशी देंगे, करीम खान इतना अच्छा गा रहा था। वह सहमते-सहमते उनके पास गया। इससे पहले वह कभी चेयरमैन के इतने करीब नहीं गया था। केवल उन्हें दूर से ही देखा था। पास पहुचंते ही चेयरमैन साहब के चेहरा देखकर वह सहम सा गया। उनके चेहरे पर खुशी के भाव सौमित्र ने नहीं देखे। एक नाराजगी सी थी।
“यह कौन है”, चेयरमैन विश्ववीर भसीन ने धीरे से सौमित्र से पूछा। उनकी आवाज में धमक थी।
“सर यह करीम खान है’’ सौमित्र ने सहमते हुए जवाब दिया।
“कौन करीम खान’’ उनकी आवाज में एक नाराजगी थी, जिसे सौमित्र ने भांप लिया था।
“लंगा गाने वाला करीम खान’’ उसने डरते-डरते कहा।
उसकी बात सुनकर विश्ववीर भसीन ने अजीब सा मुंह बनाया गोया कोई कुनैन की गोली उन्होंने खा ली हो।
हालांकि चेयरमैन ने बहुत धीरे से यह कहा था लेकिन चेयरमैन के आस-पास खड़े लोगों ने देख और समझ लिया था कि चेयरमैन साहब को इसका गाना पसंद नहीं आ रहा है।
“तुम्हें इन लोगों के सिवाय और कोई लोग नहीं मिले।’’ चेयरमैन साहब ने घुड़कते हुए बहुत धीरे से कहा, गोया कोई और न सुन ले। यह कहते-कहते उनके चेहरे के भाव बदल से गए थे। एक वितृष्णा सी उनके चेहरे पर उभर आई थी।
सौमित्र मजूमदार की सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे। समझ में नहीं आया कि वह इसका क्या जवाब दे।
सौमित्र ने दूर से ही करीम खान को अपना गाना बंद करने का इशारा किया। करीम खान ने इशारा पाते ही अपना गाना बंद कर दिया। गाना बंद होते ही पूरे हॉल में एक सन्नाटा छा गया।
किसी ने होटल वाले से सॉफ्ट म्यूजिक बजाने के लिए कहा। होटल में पहले से ही इसकी व्यवस्था थी। देखते-देखते हॉल में करीम खान के लंगा गीत की जगह सॉफ्ट म्यूजिक गूंज उठा।
थोड़ी देर बाद सौमित्र करीम खान के पास गया। करीम खान और उसके साथी हॉल के कोने में रखे तख्त पर चुपचाप बैठे थे। “क्या हुआ हुकुम। कुछ बेअदबी हो गई।” करीम खान ने हाथ जोड़कर कहा।
“नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ। तुम अब जाओ यहां से।”
“क्यों हुकुम, कुछ गलत हो गया हो तो माफ करे दें हुकुम।’’
“नहीं, कुछ गलत नहीं हुआ। तुम जाओ यहां से और रिसेप्शन की लॉबी में जाकर मेरा इंतजार करो।” सौमित्र मजूमदार ने उसे बहुत आहिस्ता से कहा।
करीम खान ने अपना सारा सामान समेटा और उस महफिल से बाहर आ गया। वह और उसके साथी धीरे-धीरे चलते हुए फोर्ट होटल की लॉबी में कुर्सियों पर बैठ गए। सहमे से करीम खान के मन में रह-रह कर एक ही सवाल उभर रहा था कि उसका गाना क्यों बंद करा दिया गया? ऐसी क्या गलती हो गई उससे?
अचानक होटल के एक गार्ड ने आकर पूछा, “अठे क्यों बैठा हो भाई’’
“सौमित्र साहब का इंतजार कर रहे हैं हुकुम।’’ करीम खान ने जवाब दिया।
“कौन सौमित्र’’ गार्ड ने सवाल किया।
“वो जिनकी पार्टी हो रही है हॉल में।’’
“वो चेयरमैन साहब वाली महफिल में।”
“हां, हुक्म वही।”
जवाब सुनकर गार्ड वापस चला गया। करीम खान वहीं बैठा रहा सौमित्र का इंतजार करते हुए।
थोड़ी देर बाद वही गार्ड फिर आया और करीम खान से कहा, “सौमित्र साहब को आवण में देर लगेगी। अठे बैठणों मना है। होटल रे गेट रे बाहर जाने ने इंतजार कर।’’
करीम खान समझ नहीं सका, यहां बैठने में क्या बुराई है। उसे गेट के बाहर इंतजार करने के लिए क्यों कहा जा रहा है। भारी मन से वह उठा और अपने साथियों के साथ आहिस्ता-आहिस्ता चलते-चलते फोर्ट होटल के गेट के पास आ गया।
“हमें बटर चिकन मिलेगा खावण वास्ते।’’ चलते-चलते उसके बेटे सिकंदर ने पूछा।
“के नहीं सकत बेटा।” करीम खान ने मायूसी से कहा और चलता रहा।
वे चारों होटल के बाहर जमीन पर उकड़ू बन कर बैठ गए।
होटल में दो घंटे तक रात्रि भोज का कार्यक्रम चलता रहा। जब एक-एक कर सारे लोग चले गए, तो सौमित्र मजूमदार रह गया। उसकी नजर खाने की टेबल पर रखे डोंगों पर पड़ी। उनमें बटर चिकन था। एकाएक सौमित्र के सामने करीम खान का चेहरा आ गया। उसने इस होटल का बटर चिकन खाने की इच्छा जाहिर की थी। उसने एक बैरे को बटर चिकन पैक कर लाने के लिए कहा। थोड़ी देर में बैरा एक डिब्बे में बटर चिकन पैक कर ले आया। सौमित्र ने पैकेट बैरे से ले लिया और करीम खान की तलाश में होटल की लॉबी में आ गया। उसे उम्मीद थी कि करीम खान अपने साथियों और बेटे के साथ होटल की लॉबी में जरूर मिल जाएगा। एक अजीब सी बेचैनी उस पर छा गई। वह अनमयस्कलता की हालत में होटल की लॉबी में आया। वहां उसे करीम खान नहीं दिखाई दिया। उसने एक गार्ड से पूछा, “कुछ लोगों को मैंने यहां पर मेरा इंतजार करने के लिए कहा था। कहां गए वे लोग।”
“थोड़ी देर पहले थे, अब नहीं है।’’ गार्ड ने बताया।
“कहां गए?”
“गेट की तरफ जाते हुए दिखाई दिए थे हुक्म।’’ गार्ड ने बताया।
उसकी परेशानी बढ़ गई। वह करीम खान और उसके बेटे को ढूंढने के लिए बटर चिकन का पैकेट हाथ में लेकर होटल के गेट पर पहुंचा। जब वहां भी उसे कोई न मिला तो उसने वहां खड़े दरबान से पूछा, “क्यों भाई आपने किसी गाने-बजाने वालों को देखा था।’’
“हां, हुकुम दखियां, हां तीण लोग था एक बच्चा भी था।’’ उस दरबान ने बताया।
“हां...हां...वही...वही। कहां गए वो।’’ सौमित्र की उत्सुकता बढ़ गई।
“हुक्म। खूब देर इंतजार करियों, जब आप नहीं पधारियां तो वे उण तरफ चला गया।’’ दरबान ने बताया।
“किधर गए...” सौमित्र की घबराहट बढ़ती जा रही थी।
शायद बस स्टैंड री ओर।’’ दरबान ने गेट के बाईं तरफ इशारा करते हुए कहा।
यह सुनकर सौमित्र को धक्का सा लगा। गहरा धक्का। वह उनकी तलाश में बटर चिकन का पैकेट हाथ में लिए बस स्टैंड की ओर चल पड़ा। उसके भीतर एक हूक सी उठ रही थी। वह सोच रहा था अगर करीम खान और उसका बेटा उसे मिल जाएं, तो वह उनसे माफी मांगेगा और उन्हें बटर चिकन खिलाएगा।
हरियश राय
नागफनी के जंगल में और मुट्ठी में बादल दो उपन्यास। बर्फ होती नदी, उधर भी सहरा, अंतिम पड़ाव, वजूद के लिए, सुबह-सवेरे, किस मुकाम तक कहानी संग्रह। बैंकिंग जीवन के अनुभवों को लेकर लिखी गई संस्मारणात्मकक किताब, तय किया मैंने सफ। भीष्म साहनी: सादगी का सौंदर्य शास्त्र और कथा-कहानी-एक का संपादन।