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मोदी-केजरीवाल में लड़ी जा रही बिहार की भी लड़ाई

दिल्ली भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में बिहार के छह पुलिस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति पर लगातार जारी रस्साकशी से जाहिर होता है कि लड़ाई सिर्फ केंद्र और दिल्ली सरकार की नहीं है बल्कि भारतीय जनता पार्टी बनाम क्षेत्रीय दलों के बीच संघीय ढांचे को लेकर यह एक व्यापक टकराव में बदल रही है।
मोदी-केजरीवाल में लड़ी जा रही बिहार की भी लड़ाई

इस रस्साकशी में ताजा घटना यह हुई है कि बिहार के पुलिस उपाधीक्षक संजय भारती, जो छह प्रतिनियुक्त अधिकारियों में वरिष्ठतम हैं, ने दिल्ली स्‍थानांतरण पर जाने से चिकित्सा कारणों से मना कर दिया है।

दरअसल, दिल्ली में उपराज्यपाल नजीब जंग के जरिये मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लड़ रही भाजपा आम आदमी पार्टी की सरकार को ही नहीं, आगामी महीनों में बिहार, उत्तरप्रदेश और पश्चिमी बंगाल के चुनाव में जा रहे मतदाताओं को भी एक राजनीतिक संदेश दे रही है। यह कि जिस पार्टी की केंद्र में सरकार है उसे ही राज्य में चुनो तो अच्छा। नहीं तो किसी भी हालत में गैर-भाजपाई राज्य सरकार चल नहीं पाएगी। या कहें कि चलने नहीं दी जाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में सहकारी संघवादी (कॉपरेटिव फेडरलिज्म) की बात करते रहे हैं। लेकिन जिस नीति पर भाजपा चल रही है उसे सहकारी संघवाद की बजाय वर्चस्ववादी संघवाद कहना ज्यादा उचित होगा।

इसे नीतीश कुमार तुरत भांप गए और उन्होंने केंद्र बनाम दिल्ली की लड़ाई में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पक्ष में तत्काल बयान देकर इस मसले पर सहयोग का हाथ बढ़ा दिया। इसे व्यापक राजनीतिक गोलबंदी का अवसर मानते हुए अरविंद केरीवाल ने तुरत वह हाथ थाम लिया। उन्होंने नीतीश कुमार से दिल्ली की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के लिए छह पुलिस अधिकारी मांग लिए। क्योंकि वह जानते थे कि दिल्ली पुलिस को नियंत्रित करने वाला केंद्रीय गृहमंत्रालय तो उन्हें भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूराे के रिक्त स्‍थान भरने के लिए दिल्ली पुलिस के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति करने से रहा।

नीतीश कुमार ने तेज राजनीतिक फुटवर्क दिखाते हुए तुरत छह अधिकारी दिल्ली सरकार के पास भेजने के आदेश दे दिए। इस बढ़ती गोलबंदी से केंद्र की भाजपा सरकार चौकन्नी हो गई और नजीब जंग के जरिए उसने इस प्रतिनियुक्ति को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। लेकिन हाल में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अधिकार के मसले पर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से लैस केजरीवाल इस मसले पर अपनी सरकार को मजबूत कानूनी जमीन पर खड़ा मानते हैं। गाैरतलब है कि एकल पीठ के इस फैसले पर हाई कोर्ट की बड़ी पीठ या सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई है।

केजरीवाल ने तुरत टकराव को और बड़ा रूप देने की कोशिश करते हुए उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड की गैर-भाजपाई सरकारों से दिल्ली के भ्रष्टाचार निराेधक ब्यूरो के लिए पुलिस अधिकारियों को प्रतिनियुक्त करने का अनुरोध भेज दिया। देखना है कि वे इस अनुरोध पर कैसे अमल करती हैं और केंद्र सरकार से किस हद तक टकराव मोल लेने को तैयार हैं। फिलहाल बिहार के पुलिस उपाधीक्षक भारती के दिल्ली आने से इनकार को भी भाजपाई राजनीतिक दबाव का नतीजा माना जा रहा है।

देखें यह घटनाक्रम कहां तक जाता है और नरेंद्र मोदी की पार्टी एवं सरकार के खिलाफ कोई व्यापक माेर्चा बनवा पाता है या नहीं।

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